पर्यावरण मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों के पर्यावरणीय परीक्षण के लिए बीज जारी करने की अनुशंसा की है. आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच और भारतीय किसान संघ ने इसे ख़तरनाक़ और कैंसरकारक बताते हुए केंद्र सरकार को पत्र लिखा है.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) और संगठन की कृषक इकाई- भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने नियामक निकाय द्वारा आनुवंशिक रूप से परिवर्तित (जीएम) सरसों को पर्यावरण मंजूरी देने की अनुशंसा किए जाने का विरोध किया है.
एसजेएम ने जीएम सरसों को ‘खतरनाक’ करार देते हुए केंद्र से अपील की है कि वह सुनिश्चित करे कि इसके बीज ‘कभी नहीं बोए’ जाएं.
गौरतलब है कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तहत आने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों के पर्यावरणीय परीक्षण के लिए इसके बीज जारी करने की सिफारिश की है, जिसके बारे में विशेषज्ञों का मानना है कि यह इसकी व्यावसायिक खेती का मार्ग प्रशस्त करेगा.
ज्ञात हो कि सरकार ने अब तक (वर्ष 2002 में) व्यावसायिक खेती के लिए केवल एक जीएम फसल- बीटी कपास को मंजूरी दी है.
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र सिंह को लिखे पत्र में एसजेएम ने आरोप लगाया है कि जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल समिति (जीईएसी) ‘गैर-जिम्मेदाराना’ तरीके से काम कर रही है.
एसजेएम ने कहा है कि जीएम सरसों के समर्थन में किए जा रहे दावे ‘पूरी तरह से झूठे, असत्यापित और गलत तरीके से पेश किए गए तथ्य हैं.’
स्वदेशी जागरण मंत्र के सह-समन्वयक अश्वनी महाजन ने पत्र में कहा, ‘एसजेएम इस खतरनाक और अवांछित जीएम सरसों को पिछले रास्ते से लाने का हमेशा विरोध करता रहा है.’
गौरतलब है कि स्वदेशी जागरण मंच द्वारा अपनी चिंताएं जाहिर करने के बाद जीएम सरसों के लिए नियामकीय मंजूरी को पर्यावरण मंत्रालय ने रोक दिया था, ताकि इसकी समीक्षा की जा सके.
महाजन ने आरोप लगाया कि जीईएसी ने जैसा कि पूर्वानुमान था, ‘अपनी प्रतिष्ठा’ के अनुरूप कोई समीक्षा नहीं की.
उन्होंने पत्र में लिखा है, ‘नियामकों ने जीएम फसल का विकास करने वालों से हाथ मिला लिया है और वे बार-बार नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, जो एक गंभीर मुद्दा है.’
महाजन ने कहा, ‘हमें भरोसा है कि जीएम फसलों के प्रतिकूल असर का सतर्कतापूर्ण अध्ययन करने वाले और पूर्व में समय-समय पर अपने विचारों को प्रकट करने वाले एक व्यक्ति के रूप में आप इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि जीएम सरसों के बीज कभी न बोए जाएं.’
उधर, द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, बीकेएस ने भी इसे लेकर अपनी आपत्ति दर्ज करवाई है और कहा है कि इससे कैंसर हो सकता है.
केंद्र सरकार को लिखे अपने पत्र में बीकेएस ने आरोप लगाया है कि जीईएसी, दिल्ली विश्वविद्यालय और भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) खाद्य फसलों में आनुवंशिक संशोधन (जेनेटिक मॉडिफिकेशन) से संबंधित मामलों में मिलीभगत से काम कर रहे हैं.
बीकेएस के अखिल भारतीय महासचिव मोहिनी मोहन मिश्रा ने इस अख़बार को बताया कि जीईएसी ने अपने अध्ययन में दावा किया है कि जीएम सरसों हर्बिसाइड टॉलरेंट (Herbicide Tolerant) (एचटी) सरसों है. उन्होंने यह जोड़ते हुए कि जीएम सरसों हमेशा जांच के दायरे में रहा है, इसे ‘वैज्ञानिक धोखाधड़ी’ करार दिया.
मिश्रा ने कहा, ‘एचटी तकनीक ज्यादातर कैंसर कारक (carcinogenic) होती है. यह एक घातक तकनीक है जो मिट्टी, रोगाणुओं, पॉलिनेटर्स, और लगभग सभी औषधीय जड़ी-बूटियों को मार देती है और फसल की विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है. यह मनुष्यों में कैंसर का कारण भी बन सकती है.
मिश्रा ने आगे आरोप लगाया कि जीईएसी भारत की कृषि प्रणाली और खाद्य श्रृंखला में अवांछित, असफल (एचआईवी-हाई इन्वेस्टमेंट ) जीएम खाद्य फसलों के प्रवेश का विरोध करने में सक्षम नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि जीएम फसलों के मामले में जीईएसी की कार्रवाई अवैज्ञानिक है.
उन्होंने जोड़ा, ‘हम केंद्र सरकार से अनुरोध करते हैं कि इस मामले में तत्काल कदम उठाएं और गैर-रासायनिक, आत्मनिर्भर कृषि एजेंडा को ध्यान में रखते हुए अपने फैसले पर फिर से विचार करें ताकि लोगों को पर्यावरण के अनुकूल कृषि तरीकों से स्वस्थ भोजन दिया जा सके.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)