सत्तारूढ़ द्रमुक की अगुवाई वाले धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील गठबंधन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ज्ञापन भेजकर तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि को बर्ख़ास्त करने का अनुरोध किया है. ज्ञापन में कहा गया है कि रवि सांप्रदायिक घृणा भड़काते हैं और राज्य की शांति के लिए ख़तरा हैं.
नई दिल्ली/चेन्नई: द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) ने मंगलवार को कहा कि उसकी अगुवाई वाले धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील गठबंधन (एसपीए) ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ज्ञापन भेजकर तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि को ‘बर्खास्त करने का अनुरोध किया है.
राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन का विभिन्न मुद्दों को लेकर राज्यपाल से टकराव रहा है.
राष्ट्रपति कार्यालय को दो नवंबर, 2022 को भेजे ज्ञापन में सत्तारूढ़ गठबंधन ने राज्यपाल से संबंधित कई मुद्दों को उठाया है जिसमें लंबित नीट विधेयक भी शामिल है.
मालूम हो कि रवि और एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली सरकार नीट सहित कई मुद्दों पर आमने-सामने रही है जिसमें 23 अक्टूबर को हुए कार विस्फोट की जांच एनआईए को सौंपने में हुई ‘देरी’ पर रवि की हालिया टिप्पणी भी शामिल है.
उसने कहा कि सभी कृत्य राज्यपाल को शोभा नहीं देते हैं. इस ज्ञापन पर एसपीए के सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं.
सांसदों ने नौ पृष्ठों के ज्ञापन में कहा है, ‘स्पष्ट रूप से श्री आरएन रवि ने संविधान तथा कानून की रक्षा करने तथा स्वयं को सेवा तथा तमिलनाडु के लोगों की भलाई के लिए समर्पित करने के वास्ते अनुच्छेद 159 के तहत ली शपथ का उल्लंघन किया है. इसके अलावा वह सांप्रदायिक घृणा को भड़काते रहे हैं तथा राज्य की शांति के लिए खतरा हैं… अत: अपने आचरण तथा कृत्यों से आरएन रवि ने साबित किया है कि वह राज्यपाल के संवैधानिक पद के योग्य नहीं हैं तथा उन्हें तत्काल बर्खास्त किया जाना चाहिए.’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, ज्ञापन में कहा गया है कि नीट विधेयक को राष्ट्रपति भवन को फॉरवर्ड करने के बजाय रवि ने ‘माननीय राष्ट्रपति की शक्तियों को हड़प लिया और विधायिका की समझदारी पर सवाल उठाया और विधेयक को वापस कर दिया, जो राज्यपाल को प्रदत्त शक्तियों में नहीं है.’
सत्तारूढ़ गठबंधन के सांसदों ने आगे कहा, ‘उनके बर्ताव के कारण तमिलनाडु विधानसभा को एक विशेष सत्र के लिए बुलाना पड़ा और विधानसभा ने नीट विधेयक को फिर से लागू किया और इसे फिर से राज्यपाल के पास भेज दिया. इससे पता चलता है कि राज्यपाल राज्य विधानसभा द्वारा व्यक्त सामूहिक इच्छा के विरुद्ध काम कर रहे हैं. ये सभी कार्य राज्यपाल के अशोभनीय हैं.’
ज्ञापन में कहा गया है, ‘तमिलनाडु एक स्वर्ग है जहां विभिन्न धर्मों, भाषाओं और जातियों के लोग शांति से रहते हैं. तमिलनाडु के राज्यपाल थिरू (श्री) आरएन रवि ने इस देश के धर्मनिरपेक्ष आदर्शों में अपने विश्वास की कमी को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने के लिए एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति विकसित की है और वे अक्सर विभाजनकारी बयानबाजी में लगे रहते हैं. यह हमारी सरकार के लिए शर्म की बात है जो इस देश के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार के प्रति अत्यधिक प्रतिबद्धता रखती है.’
आहे लिखा गया, ‘रवि ‘सार्वजनिक रूप से खतरनाक, विभाजनकारी, धार्मिक बयानबाजी का बेबाकी से प्रचार कर रहे थे, जो एक राज्यपाल के लिए अशोभनीय है. उनके भाषण लोगों में नफरत फैलाने और सांप्रदायिक अशांति पैदा करने के लिए सोची-समझी मंशा से दिए जाते हैं. हाल ही में उन्होंने एक टिप्पणी की कि ‘भारत दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह एक धर्म पर निर्भर है.’ यह बयान भारत के संविधान का अपमान है. भारत अपने संविधान और कानूनों पर निर्भर है, किसी धर्म पर नहीं.’
ज्ञापन के हस्ताक्षरकर्ताओं ने आरोप लगाया, ‘संविधान निर्माताओं ने कभी ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं की होगी जहां एक राज्यपाल खुले तौर पर चुनी हुई राज्य सरकार की नीति का विरोध करते हैं या विधायिका द्वारा पारित कानून को अनिश्चितकाल के लिए स्वीकृति में देर करते हैं या धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ काम करते हैं. ऐसी स्थिति को तानाशाही कहा जा सकता है और तमिलनाडु में ऐसी स्थिति बनी हुई है.’
यह कहते हुए कि राज्यपाल को किसी भी राजनीतिक पसंद-नापसंद या दलगत राजनीति या उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद की नियुक्तियों की अपेक्षाओं से मुक्त होना चाहिए, ज्ञापन में कहा गया है कि उनका ध्यान लोगों की भलाई की ओर होना चाहिए.
सांसदों ने ज्ञापन में कहा, ‘रवि भूल जाते हैं कि उन्होंने तमिलनाडु में कोई चुनाव नहीं जीता है कि वे यह फैसला करें कि यहां के लोगों के लिए क्या ठीक है. स्पष्ट रूप से, थिरु आरएन रवि ने संविधान और कानून की रक्षा और तमिलनाडु के लोगों की सेवा और भलाई के लिए खुद को समर्पित करने के लिए अनुच्छेद 159 के तहत ली गई शपथ का उल्लंघन किया है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)