शीर्ष अदालत ने कॉलेजियम द्वारा दोबारा भेजे गए नामों सहित उच्चतर न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के लिए अनुशंसित नामों को केंद्र द्वारा लंबित रखने पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि उसने पहले स्पष्ट किया था कि अगर सरकार के एक बार आपत्ति जताने के बाद कॉलेजियम ने दोबारा नाम भेज दिया है तो नियुक्ति होनी ही है.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को शीर्ष अदालत की कॉलेजियम द्वारा दोबारा भेजे गए नामों सहित उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए अनुशंसित नामों को केंद्र द्वारा लंबित रखने पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इन्हें लंबित रखना ‘अस्वीकार्य’ है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने पहले स्पष्ट किया था कि एक बार सरकार ने अपनी आपत्ति जता दी है और कॉलेजियम ने उसे यदि दोबारा भेज दिया है तो उसके बाद नियुक्ति ही होनी है.
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस. ओका की पीठ ने कहा, ‘नामों को बेवजह लंबित रखना स्वीकार्य नहीं है.’
शीर्ष अदालत ने कहा कि नामों पर कोई निर्णय न लेना ऐसा तरीका बनता जा रहा है कि उनलोगों को अपनी सहमति वापस लेने को मजबूर किया जाए, जिनके नामों की सिफारिश उच्चतर न्यायपालिका में बतौर न्यायाधीश नियुक्ति के लिए की गई है.
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हम पाते हैं कि नामों को रोककर रखने का तरीका इन लोगों को अपना नाम वापस लेने के लिए मजबूर करने का एक तरीका बन गया है, ऐसा हुआ भी है.’
न्यायालय ने कहा कि जब तक पीठ सक्षम वकीलों से सुशोभित नहीं होती है, तब तक ‘कानून और न्याय के शासन’’ की अवधारणा प्रभावित होती है.
पीठ ने केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय के सचिव (न्याय) को नोटिस जारी करके शीर्ष अदालत के 20 अप्रैल 2021 के आदेश के अनुरूप समय पर नियुक्ति के लिए निर्धारित समय सीमा की ‘जानबूझकर अवज्ञा’ करने के आरोप वाली याचिका पर जवाब मांगा.
एडवोकेट्स एसोसिएशन, बेंगलुरु द्वारा अधिवक्ता पई अमित के माध्यम से दायर याचिका में उच्चतर न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में ‘असाधारण देरी’ का मुद्दा उठाया है.
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि उच्च न्यायालयों में रिक्तियों की ‘गंभीर स्थिति’ और न्यायाधीशों की नियुक्ति में देरी ने शीर्ष अदालत की तीन-न्यायाधीशों की पीठ को 20 अप्रैल, 2021 को व्यापक समयसीमा निर्धारित करने के लिए आदेश पारित करने को बाध्य किया था, जिसके तहत नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की जानी है.
पीठ ने कहा, ‘यदि हम विचार के लिए लंबित मामलों की स्थिति को देखते हैं, तो सरकार के पास 11 मामले लंबित हैं, जिन्हें कॉलेजियम द्वारा मंजूरी दे दी गई थी और अभी तक नियुक्तियों की प्रतीक्षा है.’
न्यायालय ने कहा, ‘प्रमुख वकीलों के लिए बढ़ते अवसरों के साथ यह एक चुनौती है कि प्रतिष्ठित व्यक्तियों को बेंच में आमंत्रित करने के लिए राजी किया जाए. इसके बावजूद यदि प्रक्रिया में ज्यादा समय लगता है, तो उन्हें आमंत्रण स्वीकार करने के लिए उन्हें और हतोत्साहित किया जाता है.’
कोर्ट ने जोड़ा, ‘हम पाते हैं कि नामों को होल्ड पर रखने का तरीका इन व्यक्तियों को अपना नाम वापस लेने के लिए मजबूर करने का एक तरीका बनता जा रहा है, जैसा कि हुआ ही है।
इसने कहा कि शीर्ष अदालत ने पहले न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए समयसीमा निर्धारित करने का प्रयास किया था और इस तथ्य पर भी विचार किया था कि रिक्तियों से छह महीने पहले नाम भेजने की परिकल्पना इस सिद्धांत पर की गई थी कि यह अवधि सरकार के समक्ष उन नामों पर विचार करने के लिए पर्याप्त होगी.
पीठ ने कहा, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि आदेश के संदर्भ में निर्देशों का कई मौकों पर उल्लंघन किया जा रहा है.’
पीठ ने कहा कि उनमें से सबसे पुरानी सिफारिश चार सितंबर, 2021 की है और दो सिफारिशें 13 सितंबर, 2022 की हैं. इसने कहा कि इसका तात्पर्य यह है कि सरकार न तो सिफारिशों के अनुरूप नियुक्ति करती है और न ही नामों पर अपनी आपत्ति की जानकारी देती है.
पीठ ने कहा, ‘सरकार के पास 10 नाम अब भी लंबित हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने चार सितंबर, 2021 से 18 जुलाई, 2022 तक दोबारा भेजा है.’’
पीठ ने कहा कि कॉलेजियम द्वारा दोबारा भेजे गए नामों सहित अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में देरी के कारण कुछ लोगों ने अपनी सहमति वापस ले ली है और (न्यायिक) तंत्र ने पीठ में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के शामिल होने का अवसर खो दिया है.
याचिकाकर्ता के वकील की इस बात का भी संज्ञान लिया गया कि जिन व्यक्तियों का नाम दोबारा भेजे जाने के बाद भी लंबित था, उनमें से एक का निधन हो गया है.
पीठ ने कहा, ‘कहने की जरूरत नहीं है कि जब तक बेंच में सक्षम वकील नहीं होते हैं, इस विस्तृत प्रक्रिया में कानून और न्याय के शासन की अवधारणा ही प्रभावित होती है…’
पीठ ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी है कि शीर्ष अदालत में नियुक्ति के लिए पांच सप्ताह से अधिक समय पहले की गई सिफारिश आज भी लंबित है.
पीठ ने कहा, ‘हम वास्तव में इसे समझ पाने या इसका मूल्यांकन करने में असमर्थ हैं.’
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह वर्तमान सचिव (न्याय) और सचिव (प्रशासन और नियुक्ति) को फिलहाल ‘सामान्य नोटिस’ जारी कर रही है.
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 28 नवंबर की तारीख तय की है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)