सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए दो बच्चों का मानदंड बनाने संबंधी अपील ख़ारिज कर दी गई थी.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए दो बच्चों की नीति लागू करने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई से शुक्रवार को इनकार कर दिया और कहा कि इस मुद्दे पर सरकार को गौर करना है. अदालत इसमें नहीं जा सकती, क्योंकि इसमें कई सामाजिक और पारिवारिक मुद्दे शामिल हैं.
जन्म में वृद्धि के बावजूद भारत की जनसंख्या स्थिर होने के बारे में मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं है, जिस पर अदालत को हस्तक्षेप करना चाहिए.
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका ने कहा कि जनसंख्या कोई ऐसी चीज नहीं है, जो किसी एक दिन रुक जाएगी.
याचिकाकर्ता एवं अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि इस मुद्दे पर विधि आयोग की एक रिपोर्ट बहुत महत्वपूर्ण है.
उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए दो बच्चों के मानदंड सहित कुछ कदमों के अनुरोध वाली याचिका खारिज कर दी गई थी.
शीर्ष अदालत द्वारा याचिका पर सुनवाई से इनकार के बाद उपाध्याय ने इसे वापस ले लिया. उनकी याचिका के अलावा, पीठ ने इस मुद्दे पर दायर कुछ अन्य याचिकाओं पर विचार करने से भी इनकार कर दिया, जिसके बाद संबंधित अधिवक्ताओं ने उन्हें वापस ले लिया.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सुनवाई के अंत में, उपाध्याय ने कहा कि भारत के पास लगभग दो प्रतिशत भूमि और चार प्रतिशत पानी है, लेकिन दुनिया की 20 प्रतिशत आबादी है.
शीर्ष अदालत ने इससे पहले 10 जनवरी, 2020 को हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और अन्य से जवाब मांगा था.
जवाब में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह देश के लोगों पर जबरन परिवार नियोजन थोपने के साफ तौर पर विरोध में है और निश्चित संख्या में बच्चों को जन्म देने की किसी भी तरह की बाध्यता हानिकारक होगी एवं जनसांख्यिकीय विकार पैदा करेगी.
हाईकोर्ट ने तीन सितंबर 2019 को याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि कानून बनाना संसद और राज्य विधायिकाओं का काम है, अदालत का नहीं. उक्त याचिका में कहा गया था कि भारत की आबादी चीन से भी अधिक हो गई है तथा 20 फीसदी भारतीयों के पास आधार नहीं है.
याचिका में कहा गया था कि हाईकोर्ट यह समझने में विफल रहा कि स्वच्छ हवा का अधिकार, पीने के पानी का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, शांतिपूर्ण नींद का अधिकार, आश्रय का अधिकार, आजीविका का अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 21 और 21ए के तहत शिक्षा के अधिकार की गारंटी जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित किए बिना सभी नागरिकों को सुरक्षित नहीं किया जा सकता था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)