द वायर पर छापेमारी को असंगत और राजनीति से प्रेरित बताते हुए प्रवासी संगठनों ने इसकी निंदा की

दुनिया भर के कम से कम 21 भारतीय प्रवासी संगठनों ने 'द वायर' पर छापे को भारत में पत्रकारिता और प्रेस की स्वतंत्रता में लगातार आ रही गिरावट के तौर पर देखा है और कहा है कि छापेमारी और कुछ नहीं, बल्कि सरकार से सवाल पूछने वाले पत्रकारों को धमकाने और चुप कराने की सरकारी शक्ति का सार्वजनिक प्रदर्शन था.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

दुनिया भर के कम से कम 21 भारतीय प्रवासी संगठनों ने ‘द वायर’ पर छापे को भारत में पत्रकारिता और प्रेस की स्वतंत्रता में लगातार आ रही गिरावट के तौर पर देखा है और कहा है कि छापेमारी और कुछ नहीं, बल्कि सरकार से सवाल पूछने वाले पत्रकारों को धमकाने और चुप कराने की सरकारी शक्ति का सार्वजनिक प्रदर्शन था.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सोशल मीडिया कंपनी मेटा को लेकर अब वापस ले ली गईं खबरों के संबंध में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता अमित मालवीय द्वारा दिल्ली पुलिस में दर्ज की गई शिकायत के बाद समाचार वेबसाइट द वायर, इसके संपादकों और कर्मचारियों के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा हाल ही में की गई छापेमारी और जब्ती की कार्रवाई की दुनिया भर के 21 प्रवासी संगठनों ने निंदा की है.

बयान पर इंडिया सिविल वॉच इंटरनेशनल; औटिरो एलायंस ऑफ प्रोग्रेसिव इंडियंस, न्यूज़ीलैंड; बोस्टन दक्षिण एशियाई गठबंधन, यूएसए; हिंदुज फॉर ह्यूमन राइट्स, यूके; दलित सॉलिडैरिटी फोरम, यूएसए ने हस्ताक्षर किए हैं. सभी ने कहा है कि द वायर को निशाना बनाया जाना ‘असंगत और राजनीति से प्रेरित’ है.

मालवीय की शिकायत द वायर द्वारा की गईं रिपोर्टों की एक शृंखला से जुड़ी है, जिसमें कथित तौर पर भाजपा से जुड़े लोगों द्वारा सोशल मीडिया कंपनी मेटा के राजनीतिक नियंत्रण के बारे में गंभीर सवाल उठाए गए थे.

एक बार जब यह ज्ञात हो गया कि द वायर द्वारा रिपोर्ट में जिन स्रोतों पर भरोसा किया गया था, उनमें से कुछ प्रमाणित नहीं किए गए थे, जिससे 23 अक्टूबर को रिपोर्टों को अधिकारिक रूप से वापस ले लिया गया था. द वायर ने पाठकों से माफी भी मांगी थी और मामले की एक स्वतंत्र समीक्षा की घोषणा की थी.

बहरहाल, बयान में कहा गया है कि द वायर द्वारा रिपोर्ट्स में विसंगतियां स्वीकारने और उन्हें अधिकारिक तौर पर वापस लेने के बावजूद भी मामला दर्ज किया गया और छापेमारी की गई. यह बताता है कि एफआईआर और उसके बाद की गई छापेमारी और कुछ नहीं, बल्कि सरकार से सवाल पूछने वाले पत्रकारों को धमकाने और चुप कराने की सरकारी शक्ति का सार्वजनिक प्रदर्शन था.

हस्ताक्षरकर्ता द वायर पर छापेमारी को भारत में पत्रकारिता और प्रेस की स्वतंत्रता में आ रही लगातार गिरावट के एक हिस्से के तौर पर देखते हैं.

बयान में कहा गया है कि हाल के वर्षों में पुलिस ने लगभग हर उस संगठन पर छापेमारी की है और उपकरणों को जब्त किया है, जो अपने शोध, पत्रकारिता या पक्षधरता में स्वंतत्र रहना चाहते हैं. इनमें न्यूजक्लिक, एनडीटीवी, एमनेस्टी इंटरनेशनल, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, वनवासी चेतना आश्रम, सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के आरोपी जैसे कि भीमा कोरेगांव या सीएए/एनआरसी के प्रदर्शनकारी शामिल हैं.

इस रिपोर्ट और पूरे बयान को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.