दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष अनुराग कुंडू ने कहा कि 9वीं कक्षा की अंग्रेज़ी पाठ्यपुस्तक का ‘द लिटिल गर्ल’ नामक अध्याय पितृसत्ता को क़ायम रखता है और परिवार में बुरे व्यवहार को बढ़ावा देता है, इसलिए इसे संशोधित या हटाया जाना चाहिए.
नई दिल्ली: दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) से कहा है कि वह 9वीं कक्षा की अंग्रेजी पाठ्यपुस्तक के उस अध्याय में संशोधन करे या फिर इसे बदले जो पितृसत्ता को बढ़ावा देता है.
आयोग के अध्यक्ष अनुराग कुंडू ने कहा कि ‘द लिटिल गर्ल’ नामक इस अध्याय में एक ऐसी लड़की केजिया की कहानी बताई गई है, जो अपने पिता से डरती है और लगातार धमकियां मिलने के कारण इसका असर उसके बोलने की शैली पर भी होता है.
कुंडू ने ट्वीट किया, ‘मैंने एनसीईआरटी निदेशक को कक्षा 9 की अंग्रेजी पाठ्यपुस्तक के ‘द लिटिल गर्ल’ शीर्षक वाले अध्याय 3 को हटाने की सलाह दी है, क्योंकि यह हिंसक पुरुषत्व (Masculinity) का सामान्यीकरण करता है, पितृसत्ता को कायम रखता है और परिवार में विषाक्त व्यवहार को बढ़ावा देता है.’
1- Grandmother & mother are shown as docile & enabler of abuse & patriarchy as they tells daughter that being a good girl means serving father despite the abuse. Mother never rests, always doing household chores. Children ought to be exposed to more progressive portrayal. pic.twitter.com/cfEHf8wzSw
— Anurag Kundu (@AnuragKunduAK) November 23, 2022
इस पर एनसीईआरटी की तरफ से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, कहानी के अनुसार, केजिया की दादी उसे अपने पिता के लिए एक उपहार तैयार करने के लिए कहती हैं, क्योंकि उनका जन्मदिन आने वाला है. वह एक कुशन तैयार करती है, लेकिन इसे उन कागजों से भर देती है, जिसमें एक भाषण होता है, जिसे उसके पिता को एक कार्यक्रम में देना होता है.
यह जानने के बाद जब लड़की का पिता उसकी पिटाई करता है, तब उसकी दादी उसे यह घटना भूल जाने के लिए कहती हैं.
आयोग की ओर से कहा गया है कि उसने इस अध्याय पर विशेषज्ञों से परामर्श किया और निष्कर्ष निकाला कि यह बहुत ही समस्याग्रस्त है. इसमें केजिया की दादी और मां को रूढ़िवादी तरीके से दिखाया गया है.
यह देखते हुए कि महिलाओं का यह चित्रण उस तरह के लैंगिक समान समाज के खिलाफ है, जो हम सभी बनाने की आकांक्षा रखते हैं, आयोग ने जोर देकर कहा कि बच्चों को अधिक प्रगतिशील चित्रण को पढ़ाया जाना है, जिससे वे अपने परिवेश पर सवाल उठा सकें और गंभीर रूप से उसे समझ सकें.
आयोग की ओर से कहा गया, ‘यह बच्चों को घर पर हिंसा को स्वीकार करना सिखाता है, क्योंकि पिता बहुत मेहनत करता है. इसकी सामग्री किसी भी तरह से लड़कियों को सशक्त नहीं करती है और वास्तव में हानिकारक उदाहरण प्रदान करती है कि लड़कियां और युवा महिलाएं हिंसा के अपराधियों को माफ कर सकती हैं, जबकि लड़के यह सीख सकते हैं कि हिंसक होने पर भी उन्हें माफ कर दिया जाएगा.’
कुंडू ने जोर देकर कहा कि पाठ्यपुस्तकें युवा दिमाग को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, क्योंकि वे बड़े होकर स्त्री द्वेष और हिंसा की धारणाओं को चुनौती देते हैं.
उन्होंने कहा, ‘इसलिए मैं आपके (एनसीईआरटी) हस्तक्षेप का अनुरोध करता हूं कि या तो अध्याय को उपयुक्त रूप से संशोधित किया जाए या 2023-24 शैक्षणिक वर्ष के लिए पाठ्यपुस्तक से अध्याय को बदल दिया जाए.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)