बीते 30 अक्टूबर को मोरबी शहर में माच्छू नदी पर बने केबल पुल के अचानक टूटने से 140 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने इससे संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा कि गुजरात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पहले ही घटना का स्वत: संज्ञान लिया है और कई आदेश पारित किए हैं.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुजरात हाईकोर्ट से मोरबी पुल ढहने की घटना से संबंधित जांच और अन्य पहलुओं की समय-समय पर निगरानी करने को कहा. इस घटना में 140 से अधिक लोगों की जान चली गई थी.
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पहले ही घटना का स्वत: संज्ञान लिया है और कई आदेश पारित किए हैं, ऐसे में फिलहाल वह याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करेगी.
उसने हालांकि एक जनहित याचिकाकर्ता और हादसे में अपने दो परिजनों को खोने वाले एक अन्य वादी को स्वतंत्र सीबीआई जांच, पर्याप्त मुआवजा संबंधी याचिकाओं के साथ हाईकोर्ट का रुख करने की अनुमति दी.
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता बाद में उसका रुख कर सकते हैं.
मालूम हो बीते सात नवंबर को गुजरात हाईकोर्ट ने मोरबी पुल हादसे का स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और स्थानीय अधिकारियों को नोटिस जारी किया था.
बीते 16 नवंबर को नगर पालिका द्वारा दो नोटिसों के बावजूद 140 लोगों की मौत की घटना पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल नहीं करने पर हाईकोर्ट नगर पालिका को फटकार लगाते हुए कहा था कि जबाव दाखिल करे या जुर्माना भरे.
इससे पहले 14 नवंबर को अदालत ने नोटिस दिए जाने के बावजूद सुनवाई में अधिकारियों के उपस्थित न होने को लेकर फटकार लगाई थी.
साथ ही राज्य सरकार से पूछा था कि ब्रिटिश काल की इस संरचना के संरक्षण एवं संचालन के लिए किस आधार पर रुचि पत्र (letter of interest) के लिए कोई निविदा नहीं निकाली गई और बिना निविदा निकाले ही किसी व्यक्ति विशेष पर ‘कृपा क्यों की गई.’
बता दें कि मोरबी में माच्छु नदी पर बना ब्रिटिश काल का केबल पुल 30 अक्टूबर को ढह गया था, जिसमें 47 बच्चों सहित 140 से अधिक लोग मारे गए थे. एक निजी कंपनी द्वारा मरम्मत किए जाने के बाद पुल को 26 अक्टूबर को लोगों के लिए फिर से खोला गया था.
दस्तावेजों के अनुसार, मोरबी में घड़ी और ई-बाइक बनाने वाली कंपनी ‘ओरेवा ग्रुप’ को शहर की नगर पालिका ने पुल की मरम्मत करने तथा संचालित करने के लिए 15 साल तक का ठेका दिया था.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, ओरेवा समूह ने यह ठेका एक अन्य फार्म को दे दिया था, जिसने रेनोवेशन के लिए आवंटित दो करोड़ रुपये में से मात्र 12 लाख खर्चे थे.
पुलिस ने मामले में अब तक नौ लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें से चार लोग ‘ओरेवा ग्रुप’ से हैं. पुल के रखरखाव और संचालन की जिम्मदारी संभालने वाली कंपनियों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)