सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर में कथित शिवलिंग क्षेत्र की सुरक्षा अगले आदेश तक बढ़ाई

सुप्रीम कोर्ट वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद कमेटी द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें पांच हिंदू महिलाओं द्वारा मस्जिद परिसर में देवताओं की पूजा करने के अधिकार की मांग करने वाले एक मुक़दमे में वाराणसी कोर्ट द्वारा दिए गए सर्वेक्षण आदेश को चुनौती दी गई थी.

वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद. (फोटो: कबीर अग्रवाल/द वायर)

सुप्रीम कोर्ट वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद कमेटी द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें पांच हिंदू महिलाओं द्वारा मस्जिद परिसर में देवताओं की पूजा करने के अधिकार की मांग करने वाले एक मुक़दमे में वाराणसी कोर्ट द्वारा दिए गए सर्वेक्षण आदेश को चुनौती दी गई थी.

वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद. (फोटो: कबीर अग्रवाल/द वायर)

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी-शृंगार गौरी परिसर में जिस स्थान पर कथित ‘शिवलिंग’ मिलने की बात की गई थी, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अगले आदेश तक उस क्षेत्र की सुरक्षा बढ़ा दी.

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने ज्ञानवापी विवाद से संबंधित सभी मुकदमों को एक साथ करने के लिए वाराणसी जिला न्यायाधीश के समक्ष आवेदन करने की हिंदू पक्षों को अनुमति दे दी.

पीठ ने सर्वेक्षण आयुक्त (Survey Commissioner) की नियुक्ति के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद की प्रबंधन समिति द्वारा दायर अपील पर हिंदू पक्षों को तीन सप्ताह के भीतर उनका जवाब पेश करने का भी निर्देश दिया.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें पांच हिंदू महिलाओं द्वारा मस्जिद परिसर में पूरे साल देवताओं की पूजा करने के अधिकार की मांग करने वाले एक मुकदमे में वाराणसी सिविल कोर्ट द्वारा दिए गए सर्वेक्षण आदेश को चुनौती दी गई थी.

हिंदू पक्ष की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा, ‘मस्जिद समिति द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) ‘निरर्थक’ हो गई है. चुनौती एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति के आदेश को लेकर थी. मेरे दोस्त (मस्जिद पक्ष) एडवोकेट कमिश्नर के समक्ष उपस्थित होते रहे हैं.’

उन्होंने कोर्ट द्वारा 17 मई को पारित अंतरिम आदेश को आगे बढ़ाने का भी अनुरोध किया.

मस्जिद समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने इस तर्क का खंडन किया कि याचिका ‘निरर्थक’ हो गई है. उन्होंने कहा कि प्रतिवादी आयोग की कार्यवाही में भाग ले रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘मुझे इस पर निर्देश लेने की जरूरत है. प्रथमदृष्टया इसे निर्रथक कहना सही नहीं है, क्योंकि आयोग (मस्जिद का सर्वेक्षण करने के लिए अदालत द्वारा गठित आयोग) की नियुक्ति के आदेश को चुनौती दी गई थी. सहमति का कोई सवाल ही नहीं है. मैंने एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति के आदेश को चुनौती देते हुए एक एसएलपी दायर की थी.’

वरिष्ठ वकील ने हालांकि अंतरिम आदेश के विस्तार दिए जाने पर आपत्ति नहीं जताई.

सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई को एक अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें वाराणसी के जिलाधिकारी को ज्ञानवापी-शृंगार गौरी परिसर के अंदर उस क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया था, जहां सर्वेक्षण में कथित शिवलिंग मिलने की बात की गई थी.

शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि ज्ञानवापी मस्जिद मुसलमानों को नमाज अदा करने और धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए मस्जिद में प्रवेश करने के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं करेगी.

20 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को यह देखते हुए वाराणसी जिला न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया कि एक वरिष्ठ और अनुभवी न्यायिक अधिकारी को शामिल मुद्दों की संवेदनशीलता को देखते हुए मामले से निपटना चाहिए. अदालत ने निर्देश दिया कि जिला अदालत को मस्जिद कमेटी द्वारा आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत दायर आवेदनों पर प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई करनी चाहिए.

अक्टूबर 2022 में वाराणसी जिला न्यायालय ने हिंदू पक्ष द्वारा कार्बन डेटिंग और कथित शिवलिंग की वैज्ञानिक जांच के लिए दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया था.

अदालन ने कहा था, ‘अगर कार्बन डेटिंग या ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार की अनुमति दी जाती है और यदि ‘शिवलिंग’ को कोई नुकसान होता है तो सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन होगा और इससे आम जनता की धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंच सकती है.’

गौरतलब है कि पांच हिंदू पक्षकार में से चार ने कथित ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग की मांग की थी, जो अदालत के आदेश पर कराए गए मस्जिद परिसर के वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के दौरान ‘वजूखाना’ में मिला था. ‘वजूखाना’ एक छोटा जलाशय होता है, जिसका उपयोग मुस्लिम नमाज अदा करने से पहले वजू (हाथ-पांव धोने आदि) करने के लिए करते हैं.

मस्जिद समिति ने कार्बन डेटिंग की मांग का विरोध करते हुए कहा था कि वह ‘शिवलिंग’ नहीं बल्कि वजूखाने के फव्वारे का हिस्सा है.

मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता मुमताज अहमद ने अदालत से कहा था कि कार्बन डेटिंग नहीं करवाई जा सकती है. उन्होंने कहा था कि अगर कार्बन डेटिंग के दौरान उक्त वस्तु को नुकसान पहुंचता है तो यह उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना के समान होगा.

गौरतलब है कि विश्व वैदिक सनातन संघ के पदाधिकारी जितेंद्र सिंह विसेन के नेतृत्व में राखी सिंह समेत पांच हिंदू महिलाओं ने अगस्त 2021 में अदालत में एक वाद दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पास स्थित शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन और अन्य देवी-देवताओं की सुरक्षा की मांग की थी.

इसके साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित सभी मंदिरों और देवी-देवताओं के विग्रहों की वास्तविक स्थिति जानने के लिए अदालत से सर्वे कराने का अनुरोध किया था.

पूजा की अनुमति मांगने वाली याचिका के खिलाफ ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन देखने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति ने चुनौती दी थी, जिसे सितंबर 2022 में अदालत ने खारिज कर दिया था.

वाराणसी की अदालत ने 12 मई 2022 को ज्ञानवापी मस्जिद में स्थित शृंगार गौरी परिसर का वीडियोग्राफी सर्वेक्षण कर 17 मई 2022 को इससे संबंधित रिपोर्ट अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था.

मस्जिद की प्रबंधन समिति अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने मामले को लेकर शीर्ष अदालत पहुंचे थे. अहमदी ने तर्क दिया था कि वाराणसी की अदालत का फैसला उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के विपरीत है.

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 कहता है कि पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप जारी रहेगा, जैसा कि 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)