सुप्रीम कोर्ट में सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई में केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार पहले ही हलफ़नामा दे चुकी है, पर असम व त्रिपुरा सरकारों को अलग-अलग जवाब देने की ज़रूरत है. अदालत के समक्ष 50 याचिकाएं इन दो राज्यों से संबंधित हैं.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कुछ याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए सोमवार को असम और त्रिपुरा की सरकारों को तीन सप्ताह का समय दिया और मुद्दे पर अगली सुनवाई के लिए छह दिसंबर की तारीख तय की.
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी के नेतृत्व वाली पीठ ने दो वकीलों- पल्लवी प्रताप और कनु अग्रवाल को 230 से अधिक याचिकाओं को संयुक्त संकलन के जरिये सुचारू रूप से संभालने और याचिकओं में से प्रमुख याचिकाएं तय करने में सहायता करने के लिए नोडल वकील के रूप में नियुक्त किया.
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की इन दलीलों का संज्ञान लिया कि इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) द्वारा दायर याचिका को मुख्य मामले के रूप में माना जा सकता है क्योंकि इस मामले में दी गईं दलीलें पूरी हैं.
पीठ ने वकीलों से कहा कि वे रिकॉर्ड के संकलन को आपस में डिजिटल रूप से साझा करें और लिखित दलीलें दाखिल करें जो तीन पृष्ठों से अधिक न हो.
इसने कहा, ‘असम और त्रिपुरा तीन सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करेंगे… इन मामलों को छह दिसंबर, 2022 को उपयुक्त अदालत के समक्ष सूचीबद्ध करें.’
द टेलीग्राफ के मुताबिक, केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार ने पहले ही अपना हलफनामा दाखिल कर दिया है, लेकिन असम और त्रिपुरा सरकारों को अलग-अलग हलफनामा दाखिल करने की जरूरत है.
मेहता ने कहा कि अदालत के समक्ष 50 याचिकाएं असम और त्रिपुरा से संबंधित हैं.
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता और द्रमुक सांसद पी. विल्सन ने शिकायत की कि केंद्र ने श्रीलंका से हिंदू तमिलों को नागरिकता प्रदान करने से संबंधित मुद्दे को संबोधित नहीं किया है.
गौरतलब है कि सीएए के तहत 31 दिसंबर 2014 को या फिर उससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.
कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने से इनकार करते हुए शीर्ष अदालत ने 18 दिसंबर 2019 को संबंधित याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.
संशोधित कानून में 31 दिसंबर 2014 को या फिर उससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदाय के गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.
सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने अपनी याचिका में कहा है कि यह कानून समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और अवैध प्रवासियों के एक वर्ग को धर्म के आधार पर नागरिकता देने का इरादा रखता है.
सीएए के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन हुए थे और आलोचकों का कहना है कि यह मुसलमानों के साथ पक्षपात करता है.
हालांकि इसके बावजूद संसद की मंजूरी के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर 2019 को नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 पर दस्तखत कर उसे कानून की शक्ल दे दी थी. हालांकि, इसका कार्यान्वयन अटका हुआ है, क्योंकि अभी तक नियम नहीं बनाए गए हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)