सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर याचिकाओं में निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम जैसा तंत्र बनाने की मांग की गई है. पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी ने इससे सहमति जताते हुए कहा कि यह मांग पिछले दो दशकों से उठाई जा रही है लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति के संदर्भ में की गई टिप्पणियों के बाद प्रमुख विपक्षी दलों ने केंद्र की भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार पर निर्वाचन आयोग को कमजोर करने का आरोप लगाया तथा चुनाव आयुक्तों के चयन की प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए.
शीर्ष अदालत ने बुधवार को केंद्र को निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल उसके (शीर्ष न्यायालय के) समक्ष पेश करने को कहा. गोयल को 19 नवंबर को निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया गया था.
जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि वह जानना चाहती है कि निर्वाचन आयुक्त के रूप में गोयल की नियुक्ति में कहीं कुछ अनुचित तो नहीं किया गया क्योंकि उन्होंने हाल में सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी.
इसे लेकर कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट किया, ‘केंद्र सरकार को गोयल की नियुक्ति के कागजात दिखाने से कभी आपत्ति नहीं करनी चाहिए…क्या केंद्र के पास छिपाने के लिए कुछ है? क्या दाल में कुछ काला है या फिर दाल ही काली है?’
“ The Centre shd never object to show appointment papers re Mr Govil to the apex court, especially since the Court is seized of the issue in a Constitution Bench. Does the Cemtre have something to hide? Daal mein kya kuch kaala hai? Ya daal hi kaali hai!!”
— Abhishek Singhvi (@DrAMSinghvi) November 23, 2022
वहीं, जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी बहुत खतरनाक है और चुनाव आयोग की स्थिति को बयां करती है.
उन्होंने कहा, ‘हम उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी का स्वागत करते हैं. निर्वाचन आयोग को इससे सबक लेना चाहिए.’
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, ‘नियुक्ति की प्रक्रिया पर उच्चतम न्यायालय द्वारा समीक्षा की जा रही है. हमने हमेशा मांग की है कि चुनाव आयुक्तों के चयन की प्रक्रिया भी सीबीआई और लोकपाल की नियुक्ति की प्रक्रिया की तरह होनी चाहिए.’
उधर, तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने निर्वाचन आयोग को कमजोर किया है.
राजद प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य मनोज झा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने जो टिप्पणियां की हैं वे इसका स्पष्ट संकेत है कि हम जो लंबे समय से कहते आ रहे हैं वह सही है.
उन्होंने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय ने आयोग के कामकाज को लेकर महत्वपूर्ण चिंताएं जताई हैं.’ झा ने कहा, ‘न्यायालय ने चयन के आधार को लेकर सवाल खड़े किए और यह हमारे रुख को सही ठहराता है कि निर्वाचन आयोग अनुच्छेद 324 के तहत मिले अपने दायित्व का निर्वाह नहीं कर रहा है.’
ज्ञात हो कि अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 324 के विषय को उठाया था जिसमें निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के बारे में कहा गया है. अदालत ने कहा कि इसमें इस तरह की नियुक्तियों के लिए प्रक्रिया नहीं दी गई है.
अदालत ने मंगलवार को कहा था कि इसके अलावा, उसने इस संबंध में संसद द्वारा एक कानून बनाने की परिकल्पना की थी, जो पिछले 72 वर्षों में नहीं किया गया है, जिसके कारण केंद्र द्वारा इसका फायदा उठाया जाता रहा है.
मोइली, कुरैशी ने भी कोर्ट की टिप्पणी का समर्थन किया
पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली और पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) एसवाई कुरैशी ने बुधवार को सीईसी और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक सलाहकार तंत्र का समर्थन किया.
मोइली ने कहा कि वह इसका पूरा समर्थन करते हैं. मोइली ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, ‘इसे करना जरूरी है. यदि आप चाहते हैं कि न्यायपालिका और निर्वाचन आयोग दोनों स्वतंत्र हों, तो यह छह साल (सीईसी का कार्यकाल) के लिए होना चाहिए और एक कॉलेजियम द्वारा (सीईसी और ईसी की नियुक्ति) की जानी चाहिए, जिसकी सिफारिश मेरे द्वारा दूसरे प्रशासनिक आयोग (रिपोर्ट) में की गई थी.’
एनडीटीवी से बात करते हुए कुरैशी ने कहा, ‘मुझे इस बात की खुशी है. चार साल पहले जनहित याचिका दायर हुई थी. उम्मीद है कि इसका समाधान निकलेगा. मैं भी सीईसी रहा. हमें कमज़ोर महसूस होता था, कोई भी हम पर उंगली उठा सकता है. ‘
उन्होंने कहा, ‘ये मांग 25 साल पुरानी है. इसमें कहा था कि विपक्ष के नेता भी हो, इससे मज़बूती होगी. सरकार इस पर कुछ नहीं करती. हमने सरकार को भी लिखा था लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया.’
कुरैशी ने कहा, ‘सेवारत सीईसी यह मांग करते रहे हैं. हम कॉलेजियम प्रणाली से परिचित हैं. कॉलेजियम द्वारा विभिन्न नियुक्तियां की जाती हैं. यह राजनीतिक रूप से बहुत संवेदनशील है… यह एक पुरानी मांग है और मुझे उम्मीद है कि निष्कर्ष निकाला जाएगा क्योंकि मामला अदालत के समक्ष है. उम्मीद है कि वह (शीर्ष अदालत) कोई निष्कर्ष निकालेगी.’
ज्ञात हो कि मार्च, 2015 में सरकार को सौंपे गए चुनाव सुधारों पर अपनी 255वीं रिपोर्ट में जस्टिस एपी शाह (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में 20वें विधि आयोग ने सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए तीन सदस्यीय कॉलेजियम की सिफारिश की थी.
उसने कहा था, ‘निर्वाचन आयोग की तटस्थता बनाए रखने के महत्व को देखते हुए और मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों को कार्यकारी हस्तक्षेप से बचाने के लिए, यह जरूरी है कि निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति एक परामर्शी प्रक्रिया के जरिये की जाए.’
उल्लेखनीय है कि इससे पहले मंगलवार की सुनवाई में पीठ ने निर्वाचन आयुक्तों (ईसी) और मुख्य निर्वाचन आयुक्तों (सीईसी) के रूप में अपनी पसंद के सेवारत नौकरशाहों को नियुक्त करने की केंद्र की वर्तमान प्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा था कि किसी श्रेष्ठ गैर-राजनीतिक सुदृढ़ चरित्र वाले व्यक्ति, जो प्रभावित हुए बिना स्वतंत्र निर्णय ले सके, को नियुक्त करने के लिए एक ‘निष्पक्ष और पारदर्शी तंत्र’ अपनाया जाना चाहिए.
अदालत ने यह भी कहा था कि संविधान ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्तों के ‘नाजुक कंधों’ पर बहुत जिम्मेदारियां सौंपी हैं और वह मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर टीएन शेषन की तरह के सुदृढ़ चरित्र वाले व्यक्ति को चाहता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)