स्कूल की प्रिंसिपल और इसे चलाने वाली गुजरात एजुकेशन सोसाइटी को भेजे गए पत्र में पूर्व छात्रों ने कहा है कि ध्रुवीकरण के मौजूदा माहौल में उनके जैसे राजनीतिक व्यक्ति को आमंत्रित करने से स्कूल आलोचना का शिकार हो जाएगा और यह स्कूल के चरित्र को कमज़ोर करेगा, जो संविधान और बहुलवाद के लिए जाना जाता है.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित सरदार पटेल विद्यालय के पूर्व छात्रों के एक समूह ने उनकी जयंती (31 अक्टूबर) पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को स्कूल में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करने के फैसले पर सवाल उठाते हुए स्कूल प्रबंधन को एक खुला पत्र लिखा है.
स्कूल की प्रिंसिपल अनुराधा जोशी और स्कूल चलाने वाली गुजरात एजुकेशन सोसाइटी को भेजे गए पत्र में 237 पूर्व छात्रों ने कहा है, ‘विशेष रूप से ध्रुवीकरण के मौजूदा माहौल में उनके जैसे राजनीतिक व्यक्ति को आमंत्रित करने से स्कूल आलोचना का शिकार हो जाएगा और इसके चरित्र (Ethos) को कमजोर करेगा, जो संविधान और बहुलवाद के लिए जाना जाता है. देश में फैल रही नफरत और हिंसा का यह मौजूदा माहौल संवैधानिक मूल्यों की घोर अवहेलना के लिए जिम्मेदार है.’
पत्र के अनुसार, ‘हम एक स्कूल हैं जो सवाल पूछने, असहमति के लोकतांत्रिक आदर्शों, तर्क और बहस को प्रोत्साहित करते हैं. हम आपको लोकतंत्र के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के साथ लिख रहे हैं, जो स्कूल ने हमें प्रदान किया है.’
पत्र भेजे जाने के बाद तमाम अन्य पूर्व छात्रों द्वारा समर्थन किया गया है.
While the letter has been submitted, signatures are still being collected on a Google doc. The number of signatories is almost 360 now.
— Anya Shankar (@AnyaShankar) October 31, 2022
पत्र इस तथ्य को भी सामने लाता है कि सरदार पटेल ने स्वयं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर प्रतिबंध लगा दिया था. आरएसएस भारतीय जनता पार्टी की वैचारिक मातृ संस्था है, जिसके शाह सदस्य हैं. इसलिए पटेल की विरासत पर दावा करने की भाजपा की कोशिशों के बावजूद, वह आज की राजनीति से सहमत नहीं होते.
पत्र के अनुसार,
आरएसएस का राजनीतिक मोर्चा और भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के रूप में अमित शाह सरदार पटेल के आदर्शों के विरोध में खड़े हैं, जो उनके द्वारा हमें दिए गए हैं.
हाल के वर्षों में भाजपा द्वारा पटेल पर दावा करने के प्रयासों के बावजूद यह याद रखना समझदारी होगी कि उन्होंने 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद गृह मंत्री रहते हुए आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था.
4 फरवरी, 1948 को जारी एक विज्ञप्ति में भारत सरकार ने कहा था कि वह हमारे देश में काम कर रही नफरत और हिंसा की ताकतों को खत्म करने और राष्ट्र की स्वतंत्रता को खतरे में डालने के लिए संगठन पर प्रतिबंध लगा रही है.
इसने यह भी कहा कि ‘संघ के सदस्यों द्वारा अवांछित और यहां तक कि खतरनाक गतिविधियों को अंजाम दिया गया है’ और कई आरएसएस सदस्य ‘हिंसा के कृत्यों में लिप्त’ हैं.
संघ की आपत्तिजनक और हानिकारक गतिविधियां बेरोकटोक जारी हैं और संघ की गतिविधियों से प्रेरित हिंसा के कई पीड़ित हैं. सरकार ने तब कहा था कि नवीनतम और सबसे कीमती पीड़ित स्वयं गांधीजी थे.
हमारे शिक्षकों ने आलोचनात्मक सोच और मौलिक कल्पनाओं को प्रोत्साहित किया है, ताकि हम सत्ता से सच बोलने के लिए लगातार आशा और साहस से भर सकें. मुख्य अतिथि की पसंद विद्यालय की भावना को नष्ट और कमजोर कर देती है, जहां हमने हमेशा ज्ञान को प्रकाश के रूप में देखा है, जो हमें न्याय, समानता और शांति की ओर ले जाता है.
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