राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को लेकर चल रही खींचतान के बीच राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को पत्र लिखकर वित्त मंत्री केएन बालगोपाल के ख़िलाफ़ हाल में दिए उनके एक भाषण को लेकर कार्रवाई की मांग की है. बताया गया है कि विजयन ने उनकी मांग को ख़ारिज कर दिया है.
तिरुवनंतपुरम: केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को पत्र लिखकर वित्तमंत्री केएन बालगोपाल के खिलाफ ‘संविधान सम्मत’ कार्रवाई करने की मांग की है.
उन्होंने यह मांग बालगोपाल द्वारा कथित तौर पर ‘राष्ट्रीय एकता को कमतर’ करने वाला भाषण देने के मामले में की है. राज्यपाल की इस मांग को मुख्यमंत्री ने खारिज कर दिया है.
खान ने विजयन को पत्र लिखकर कहा कि बालगोपाल के पद पर बने रहने को लेकर वह ‘खुश नहीं हैं.’
रिपोर्ट के अनुसार, राज्यपाल ने अपने पत्र में स्पष्ट रूप से बालगोपाल को वाम लोकतांत्रिक मोर्चे (एलडीएफ) की कैबिनेट से हटाने की मांग नहीं की थी, लेकिन उनकी बात का सार यही था. खान ने कहा कि उन्हें बालगोपाल की टिप्पणियां ‘राजद्रोही’ लगीं.
मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में राज्यपाल ने आरोप लगाया कि 18 अक्टूबर को विश्वविद्यालय परिसर में बालगोपाल ने भाषण दिया जिसमें उन्होंने ‘धार्मिकता और प्रांतीयता की भावनाओं को उकसाने की कोशिश की और भारत की अखंडता को कमतर किया.’
राज्यपाल ने कहा कि उनके पास यह बताने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है कि वित्त मंत्री के पद पर बने रहने से वह प्रसन्न नहीं हैं.
सूत्रों के मुताबिक, राज्यपाल ने कहा कि बालगोपाल का बयान उनके द्वारा ली गई शपथ के उल्लंघन जैसा है और मुख्यमंत्री विजयन को संविधान के अनुरूप कार्रवाई का निर्देश दिया.
उल्लेखनीय है कि राजभवन के जनसंपर्क अधिकारी द्वारा 17 अक्टूबर को किए गए ट्वीट के बाद राज्यपाल की ओर से इस तरह का उठाया गया यह पहला ऐसा कदम है.
राजभवन अधिकारी ने ट्वीट किया था कि मुख्यमंत्री और मंत्री परिषद को राज्यपाल को परामर्श देने का अधिकार है, लेकिन मंत्रियों के व्यक्तिगत बयान राज्यपाल के कार्यालय की प्रतिष्ठा को कम करते हैं और ऐसे मामलों में ‘कृपा वापसी’ सहित अन्य कार्रवाई की जा सकती है.
राज्यपाल ने 19 अक्टूबर को अखबार में छपी खबर का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि केरल विश्वविद्यालय के कर्यावत्तम परिसर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बालगोपाल और उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदु द्वारा दिया गया भाषण स्पष्ट रूप से ‘राज्यपाल की छवि को धूमिल करने वाला और राज्यपाल कार्यालय की प्रतिष्ठा को कमतर करने वाला था.’
राज्यपाल ने अपने पत्र में कहा, ‘लेकिन सबसे अधिक परेशान करने वाली बात वित्तमंत्री का भाषण है जो धार्मिकता और प्रांतवाद की आग को भड़काना चाहते हैं और अगर इसे रोका नहीं गया तो यह हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता पर प्रतिकूल असर डाल सकती है.’
पत्र में अखबार की खबर का हवाला दिया गया है जिसके मुताबिक बालगोपाल ने कार्यक्रम में कथित तौर पर कहा था कि जो उत्तर प्रदेश जैसे स्थानों से आ रहे हैं उनके लिए केरल के विश्वविद्यालयों को समझना मुश्किल है.
इसके अनुसार, पूर्व राज्यसभा सदस्य बालगोपाल ने आगे कहा, ‘काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के सुरक्षा कर्मियों ने पांच छात्रों को गोली मार दी. तब मैं सांसद था और वहां गया था. कुलपति की सुरक्षा में 50 से 100 गार्ड थे. वहां के कई विश्वविद्यालयों में इस तरह की स्थिति है.’
राज्यपाल ने कहा, ‘उपरोक्त उल्लेखित वित्तमंत्री की टिप्पणी केरल और भारतीय संघ के अन्य राज्यों के बीच खाई पैदा करती है और गलत धारणा प्रस्तुत करती है कि भारत के अलग-अलग राज्यों में उच्च शिक्षा की अलग-अलग प्रणाली है.’
