जम्मू: पलायन करने वाले कश्मीरी पंडित परिवारों ने प्रशासन से उन्हें ‘प्रवासी’ दर्जा देने को कहा

आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं के बीच दक्षिण कश्मीर के चौधरीगुंड गांव से जम्मू पहुंचे 13 परिवारों ने प्रशासन से उन्हें ‘प्रवासी’ के रूप में पंजीकृत करने की मांग की है. उनका कहना है कि असुरक्षा के चलते उन्होंने अपना गांव छोड़ दिया है और यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि उनका पंजीकरण करे.

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निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं के मद्देनजर कश्मीरी पंडित कर्मचारी लगातार घाटी के बाहर स्थानांतरण की मांग रहे हैं. (फोटो साभार: एएनआई)

आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं के बीच दक्षिण कश्मीर के चौधरीगुंड गांव से जम्मू पहुंचे 13 परिवारों ने प्रशासन से उन्हें ‘प्रवासी’ के रूप में पंजीकृत करने की मांग की है. उनका कहना है कि असुरक्षा के चलते उन्होंने अपना गांव छोड़ दिया है और यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि उनका पंजीकरण करे.

निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं के मद्देनजर कश्मीरी पंडित कर्मचारी लगातार घाटी के बाहर स्थानांतरण की मांग रहे हैं. (फोटो साभार: एएनआई)

जम्मू: अपने समुदाय के सदस्यों की निशाना साधकर हत्या की घटनाओं के बीच दक्षिण कश्मीर के एक गांव से पलायन करने वाले तेरह कश्मीरी पंडित परिवारों ने सोमवार को मांग की कि प्रशासन उन्हें ‘प्रवासी’ के रूप में पंजीकृत करे.

इन 43 सदस्यों वाले 13 परिवारों में से 10 शोपियां जिले के चौधरीगुंड गांव से निकलकर 26 अक्टूबर को जम्मू पहुंचे थे. शेष तीन परिवार पहले ही शहर पहुंच गए थे.

परिवारों के प्रतिनिधि वी. जे. कौल ने कहा, ‘हमने घाटी से जम्मू में स्थानांतरण के मद्देनजर प्रवासियों के रूप में 13 परिवारों के पंजीकरण के लिए जम्मू में राहत और पुनर्वास आयुक्त के कार्यालय को एक संयुक्त आवेदन दिया है.’

उन्होंने कहा कि इन परिवारों ने अपने गांव को असुरक्षा के कारण छोड़ दिया है और यह सरकार की जिम्मेदारी है कि उनका पंजीकरण करे.

कश्मीरी पंडित पूरन कृष्ण भट को 15 अक्टूबर को चौधरीगुंड गांव में उनके पुश्तैनी घर के बाहर आतंकवादियों ने गोली मार दी थी. मोनीश कुमार और राम सागर 18 अक्टूबर को शोपियां में अपने किराए के आवास में सो रहे थे तभी आतंकवादियों ने ग्रेनेड से हमला किया जिसमें उनकी जान चली गई.

आवेदन में, परिवारों ने कहा कि वे दिन-दहाड़े भट की हत्या के बाद जम्मू चले आए थे.

उन्होंने कहा, ‘नृशंस हत्या की घटना ने हमें अपनी जान बचाने के लिए अपना पैतृक गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया. हम चौधरीगुंड के निवासियों ने पिछले 32 वर्षों में उग्रवाद का दंश झेला और अपने भाइयों के साथ पीड़ा साझा की, लेकिन भट की हत्या ने हमें घाटी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, परिवारों ने आवेदन में कहा कि भट की हत्या से पहले, एक सरकारी प्राथमिक स्कूल पर हमला किया गया था, लेकिन सौभाग्य से अल्पसंख्यक समुदाय के तीन शिक्षक बाल-बाल बच गए. इसी दिन जिहादी समूहों द्वारा सोशल मीडिया पर एक पत्र प्रसारित किया गया था जिसमें कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ने या इसी तरह के परिणाम भुगतने की धमकी दी गई थी.

