अदालत ने एनआईए की याचिका ख़ारिज की, नवलखा को 24 घंटे के अंदर घर में नज़रबंद करने को कहा

एनआईए ने सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा के माओवादियों के साथ संबंधों का हवाला देते हुए उन्हें जेल के बजाय घर में नज़रबंद करने के सुप्रीम कोर्ट के 10 नवंबर के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया था. 70 वर्षीय नवलखा एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में अप्रैल 2020 से जेल में बंद हैं और अनेक रोगों से जूझ रहे हैं.

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गौतम नवलखा. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

एनआईए ने सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा के माओवादियों के साथ संबंधों का हवाला देते हुए उन्हें जेल के बजाय घर में नज़रबंद करने के सुप्रीम कोर्ट के 10 नवंबर के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया था. 70 वर्षीय नवलखा एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में अप्रैल 2020 से जेल में बंद हैं और अनेक रोगों से जूझ रहे हैं.

गौतम नवलखा. (फोटो साभार: विकिपीडिया)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को नवी मुंबई की तलोजा जेल से स्थानांतरित करके 24 घंटे के अंदर घर में नजरबंद करने का आदेश दिया.

शीर्ष अदालत ने इससे पहले नवलखा को घर में नजरबंदी के लिए भेजने की अनुमति देने के आदेश को वापस लेने की राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की याचिका खारिज कर दी.

70 वर्षीय नवलखा एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में अप्रैल 2020 से जेल में बंद हैं और अनेक रोगों से जूझ रहे हैं.

एनआईए ने नवलखा के माओवादियों तथा पाकिस्तान की एजेंसी आईएसआई के साथ संबंधों का हवाला देते हुए उन्हें जेल के बजाय घर में नजरबंद करने के सुप्रीम कोर्ट के 10 नवंबर के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया था.

हालांकि, जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने आदेश दिया कि गौतम नवलखा को घर पर नजरबंदी के तहत जहां रखा जाएगा, वहां अतिरिक्त सुरक्षा उपाय किए जाएंगे.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जिन्होंने नवलखा को नजरबंद रखने के आदेश को वापस लेने की मांग की थी, ने अदालत से कहा, ‘इससे जो संदेश जाता है वह यह है कि हालांकि अनुच्छेद 14 कहता है कि सभी समान हैं, कुछ समान से अधिक हैं.’

नजरबंद रखने का आदेश देने वाली पीठ की अध्यक्षता करने वाले जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि वे सभी शर्तें जो अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू चाहते थे, इसमें शामिल थीं और ‘इस अर्थ में यह एक सहमतिपूर्ण आदेश था’.

इसके जवाब में एएसजी राजू ने कहा कि यह सहमति वाला आदेश नहीं था.

समाचार एजेंसी पीटीआई ने बताया कि शीर्ष अदालत ने उस जगह पर अतिरिक्त सुरक्षा उपाय करने का भी आदेश दिया, जहां नवलखा को नजरबंद रखा जाएगा.

शीर्ष अदालत के 10 नवंबर को इस संबंध में दिए गए आदेश के बावजूद नवलखा को मुंबई के पास तलोजा जेल से स्थानांतरित किया जाना बाकी है. उसके आदेश का क्रियान्वयन 48 घंटे के अंदर किया जाना चाहिए, लेकिन वह तब से जेल में थे, क्योंकि रिहाई की औपचारिकताएं पूरी नहीं हो सकी थीं.

इस बीच भुवन शोम’, ‘हू तू तू’ ‘लगान’, ‘दिल चाहता है’, ‘पेज 3’, ‘सहर’, जैसी फिल्मों में काम कर चुकीं 71 वर्षीय अभिनेत्री सुहासिनी मुले बीते 16 नवंबर को एनआईए के मामलों के लिए विशेष न्यायाधीश कटारिया के समक्ष पेश हुईं और कहा कि वह नवलखा के लिए जमानतदार के रूप में प्रस्तुत हुई हैं, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया.

जमानत में यह जिम्मेदारी ली जाती है कि जेल से रिहा होने वाला व्यक्ति निर्देश मिलने पर अदालत में पेश होगा.

सख्त गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोपों का सामना कर रहे नवलखा ने नजरबंदी के संबंध में शुरू में कहा था कि वह मुंबई में अपनी बहन मृदुला कोठारी के साथ रहेंगे.

हालांकि एनआईए ने कहा कि जिन डॉक्टरों ने नवलखा द्वारा उनकी याचिका के समर्थन में प्रस्तुत मेडिकल रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किए थे, उनमें से एक मृदुला के पति डॉ. एस कोठारी थे, जो जसलोक अस्पताल में एक वरिष्ठ चिकित्सक हैं.

इसके बाद नवलखा ने कहा कि वह अपनी साथी सहबा हुसैन के साथ रहेंगे. तब अदालत ने इसकी अनुमति दे दी.

सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य को देखते हुए नवलखा को नजरबंद रखने के अनुरोध को स्वीकार किया है. इसने निर्देश दिया कि वह अदालत को पहले से ही दिए गए पते पर मुंबई में रहेंगे.

इसके अलावा अदालत ने एनआईए को उनके उस पते पर जाने से पहले परिसर का निरीक्षण करने की भी अनुमति दी और सीसीटीवी निगरानी, ​​फोन के उपयोग पर प्रतिबंध तथा इंटरनेट तक पहुंच न होने सहित कुछ शर्तें लगाई हैं.

गौरतलब है कि नवलखा के खिलाफ मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है. पुलिस का दावा है कि इसकी वजह से अगले दिन पुणे के बाहरी इलाके में स्थित भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के निकट हिंसा हुई थी.

पुणे पुलिस के अनुसार, प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) समूह से जुड़े लोगों ने कार्यक्रम का आयोजन किया था.

इस बीच आज (18 नवंबर 2022) को बॉम्बे हाईकोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी दलित अधिकार कार्यकर्ता और विद्वान आनंद तेलतुंबड़े की जमानत याचिका मंजूर कर ली.

हालांकि एनआईए ने इस आदेश पर एक सप्ताह की रोक लगाए जाने का आग्रह किया, ताकि वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सके. पीठ ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और अपने आदेश पर एक सप्ताह की रोक लगा दी.

इससे पहले मामले के 16 आरोपियों में से केवल दो – वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और तेलुगू कवि वरवरा राव – फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. 13 अन्य अभी भी महाराष्ट्र की जेलों में बंद हैं.

आरोपियों में शामिल फादर स्टेन स्वामी की पांच जुलाई 2021 को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)