सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिकाओं में बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ को असंवैधानिक और अवैध घोषित करने का निर्देश देने का आग्रह किया है. एक याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया था कि मामले को सुन रही संविधान पीठ को नए सिरे से गठित करने की ज़रूरत है, क्योंकि पिछली पीठ के दो जज रिटायर हो चुके हैं.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि वह मुसलमानों में बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की नई संविधान पीठ का गठन करेगा.
इस मुद्दे पर एक जनहित याचिका दायर करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय ने प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ से अनुरोध किया था कि इस मामले में संविधान पीठ को नए सिरे से गठित करने की आवश्यकता है, क्योंकि पिछली संविधान पीठ के दो जज- जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस हेमंत गुप्ता- सेवानिवृत्त हो चुके हैं.
इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हम एक नई पीठ का गठन करेंगे.’
पिछली संविधान पीठ ने 30 अगस्त को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) को जनहित याचिकाओं में पक्षकार बनाया था और उनसे जवाब मांगा था.
तत्कालीन संविधान पीठ की अध्यक्षता जस्टिस बनर्जी कर रही थीं और जस्टिस गुप्ता, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस सुधांशु धूलिया इसमें शामिल थे.
हालांकि जस्टिस बनर्जी और जस्टिस गुप्ता इस साल क्रमशः 23 सितंबर और 16 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो गए, जिससे बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ की प्रथाओं के खिलाफ आठ याचिकाओं पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ के पुनर्गठन की आवश्यकता हुई.
उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका में बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ को असंवैधानिक और अवैध घोषित करने का निर्देश देने का आग्रह किया है.
शीर्ष अदालत ने जुलाई 2018 में उनकी याचिका पर विचार किया था और इस मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया था जो पहले से ही ऐसी ही याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने फरजाना नाम की एक महिला द्वारा दायर याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया था और उपाध्याय की याचिका को संविधान पीठ द्वारा सुनवाई की जाने वाली याचिकाओं के साथ टैग कर दिया था.
उपाध्याय की याचिका में आईपीसी की धारा 498ए (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा महिला के साथ क्रूरता) के तहत असाधारण तलाक को क्रूरता घोषित करने की मांग की गई थी. इसने दावा किया कि निकाह हलाला आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के तहत एक अपराध है, और बहुविवाह आईपीसी, 1860 की धारा 494 (पति या पत्नी के जीवनकाल के दौरान फिर से शादी करना) के तहत एक अपराध है.
सुप्रीम कोर्ट, जिसने 22 अगस्त, 2017 को सुन्नी मुसलमानों में तत्काल ‘ट्रिपल तालक’ की सदियों पुरानी प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया था, ने 26 मार्च, 2018 को बहुविवाह हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को एक बड़ी बेंच को भेजने का फैसला किया था.
बताया गया है कि हलाला के तहत तलाकशुदा महिला को अपने पति के साथ दोबारा शादी करने के लिए पहले किसी दूसरे पुरुष से शादी करनी होती है. दूसरा पति जब तलाक देगा तभी वह महिला अपने पहले पति से निकाह कर सकती है, जबकि बहुविवाह नियम मुस्लिम पुरुष को चार पत्नी रखने की इजाजत देता है.
याचिकाकर्ताओं में से एक तीन बच्चों की मां समीना बेगम हैं जो दो बार तीन तलाक का शिकार हो चुकी हैं. याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाए क्योंकि यह बहुविवाह और निकाह हलाला को मान्यता देता है. साथ ही भारतीय दंड संहिता, 1860 के प्रावधान सभी भारतीय नागरिकों पर बराबरी से लागू हो.
याचिका में यह भी कहा गया है कि ‘ट्रिपल तलाक आईपीसी की धारा 498A के तहत एक क्रूरता है. निकाह-हलाला आईपीसी की धारा 375 के तहत बलात्कार है और बहुविवाह आईपीसी की धारा 494 के तहत एक अपराध है.’
साथ ही याचिका में कहा गया है कि ‘कुरान में बहुविवाह की इजाजत इसलिए दी गई है ताकि उन महिलाओं और बच्चों की स्थिति सुधारी जा सके, जो उस समय लगातार होने वाले युद्ध के बाद बच गए थे और उनका कोई सहारा नहीं था. पर इसका मतलब यह नहीं है कि इसकी वजह से आज के मुसलमानों को एक से अधिक महिलाओं से विवाह का लाइसेंस मिल गया है. याचिका में उन अंतरराष्ट्रीय कानूनों और उन देशों का भी जिक्र किया गया है, जहां बहुविवाह पर रोक है.
समीना ने कहा है कि सभी तरह के पर्सनल लॉ का आधार समानता होनी चाहिए, क्योंकि संविधान महिलाओं के लिए समानता, न्याय और गरिमा की बात कहता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)