राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि सरकारी योजनाओं का प्रचार करने वाले अख़बार को ही विज्ञापन दिए जाएंगे. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने इसका स्वत: संज्ञान लिया और कहा कि इससे सार्वजनिक हित और महत्व के समाचारों की आपूर्ति और प्रसार करने की अख़बारों की क्षमता समाप्त हो जाएगी.
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नई दिल्ली: राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कथित टिप्पणी कि सरकारी योजनाओं का प्रचार करने वाले समाचार पत्रों के ही विज्ञापन जारी किए जाएंगे, का स्वत:संज्ञान लेते हुए भारतीय प्रेस परिषद (प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया – पीसीआई) ने उन आरोपों की विस्तार से जांच करने का निर्णय लिया है, जिनमें राष्ट्रदूत अखबार के साथ विज्ञापन जारी करने में भेदभाव किया जा रहा है.
राष्ट्रदूत राज्य में तीसरा सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला दैनिक अखबार है.
द हिंदू की खबर के मुतबिक, ‘पीसीआई ने हाल की बैठक में इस मामले में एक आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट पर भी विचार किया, जिसने परिषद से सिफारिश की थी कि उसे गहलोत द्वारा दिसंबर 2019 में दिए गए बयान के बारे में नाराजगी व्यक्त करना चाहिए.’
इस मामले पर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के आदेश में कहा गया है, ‘परिषद यह देख सकती है कि भविष्य में इस तरह के बयानों से बचा जा सकता है, क्योंकि इसका प्रिंट मीडिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.’
इसमें आगे कहा गया है कि पीसीआई ने जांच समिति की रिपोर्ट में सामने आए निष्कर्षों को स्वीकार किया और अपनाया है तथा मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा दिए गए विवादित बयान के बारे में अपनी अत्यधिक नाराजगी व्यक्त करने का भी फैसला किया है.
पीसीआई ने कहा कि इस तरह के घटनाक्रम संभवत: सार्वजनिक हित और महत्व के समाचारों की आपूर्ति और प्रसार को प्रतिबंधित करने के लिए होते हैं.
इसने कहा, ‘अगर इस तरह के बयानों को अमल में लाया जाता है तो यह जिन अखबारों को राजनीतिक विचारों के कारण विज्ञापन जारी नहीं किए जाते हैं, उनकी आर्थिक क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है. इससे सार्वजनिक हित और महत्व के समाचारों की आपूर्ति और प्रसार करने की उनकी क्षमता समाप्त हो जाएगी.’
पीसीआई ने कहा कि मुख्यमंत्री का बयान भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण दिखाता है और यह आदर्श विज्ञापन नीति निर्देश-2014 का उल्लंघन है.
राजस्थान सरकार ने पीसीआई के पास अपनी विज्ञापन नीति भेजी है, जिसमें कहा गया है कि सरकार भेदभाव नहीं कर रही है और नीति का पालन कर रही है.