जनता के पास 30.88 लाख करोड़ मुद्रा मौजूद, नोटबंदी के बाद से 72 फीसदी अधिक: रिपोर्ट

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 21 अक्टूबर 2022 को समाप्त पखवाड़े में भारतीय जनता के पास 30.88 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा नकदी में उपलब्ध थी, जो कि नोटबंदी से पहले 4 नवंबर 2016 को उपलब्ध 17.97 लाख करोड़ रुपये से 72 फीसदी या 12.91 लाख करोड़ रुपये अधिक है. 

(फोटो: रॉयटर्स)

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 21 अक्टूबर 2022 को समाप्त पखवाड़े में भारतीय जनता के पास 30.88 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा नकदी में उपलब्ध थी, जो कि नोटबंदी से पहले 4 नवंबर 2016 को उपलब्ध 17.97 लाख करोड़ रुपये से 72 फीसदी या 12.91 लाख करोड़ रुपये अधिक है.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार द्वारा 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा के छह साल बाद जनता के पास उपलब्ध नकद मुद्रा एक नई रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 21 अक्टूबर को समाप्त पखवाड़े में जनता के पास 30.88 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा नकदी में उपलब्ध थी, जो कि 4 नवंबर 2016 को उपलब्ध 17.97 लाख करोड़ रुपये से 72 फीसदी या 12.91 लाख करोड़ रुपये अधिक रही.

वहीं, नोटबंदी के बाद 25 नवंबर 2016 को जनता के पास 9.11 लाख रुपये की नकदी मौजूद थी, जिसमें वर्तमान में 239 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

गौरतलब है कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद 500 और 1,000 रुपये के नोट बंद करके वापस ले लिए गए थे.

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के मुताबिक, 21 अक्टूबर 2020 को समाप्त पखवाड़े में दिवाली की पूर्व संध्या पर जनता के पास मुद्रा में 25,585 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई. साल-दर-साल आधार पर देखें तो इसमें 9.3 फीसदी या 2.63 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई.

जब 8 नवंबर 2016 को व्यवस्था से 500 और 1,000 रुपये के नोट बंद कर दिए गए थे, उससे पहले 4 नवंबर 2016 को जनता के पास 17.97 लाख रुपये की मुद्रा नकदी में मौजूद थी. नोटबंदी के बाद जनवरी 2017 में यह घटकर 7.8 लाख करोड़ रुपये रह गई थी.

जनता के पास मुद्रा की गणना कुल प्रचलन में मौजूद मुद्रा (सीआईसी) से बैंकों के पास मौजूद नकदी की कटौती करने के बाद की जाती है. प्रचलन में मौजूद मुद्रा से आशय उस नकदी या मुद्रा से है, जो किसी देश के भीतर उपभोक्ताओं और व्यवसायों के बीच लेन-देन में इस्तेमाल की जाती है.

भले ही सरकार और आरबीआई कम नकद के इस्तेमाल पर जोर देते हुए ‘कैशलैस’ व्यवस्था की वकालत करते हों, भुगतान के डिजिटलीकरण पर जोर देते हों और विभिन्न लेन-देन में नकदी के उपयोग पर पाबंदी लगाते हों, लेकिन हकीकत यह है कि व्यवस्था में नकदी लगातार बढ़ रही है.

एक बैंकर के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि जीडीपी के अनुपात में मुद्रा को देखने की जरूरत है, जिसमें कि नोटबंदी के बाद गिरावट आई है.

वहीं, रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में नकद लेन-देन अभी भी भुगतान का प्रमुख माध्यम बना हुआ है, क्योंकि 15 करोड़ लोगों के पास बैंक खाते ही नहीं हैं.

इसके अलावा ई-कॉमर्स के 90 फीसदी लेन-देन टियर-4 शहरों में नकदी में होते हैं, जबकि टियर-1 शहरों में 50 फीसदी नकदी में होते हैं.

(नोट: इस ख़बर को संपादित किया गया है. मूल शीर्षक में दिया गया 239 फीसदी वृद्धि का आंकड़ा जनता के पास उपलब्ध ‘नकदी’ का था,  ‘मुद्रा’ का नहीं.’)

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