अमेठी ज़िला बार एसोसिएशन ने अपने महासचिव उमा शंकर मिश्रा के माध्यम से जिला प्रशासन, नगर पालिका परिषद और अमेठी के गौरीगंज पुलिस प्रशासन के ख़िलाफ़ एक जनहित याचिका लगाई थी, जिसके बाद स्थानीय अधिकारियों ने कथित तौर पर उनका घर तोड़ दिया था.
इलाहाबाद: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार (22 नवंबर) को अधिकारियों द्वारा बिना नोटिस जारी किए कथित तौर पर एक वकील का घर गिराए जाने पर आपत्ति दर्ज की.
कोर्ट ने वकील के पक्ष में जारी संपत्ति से संबंधित आदेश को रद्द करने में अधिकारियों द्वारा अनावश्यक और अनुचित जल्दबाजी दिखाने पर भी सवाल उठाए.
लाइव लॉ के मुताबिक, मामले में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश देते हुए जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव ने मामले में मुख्य स्थायी वकील से निर्देश मांगने और सभी तथ्यों को अदालत के सामने रखने के आदेश दिए.
पीठ ने कहा, ‘राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज आदेश दिनांक 16/11/2022 को प्राप्त करने में अनावश्यक व अनुचित जल्दबाजी और विध्वंस की कथित कार्रवाई, वह भी बिना मकान मालिक को नोटिस दिए, प्रशासन की ओर से की गई कार्रवाई के बारे में बहुत कुछ कहता है.’
न्यायालय अनिवार्य रूप से जिला बार एसोसिएशन, अमेठी द्वारा अपने महासचिव उमा शंकर के माध्यम से दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें जिला प्रशासन, नगर पालिका परिषद और अमेठी के गौरीगंज पुलिस प्रशासन पर द्वारा बार एसोसिएशन के सदस्यों के खिलाफ विभिन्न आरोप लगाए गए थे.
जिसके बाद स्थानीयों अधिकारियों ने वकील उमा शंकर मिश्रा के मकान को ध्वस्त कर दिया था.
विचाराधीन संपत्ति (जिस पर मकान बना था) मिश्रा उनकी जमीन के बदले में 16 मई 2015 को पारित एक आदेश के तहत दी गई थी. यह विनिमय जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम-1950 (यूपीजेडए एवं एलआर अधिनियम) की धारा 161 के तहत हुआ था, वो भी न्यायालय द्वारा पारित एक आदेश के तहत.
हालांकि, उसके बाद उमेश प्रताप सिंह नामक व्यक्ति ने गौरीगंज के अनुविभागीय अधिकारी को पत्र लिखकर कहा था कि भूमि का आदान-प्रदान गलत तरीके से किया गया था. इस पत्र पर कार्रवाई करते हुए संबंधित अधिकारियों ने गौरीगंज के तहसीलदार को जांच मामले की जांच और रिपोर्ट देने कहा.
इसके बाद, 16 नवंबर 2022 को पारित आदेश के माध्यम से एसडीएम ने अदला-बदली का आदेश रद्द कर दिया और कथित तौर पर तुरंत खतौनी में एक एंट्री कर दी गई और उसके बाद मकान को तोड़ दिया गया.
मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने प्रथमदृष्टया विचार व्यक्त किया कि अगर मई 2015 के आदेश में अनुविभागीय अधिकारी द्वारा कोई अनिमितता अवैधता पाई भी गई तो मिश्रा को नोटिस दिया जाना चाहिए था और उन्हें सुनवाई का असर दिए जाने के बाद ही कोई आदेश पारित किया जाना था.
पीठ ने मामले में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देते हुए टिप्पणी की, ‘16/11/2022 के आदेश के अवलोकन से यह नहीं लगता है कि उमा शंकर मिश्रा को सुनवाई का कोई अवसर दिया गया था या उक्त आदेश के पारित होने से पहले कोई नोटिस जारी किया गया था. प्रथमदृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि अनुविभागीय अधिकारी द्वारा अपनाया गया ऐसा तरीका कानून और यूपीजेडए एवं एलआर अधिनियम में निहित प्रावधानों के लिए भी नया है.’