केरल: महिला के कपड़ों पर विवादित बयान देने वाले न्यायाधीश का तबादला रद्द किया गया

केरल हाईकोर्ट ने एक श्रम अदालत में पीठासीन अधिकारी के तौर पर सत्र न्यायाधीश एस. कृष्ण कुमार के तबादले को रद्द करते हुए कहा कि यह उनके प्रति न केवल पूर्वाग्रह और दुर्भावना से भरा फैसला था, बल्कि इससे राज्य में न्यायिक अधिकारियों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता.

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केरल हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

केरल हाईकोर्ट ने एक श्रम अदालत में पीठासीन अधिकारी के तौर पर सत्र न्यायाधीश एस. कृष्ण कुमार के तबादले को रद्द करते हुए कहा कि यह उनके प्रति न केवल पूर्वाग्रह और दुर्भावना से भरा फैसला था, बल्कि इससे राज्य में न्यायिक अधिकारियों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता.

केरल हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

कोच्चि: केरल हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न के दो मामलों में एक आरोपी को जमानत देते हुए अपने आदेश में विवादित टिप्पणी करने वाले सत्र न्यायाधीश का तबादला बुधवार को रद्द कर दिया. अदालत ने कहा कि उन्हें ट्रांसफर करने का फैसला दंडात्मक और अनुचित था.

जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस मोहम्मद नियास सीपी ने एक श्रम अदालत में पीठासीन अधिकारी के तौर पर सत्र न्यायाधीश एस. कृष्ण कुमार के तबादले को रद्द करते हुए कहा कि यह उनके प्रति न केवल पूर्वाग्रह और दुर्भावना से भरा फैसला था, बल्कि इससे राज्य में न्यायिक अधिकारियों के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता.

हालांकि पीठ ने कहा कि जमानत आदेश में न्यायाधीश ने जो टिप्पणियां की थीं, वे महिलाओं के प्रति अपमानजनक और पूरी तरह से अनुचित थीं.

अदालत ने कहा न्यायाधीश कृष्ण कुमार की टिप्पणियों के लिए उनकी आलोचना करते हुए मीडिया में खबरें आईं, जिसके तत्काल बाद उन्हें ट्रांसफर करने का निर्णय लिया गया.

अदालत ने कहा, ‘इसके अलावा तबादले का कोई कारण नजर नहीं आता.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, पीठ ने यह भी कहा कि ट्रांसफर आदेश ऐसे समय में आया है, जब अपीलकर्ता के पास सेवानिवृत्त होने में एक साल से भी कम समय है और वह कोझीकोड के एक अस्पताल में विभिन्न बीमारियों का इलाज भी करवा रहे हैं.

अपने 18 पृष्ठ के फैसले में यह भी कहा गया कि न्यायिक अधिकारियों द्वारा उनके न्यायिक कार्य के निर्वहन में पारित गलत आदेशों और अन्य आचरण के बीच एक अंतर किया जाना चाहिए, जिसे उनके न्यायिक कार्य के वैध काम के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

इससे पहले केरल हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल पी. कृष्ण कुमार ने अदालत में दाखिल एक हलफनामे में सत्र न्यायाधीश के दृष्टिकोण पर सवाल उठाए थे.

हलफनामे में कहा गया है कि सत्र न्यायाधीश ने इससे पहले भी अनुचित व्यवहार किया था, जब एक बार उन्होंने वॉट्सऐप संदेश के जरिये आरोपी को सुनवाई की तारीख देकर मामले का निपटारा कर दिया था.

रजिस्ट्रार जनरल ने कहा कि यौन उत्पीड़न के अन्य मामलों में ‘बार-बार अनुचित दृष्टिकोण’ के कारण भी सत्र न्यायाधीश का कोल्लम जिले में एक श्रम अदालत में तबादला करने का फैसला लिया गया था.

उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने सत्र न्यायाधीश के तबादले को बरकरार रखा था. इस आदेश के खिलाफ सत्र न्यायाधीश ने अपील दाखिल की थी, जिसके बाद रजिस्ट्रार जनरल ने यह हलफनामा दाखिल किया.

यौन उत्पीड़न के अलग-अलग मामलों में आरोपी लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता सिविक चंद्रन को जमानत देने के सत्र न्यायाधीश एस. कृष्ण कुमार के विवादित आदेशों की ओर इशारा करते हुए रजिस्ट्रार जनरल ने कहा कि ‘इस आदेश से अधिकारी का अनुचित रवैया दिखाई देता है.’

रजिस्ट्रार जनरल के 10 अक्टूबर के इस हलफनामे में कहा गया है, ‘ये आदेश न्यायाधीश के अनुचित दृष्टिकोण की ओर इशारा करते हैं, जिनके कारण आम जनता के बीच पूरी न्यायपालिका की छवि को नुकसान पहुंचा. इससे न्यायपालिका में लोगों का विश्वास कम होता.’

हलफनामे में यह भी कहा गया है, ‘कोल्लम में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के तौर पर काम करते समय न्यायिक अधिकारी ने एक प्रतिनियुक्ति वाले पद को पाने की जल्दी में, मामले की सुनवाई के संबंध में आरोपी को वॉट्सऐप संदेश भेजने के बाद एक मामले का निपटारा कर दिया था.’

न्यायिक अधिकारी के इस फैसले को बाद में हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था.

सत्र न्यायाधीश कृष्ण कुमार ने चंद्रन को जमानत देते हुए दो अगस्त के अपने आदेश में कहा था कि आरोपी एक सुधारक है और जाति व्यवस्था के खिलाफ है. इस बात पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं किया जा सकता कि वह यह जानने के बाद कि पीड़िता अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय से संबंध रखती है, उसे छूता.

इसी तरह 12 अगस्त को अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि आरोपी द्वारा जमानत याचिका के साथ पेश की गईं पीड़िता की तस्वीरें बताती हैं कि उसने यौन भावनाओं को उकसाने वाले कपड़े पहन रखे थे. साथ ही इस बात पर यकीन करना असंभव है कि शारीरिक रूप से कमजोर 74 साल का व्यक्ति ऐसा अपराध कर सकता है.

हालांकि, बाद में केरल हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न के एक मामले में कार्यकर्ता सिविक चंद्रन को अग्रिम जमानत देने को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं का निपटारा करते हुए कोझीकोड सत्र अदालत की ‘उत्तेजक पोशाक’ वाली टिप्पणी को हटा दिया था.

हाईकोर्ट ने कहा था, ‘किसी भी पोशाक को पहनने का अधिकार संविधान द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक स्वाभाविक विस्तार है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार का एक पहलू है. यहां तक ​​कि अगर कोई महिला भड़काऊ पोशाक पहनती है, तो वह किसी पुरुष को उसकी गरिमा को भंग करने का लाइसेंस नहीं दे सकती है. इसलिए, इस आदेश में से अदालत के उक्त निष्कर्ष को निरस्त किया जाता है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)