आवेदन में आगे कहा गया है, ‘हम वहां खतरे में रहने के लिए तैयार नहीं हैं और अपने परिवारों के साथ जम्मू चले गए हैं. हत्या की इस भयानक घटना के बाद हमारे माता-पिता, पत्नी और छोटे बच्चे सदमे में हैं.’

आवेदन में कहा गया है, ‘हमने वहां तिरंगा पकड़े खड़े रहने के लिए बहुत सारे बलिदान दिए हैं. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हम आशा करते हैं कि आपका कार्यालय हमें किसी अन्य प्रवासी की तरह ही प्रवासियों के रूप में पंजीकृत करेगा.’

हालांकि, इससे पहले गुरुवार को शोपियां में अधिकारियों ने जिले से कश्मीरी पंडितों का कोई पलायन नहीं होने का दावा किया था.

शोपियां के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के सत्यापित ट्विटर खाते पर दावा किया गया कि ‘कश्मीरी गैर-प्रवासी हिंदू आबादी’ के पलायन की खबर निराधार थी.

उधर, जम्मू में रह रहे अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों ने घाटी में लौटने की किसी भी योजना से इनकार किया है.

हालांकि, अश्विनी कुमार भट, जिनके भाई पूरन कृष्ण भट की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, ने जम्मू में संवाददाताओं से कहा था कि वह पलायन कर चुके हैं और घाटी में कभी नहीं लौटेंगे.

गौरतलब है कि मई में कश्मीर में राहुल भट की हत्या के बाद से पिछले पांच महीनों में प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज के तहत कार्यरत कश्मीरी पंडित जम्मू में राहत आयुक्त कार्यालय में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

बता दें कि अगस्त माह की 16 तारीख को शोपियां जिले में ही एक सेब के बगीचे में आतंकवादियों ने एक अन्य कश्मीरी पंडित की गोली मारकर हत्या कर दी थी. फायरिंग में उनका भाई भी घायल हो गया था.

उक्त हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन अल बद्र की एक शाखा ‘कश्मीर फ्रीडम फाइटर्स’ ने ली थी.

वहीं, इस घटना से 24 घंटे पहले एक और कश्मीरी पंडित पर हमला हुआ था. स्वतंत्रता दिवस वाले दिन बडगाम में एक घर पर ग्रेनेड फेंक दिया गया था, जिसमें करन कुमार सिंह नामक एक व्यक्ति घायल हो गया था.

उसी दिन, एक अलग हमले में श्रीनगर के बटमालू इलाके में पुलिस कंट्रोल रूम पर ग्रेनेड फेंक दिया गया था.

उससे पहले 11 अगस्त को बांदीपुरा जिले में आतंकवादियों ने बिहार के एक प्रवासी मजदूर मोहम्मद अमरेज की गोली मारकर हत्या की थी.

जनवरी में एक पुलिसकर्मी की अनंतनाग में लक्षित हत्या की गई थी. फरवरी में ऐसी कोई घटना नहीं हुई. वहीं, मार्च में सबसे अधिक सात ऐसी हत्याएं हुई जिनमें पांच आम लोग और एक सीआरपीएफ का जवान शामिल है जो छुट्टी पर शोपियां आया था जबकि विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) की बडगाम में हत्या कर दी गई थी. इस हमले में एसपीओ के भाई की भी मौत हो गई थी.

अप्रैल महीने में एक सरपंच सहित दो गैर-सैनिकों की हत्या की गई थी. वहीं, मई महीने में आतंकवादियों ने पांच लोगों की लक्षित हत्या की जिनमें दो पुलिसकर्मी और तीन आम नागरिक थे.

मई में आतंकवादियों द्वारा गए मारे गए आम नागरिकों में कश्मीरी पंडितों के लिए प्रधानमंत्री के विशेष पैकेज के तहत भर्ती सरकारी कर्मचारी राहुल भट, टीवी एंकर अमरीन भट और शिक्षिका रजनी बाला शामिल थीं.

जून महीने में एक प्रवासी बैंक प्रबंधक और एक प्रवासी मजदूर की आतंकवादियों ने हत्या कर दी, जबकि एक पुलिस उपनिरीक्षक भी आतंकवादियों के हमले में मारे गए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)