वैज्ञानिकों का कहना है, आधुनिक समय के लोग अपने पूर्वजों से कम हिंसक नहीं हैं. इसके उलट चिम्पैंजी मानवों से कम हिंसक हैं.
वाशिंगटन: आधुनिक सभ्यता भी मानव की रक्तपिपासा या हिंसा को कम नहीं कर पाई है, लेकिन बड़ा और संगठित समाज युद्ध की संभावना को कम कर देता है. यह बात वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में कही है.
अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि बड़े और आधुनिक समाजों के पास सैनिकों या लड़ाकों की बड़ी संख्या हो सकती है, लेकिन यह कुल आबादी का छोटा सा हिस्सा है. आधुनिक समय के देशों में रहने वाले लोग अपने पूर्वजों से कम हिंसक नहीं हैं.
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल से डीन फाक ने कहा, राष्ट्रों के रूप में रहने वाले लोगों के मुकाबले छोटे स्तर के समाजों में रहने वाले लोग अधिक हिंसक होने की जगह मारे जाने के खतरे का ज्यादा सामना करते हैं क्योंकि पुरानी कहावत है कि संख्या में सुरक्षा है.
फाक ने कहा, हम मानते हैं कि सभी तरह के समाजों में रहने वाले लोगों में केवल हिंसा की ही नहीं, बल्कि शांति की भी क्षमता है. अध्ययन के परिणाम करंट एंथ्रोपोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं.
इसमें पाया गया कि छोटे स्तर के समाजों में रहने वालों और अधिक आधुनिक समाजों में रहने वालों में आबादी का आकार बढ़ने के साथ युद्धगत मौतों की संख्या बढ़ती है. यह आधुनिक जीवन के साथ हथियारों और सैन्य रणनीतियों में नवोन्मेष की वजह से है.
पत्थर के नुकीले हथियारों की जगह आज लड़ाकू विमान और अत्याधुनिक हथियार प्रणालियां हैं. फाक ने कहा कि अध्ययन निष्कर्ष इस विचार को चुनौती देता है कि राष्ट्रों और आधुनिक समाजों के विकास की वजह से हिंसा और युद्धगत मौतों में कमी आई है.
अनुसंधानकर्ताओं ने इस अध्ययन में 11 चिम्पैंजी समुदायों, छोटे स्तर के 24 मानव समाजों, प्रथम विश्वयुद्ध में लड़ने वाले 19 देशों और द्वितीय विश्वयुद्ध में लड़ने वाले 22 देशों में आबादी के आकार और अंतरसमूह संघर्षों में हुई मौतों के आंकड़े का विश्लेषण किया गया.
फाक ने कहा कि चिम्पैंजियों को इसलिए शामिल किया गया क्योंकि वे अपने से दूसरे समूह वालों पर हमला करते हैं और उन्हें मार डालते हैं. अध्ययन में पाया गया कि कुल मिलाकर चिम्पैंजी मानवों से कम हिंसक हैं. इस पर अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि मानव जाति ने चिम्पैंजियों के मुकाबले युद्ध के अधिक गंभीर तरीके विकसित किए हैं. मानव की तरह ही चिम्पैंजियों में भी आबादी बढ़ने के साथ वार्षिक स्तर पर मौतों का आंकड़ा कम हो गया.