सुप्रीम कोर्ट में दर्ज एक याचिका में दो समलैंगिक जोड़ों ने विवाह करने और विशेष विवाह अधिनियम के तहत इसे मान्यता देने की अनुमति मांगी है. याचिका में कहा गया है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार एलजीबीटीक्यू+ नागरिकों को भी मिलना चाहिए.
नई दिल्ली: वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटाने के फैसले के चार साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने दो समलैंगिक जोड़ों की अलग-अलग याचिकाओं पर केंद्र और अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को शुक्रवार को नोटिस जारी किया.
समलैंगिक जोड़ों की इस याचिका में विवाह के उनके अधिकार को लागू करने और इसे विशेष विवाह कानून के तहत मान्यता देने का अनुरोध किया गया है.
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की एक पीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने के साथ ही इन याचिकाओं के निपटारे के लिए अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से सहयोग भी मांगा.
ज्ञात हो कि जस्टिस चंद्रचूड़ शीर्ष अदालत की उस संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने 2018 में सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया था.
पीठ ने कहा, ‘नोटिस जारी किया जाता है, जिसके जवाब के लिए चार सप्ताह का समय दिया जाता है. भारत के अटॉर्नी जनरल को भी नोटिस जारी किया जाए.’
शीर्ष अदालत की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने छह सितंबर, 2018 को दिएएक सर्वसम्मत फैसले में ब्रिटिशकालीन दंड विधान के उस हिस्से को निरस्त करते हुए वयस्क समलैंगिकों या विषमलैंगिकों के बीच निजी स्थान पर सहमति से यौन संबंध बनाना अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था.
समलैंगिक जोड़ों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह मुद्दा नवतेज सिंह जौहर और पुट्टास्वामी के फैसलों (समलैंगिक यौन संबंध और निजता के अधिकार के फैसले) की अगली कड़ी है.
नोटिस जारी करने से पहले वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की ओर से दी गई दलीलों पर गौर किया. उसने केंद्र सरकार और भारत के अटॉर्नी जनरल को भी नोटिस जारी करने का निर्देश दिया.
अपील में दो समलैंगिक जोड़ों ने अपनी शादी को विशेष विवाह कानून के तहत मान्यता देने का निर्देश दिए जाने की मांग की है. एक याचिका हैदराबाद में रहने वाले समलैंगिक जोड़े सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग ने दायर की है, जबकि दूसरी याचिका समलैंगिक जोड़े पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज की ओर से दायर की गई.
बार एंड बेंच के अनुसार, चक्रवर्ती और डांग द्वारा दायर की गई याचिका में कहा गया है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार एलजीबीटीक्यू+ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर और क्वीर+) नागरिकों को भी मिलना चाहिए.
रिपोर्ट में बताया गया है कि यह दोनों करीब 10 साल से साथ हैं. उनकी याचिका में कहा गया है कि दिसंबर 2021 में शादी समारोह, जिसमें उनके माता-पिता, परिवार और दोस्तों ने भाग लिया था, के बावजूद वे एक विवाहित दंपति को मिलने वाले अधिकारों से वंचित हैं.
याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत समानता के अधिकार व जीवन के अधिकार का उल्लंघन है.
लाइव लॉ के मुताबिक, पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि वे अपने दोनों बच्चों के साथ माता-पिता और बच्चे का कानूनी संबंध नहीं रख सकते हैं क्योंकि वे कानूनन शादी नहीं कर सकते हैं.
रिपोर्ट बताती है कि दोनों व्यक्ति पिछले 17 सालों से साथ हैं. उनकी याचिका में यह भी कहा गया है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता न देना अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार का उल्लंघन है.
इसमें कहा गया है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, विवाह की संस्था को नियंत्रित करने वाला कानूनी ढांचा एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के सदस्यों को ऐसा करने की अनुमति नहीं देता है.
उल्लेखनीय है कि पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट में विशेष, हिंदू और विदेशी विवाह क़ानूनों के तहत समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं को ख़ारिज करने की मांग करते हुए केंद्र सरकार ने अदालत में तर्क दिया था कि भारत में विवाह ‘पुराने रीति-रिवाजों, प्रथाओं, सांस्कृतिक लोकाचार और सामाजिक मूल्यों’ पर निर्भर करता है.
सरकार ने कहा था कि समान-लिंग वाले व्यक्तियों द्वारा यौन संबंध बनाना और पार्टनर के रूप में रहने की तुलना पति-पत्नी और बच्चों वाली ‘भारतीय परिवार की इकाई’ से नहीं की जा सकती है. उन्होंने यह भी कहा था कि विवाह की मान्यता को केवल विपरीत लिंग के व्यक्तियों तक सीमित रखना ‘राज्य के हित’ में भी है.
अक्टूबर 2021 में हुई इस मामले की सुनवाई में केंद्र ने कहा था कि विवाह एक जैविक (बायोलॉजिकल) पुरुष और एक जैविक महिला से जुड़ा शब्द है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)