पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित ने एक कार्यक्रम में कहा कि हाल के दिनों में गिरफ़्तारियां स्वाभाविक रूप से, बार-बार और बिना किसी कारण के की जा रही हैं. गिरफ़्तारी यह देखे बिना की जाती है कि क्या इसकी आवश्यकता है. दीवानी विवादों को आपराधिक मामलों के रूप में पेश किया जाता है और यह न्यायिक प्रणाली पर बोझ डालता है.
मुंबई: पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित ने सोमवार को कहा कि हाल के समय में दीवानी विवादों (Civil Disputes) को आपराधिक रंग दिया जा रहा है और अकारण गिरफ्तारियां की जा रही हैं, जिससे न्याय व्यवस्था पर बोझ पड़ता है.
पूर्व सीजेआई बॉम्बे हाईकोर्ट में ‘आपराधिक न्याय को प्रभावी बनाने’ संबंधी विषय पर जस्टिस केटी देसाई स्मृति व्याख्यान में बोल रहे थे.
जस्टिस ललित ने कहा कि हाल के दिनों में गिरफ्तारियां स्वाभाविक रूप से बार-बार और बिना किसी कारण के की जा रही हैं.
उन्होंने कहा, ‘गिरफ्तारी यह देखे बिना की जाती है कि क्या इसकी आवश्यकता है. दीवानी विवादों को आपराधिक मामलों के रूप में पेश किया जाता है और यह न्यायिक प्रणाली पर बोझ डालता है.’
पूर्व सीजेआई ने कहा कि भारतीय जेलों में 80 प्रतिशत कैदी विचाराधीन हैं, जबकि शेष दोषी हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, उन्होंने कहा, ‘सजा की दर 27 फीसदी है, जिसका मतलब है कि 100 में से 56 विचाराधीन कैदी किसी न किसी कारण से बरी होने जा रहे हैं, लेकिन फिर भी वे जेलों में सड़ रहे हैं.’
पूर्व सीजेआई ने कहा, ‘चूहे का पीछा करने और पकड़ने के लिए बिल्ली बुलाई जाती है, लेकिन चूहे के पीछा करने के 10 साल बाद अगर बिल्ली को पता चलता है कि चूहा वास्तव में खरगोश था तो यह समाज के लिए अच्छा नहीं है. इससे समाज का कोई भला नहीं होता.’
उन्होंने आगे कहा कि मजिस्ट्रेट यांत्रिक रूप से रिमांड के मामलों को ‘गर्म’ करते हैं और शायद ही कभी जांच दल से सवाल करते हैं कि हिरासत की आवश्यकता क्यों है और जांच में प्रगति क्या है.
पूर्व सीजेआई ने कहा कि जांच से लेकर अंतिम दोषसिद्धि तक आपराधिक प्रणाली के कुछ क्षेत्रों में बदलाव की आवश्यकता है.
उन्होंने कहा, ‘मौजूदा समय में सफेदपोश अपराधों और इसके कुछ वैज्ञानिक पहलुओं वाले मामलों में वृद्धि के साथ मुझे नहीं लगता कि हमारी पुलिस जांच प्रणाली में ऐसे मामलों की जांच करने के लिए विशेषज्ञता या वह प्रशिक्षण है.’
इस दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता ने कहा कि जमानत नियम है और जेल एक अपवाद है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हाल के एक आदेश का उदाहरण दिया, जिसमें एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी गौतम नवलखा को जेल में बंद रखने की जगह घर में नजरबंद रखने को कहा गया था.
यह उल्लेख करते हुए कि आपराधिक न्याय प्रणाली किसी सभ्य समाज की रीढ़ होती है, जस्टिस दत्ता ने कहा, ‘पक्षपाती या उदासीन न्यायिक प्रणाली का परिणाम न्याय से इनकार और निर्दोष व्यक्तियों की अनुचित गिरफ्तारी होगा.’
उन्होंने किसी मामले में गिरफ्तारी करते समय पुलिस के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करने वाले सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित कई निर्णयों के बारे में भी बताया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)