बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महिला की ओर से दर्ज कराए गए मामले पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. महिला ने अलग रह रहे पति और उसके माता-पिता पर घरेलू हिंसा और क्रूरता के तहत मामला दर्ज कराया था.
मुंबई: अगर एक विवाहित महिला से कहा जाता है कि वह परिवार के लिए घरेलू काम करे, तो इसकी तुलना घरेलू सहायिका के काम से नहीं की जा सकती और इसे क्रूरता नहीं माना जाएगा. बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने एक महिला की ओर से आईपीसी की धारा 498ए [विवाहित महिला के साथ होने वाली क्रूरता (मानसिक और शारीरिक दोनों)] के तहत दर्ज कराए गए मामले पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की.
महिला ने अलग रह रहे पति और उसके माता-पिता पर घरेलू हिंसा और क्रूरता के तहत मामला दर्ज कराया था, जिसे हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया.
जस्टिस विभा कांकनवाड़ी और जस्टिस राजेश पाटिल की खंडपीठ ने 21 अक्टूबर को पति व्यक्ति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कर दिया.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत ने कहा, ‘अगर एक विवाहित महिला को परिवार के उद्देश्य के लिए निश्चित रूप से घर का काम करने के लिए कहा जाता है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि यह एक नौकरानी की तरह है. अगर उसे अपने घर के काम करने की इच्छा नहीं थी, तो उसे शादी से पहले ही बता देना चाहिए था, ताकि दूल्हा खुद शादी के बारे में फिर से सोच सके या अगर यह शादी के बाद की बात है तो पहले ही ऐसी समस्या का समाधान हो जाना चाहिए था.’
महिला का आरोप है कि दिसंबर 2019 में उसकी शादी के करीब एक महीने बाद से ही उसके पति और ससुराल वाले उसके साथ घरेलू सहायिका की तरह व्यवहार करने लगे. उसने कहा कि उन्होंने चार पहिया वाहन खरीदने के लिए उससे 4 लाख रुपये की मांग की थी.
उसने यह भी आरोप लगाया कि जब उसने बताया कि उसके पिता के पास पैसे नहीं हैं, तो उसके पति ने उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया.
महिला ने आगे कहा कि उसे एक डॉक्टर के पास ले जाया गया ताकि वह एक बेटे को जन्म दे सके. जब डॉक्टर ने उन्हें बताया कि गर्भधारण की अवधि पूरी नहीं हुई है, तो उसकी सास और भाभी ने कथित तौर पर यह कहते हुए महिला के साथ मारपीट की कि उसने उन्हें धोखा दिया है.
महिला ने आरोप लगाया कि इसके बाद उन्होंने उसके पिता से कहा कि उसे अपने पति और ससुराल वालों के साथ रहने की अनुमति तभी दी जाएगी जब वह अपने साथ 4 लाख रुपये लाएगी.
27 जून, 2020 को उसके साथ कथित तौर पर मारपीट की गई थी, जिसके बाद नांदेड़ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई थी. घरेलू हिंसा मामले में आईपीसी की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 504 (जान-बूझकर अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत आरोप भी जोड़े गए.
पति ने अपनी मां और बड़ी बहन के साथ एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने दावा किया कि महिला ने अपने पूर्व पति और ससुराल वालों के खिलाफ भी ऐसी ही शिकायत दर्ज कराई थी और अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था.
हालांकि, पीठ ने कहा कि पहले की शिकायतों या मुकदमे का मतलब यह नहीं था कि महिला को इस तरह के आरोप लगाने की आदत में थी. पति को ऐसे दावों को साबित करना होगा.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि महिला ने केवल इतना कहा है कि उसे प्रताड़ित किया गया, लेकिन उसने इस तरह के किसी विशेष कृत्य का अपनी शिकायत में जिक्र नहीं किया.
पीठ ने महिला द्वारा उसके पति और ससुराल वालों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया.
उसने कहा, ‘केवल मानसिक और शारीरिक रूप से उत्पीड़न शब्द का उपयोग आईपीसी की धारा 498ए लागू करने के लिए पर्याप्त नहीं है. जब तक उन कृत्यों का वर्णन नहीं किया जाता है, यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि उन्हें उत्पीड़न या किसी व्यक्ति द्वारा की गई क्रूरता के दायरे में रखा जा सकता है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)