खान ने कहा कि खबर में बालगोपाल के बयान की दी गई जानकारी उनके द्वारा ली गई शपथ का उल्लंघन है.
राज्यपाल ने यह भी कहा कि लगता है कि बालगोपाल को पता नहीं कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय केंद्रीय विश्वविद्यालय है और उत्तर प्रदेश सरकार के प्रशासन क्षेत्र में नहीं आता है और उसके अधिकतर कुलपति दूसरे राज्यों से थे जिनमें दक्षिण भारतीय भी शामिल हैं.
मुख्यमंत्री ने बालगोपाल के खिलाफ कार्रवाई की मांग खारिज की
आधिकारिक सूत्र ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि मुख्यमंत्री ने जवाबी पत्र लिखकर राज्यपाल की बालगोपाल के खिलाफ कार्रवाई की मांग खारिज कर दी है.
उन्होंने बालगोपाल के प्रति अपने विश्वास को दोहराया और कहा कि वह ‘कम नहीं हुआ’ है.
उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया कि विजयन ने अपने जवाब में कहा कि देश के संविधान, लोकतांत्रिक मूल्यों एवं परंपरा के मुताबिक बयान राज्यपाल के मंत्री के प्रति विश्वास का आधार नहीं हो सकता.
सूत्रों के मुताबिक राज्यपाल स्वीकार करेंगे कि इस मामले में आगे किसी कार्रवाई की जरूरत नहीं है.
रिपोर्ट के अनुसार, वहीं, बालगोपाल ने कहा कि राज्यपाल के इस कदम ने इसे ‘संवैधानिक मामला’ बना दिया है.
वित्त मंत्री ने कहा, ‘चूंकि राज्यपाल ने सीएम को पत्र लिखा है, तो यह अब एक संवैधानिक मामला बन गया है. इसका जवाब सीएम देंगे. मुझे मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी करने की जरूरत नहीं है. मेरे पास न तो संदेश आया है और न ही जवाब. मैंने जो कहा है वह सार्वजनिक पटल पर है, इसमें से कोई भी किसी तरह का कोई दुराव-छिपाव नहीं था. मैं अब इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा हूं.’
उल्लेखनीय है कि यह मसला राज्य के विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण को लेकर राज्यपाल की राज्य की वाम मोर्चा सरकार के साथ चल रही खींचतान और अन्य मुद्दों के बीच सामने आया है.
खान, जो राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के वास्तविक कुलाधिपति हैं, ने रविवार को नौ विश्वविद्यालयों के कुलपतियों (वीसी) को अपना इस्तीफा देने के लिए कहा था.
हालांकि, केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को नौ कुलपतियों में से आठ की याचिका पर सुनवाई की और फैसला सुनाया था कि वे अपने पदों पर बने रह सकते हैं. अदालत ने कहा कि कुलपतियों को इस्तीफा देने का निर्देश देने का कोई महत्व नहीं है.
इसके बाद, दो अन्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को भी राज्यपाल की ओर से नोटिस भेजे गए हैं.
अन्य नेता बोले- राज्यपाल को किसी मंत्री को हटाने या सीएम से उन्हें हटाने की कहने का अधिकार नहीं
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव के. राजेंद्रन ने कहा कि राज्यपाल के पास स्पष्ट रूप से किसी मंत्री को बर्खास्त करने या सीएम को ऐसा करने का निर्देश देने का अधिकार नहीं है.
राजेंद्रन ने कहा, ‘यह राई का पहाड़ बनाने के अलावा और कुछ नहीं है. राज्यपाल के पास किसी मंत्री को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है और न ही उन्हें मुख्यमंत्री को ऐसा करने का निर्देश देने का हक़ है. राज्यपाल को अपनी शक्ति या पद के बारे में कोई जानकारी नहीं है.’
माकपा के एमवी गोविंदन ने कहा कि पार्टी राज्यपाल का सामना नहीं कर रही है, जो शैक्षणिक संस्थानों में आरएसएस के एजेंडा को आगे बढ़ा रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘वह अब जो कर रहे हैं वह पूरी तरह से असंवैधानिक है. हमारा उस तरफ जाने का इरादा नहीं है. हम भारत के संविधान को बनाए रखेंगे और देश के कानून के अनुसार आगे बढ़ेंगे.’
कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक वीटी बलराम ने इस मसले पर कहा, ‘राज्यपाल उस शक्ति का प्रयोग कर रहे हैं जो उनके पास है ही नहीं. हमें लगता है कि वह सत्तारूढ़ एलडीएफ के साथ सांठगांठ कर रहे हैं. उन्होंने तब अपनी ताकत का इस्तेमाल नहीं किया जब इसकी जरूरत थी. जब पूर्व मंत्री साजी चेरियन ने संविधान पर ही सवाल उठाया था, तब तो उन्होंने चेरियन को कारण बताओ नोटिस तक जारी नहीं किया.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)