बलात्कार मामले में तरुण तेजपाल की बंद कमरे में सुनवाई की मांग वाली याचिका ख़ारिज

2013 के बलात्कार मामले में तरुण तेजपाल को बरी किए जाने के ख़िलाफ़ दायर अपील पर तेजपाल के बंद कमरे में सुनवाई के अनुरोध से मना करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि किसी जज को यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसा करने का अधिकार है कि महिला निडर होकर अपना बयान दे. किसी आरोपी के लिए ऐसा नहीं किया जा सकता है.

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तरुण तेजपाल. (फाइल फोटो: पीटीआई)

2013 के बलात्कार मामले में तरुण तेजपाल को बरी किए जाने के ख़िलाफ़ दायर अपील पर तेजपाल के बंद कमरे में सुनवाई के अनुरोध से मना करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि किसी जज को यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसा करने का अधिकार है कि महिला निडर होकर अपना बयान दे. किसी आरोपी के लिए ऐसा नहीं किया जा सकता है.

तरुण तेजपाल. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को पत्रकार तरुण तेजपाल की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें 2013 के बलात्कार के मामले में उन्हें बरी किए जाने के खिलाफ दायर अपील पर बॉम्बे उच्च न्यायालय में बंद कमरे में सुनवाई का अनुरोध किया गया था.

प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने तेजपाल की ओर से पेश वरिष्ठ वकीलों कपिल सिब्बल और अमित देसाई की इस दलील को स्वीकर नहीं किया कि पत्रकार की प्रतिष्ठा और निजता की सुरक्षा के लिए सुनवाई बंद कमरे में की जाए.

पीठ ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 327 का हवाला दिया, जिसका जिक्र तेजपाल के वकीलों ने किया था. पीठ ने कहा कि आमतौर पर किसी आपराधिक मामले में सुनवाई खुली होना चाहिए और सुनवाई अदालत के न्यायाधीश को यह सुनिश्चित करने के लिए बंद कमरे में कार्यवाही का आदेश देने का अधिकार है कि महिला ‘निडर होकर’ अपना बयान दे.

पीठ ने कहा कि किसी आरोपी या पुरुष के लिए ऐसा नहीं किया जा सकता है.

सिब्बल ने तेजपाल की ओर से कहा, ‘मैं मामले में बरी हो चुका हूं. प्रथमदृष्टया मेरे खिलाफ कुछ भी नहीं है. अगर यह (अपील के खिलाफ गोवा सरकार की अपील पर सुनवाई) खुली होगी है तो ‘मीडिया ट्रायल’ होगा.’

पीठ ने कहा, ‘कानून ऐसा नहीं कहता है… बंद कमरे में सुनवाई संवेदनशील गवाहों के लिए है.’

पीठ ने, हालांकि, तेजपाल को उच्च न्यायालय के समक्ष अनुरोध करने की स्वतंत्रता दी ताकि ताकि वर्चुअल सुनवाई के बजाय भौतिक रूप से सुनवाई की जा सके. उच्च न्यायालय बलात्कार मामले में उनके बरी होने के खिलाफ राज्य द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रहा है.

मालूम हो कि इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने बलात्कार मामले की सुनवाई बंद कमरे में करने का तरुण तेजपाल का आग्रह ठुकरा दिया था.

गौरतलब है कि तहलका पत्रिका के पूर्व मुख्य संपादक को पिछले साल मई में सत्र अदालत ने उन आरोपों से बरी किया था, जिसमें तेजपाल पर नवंबर 2013 में गोवा के पांच सितारा होटल की लिफ्ट में उनकी तत्कालीन महिला सहयोगी के यौन उत्पीड़न का आरोप लगा था.

उल्लेखनीय है कि मई 2021 में सत्र अदालत ने तेजपाल को बरी करते हुए पीड़िता के आचरण पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उनके बर्ताव में ऐसा कुछ नहीं दिखा जिससे लगे कि वह यौन शोषण की पीड़िता हैं.

गोवा की एक निचली अदालत ने पत्रकार तरुण तेजपाल को यौन उत्पीड़न के मामले में बरी करते हुए संदेह का लाभ देते हुए कहा था कि शिकायतकर्ता महिला द्वारा लगाए गए आरोपों के समर्थन में कोई सबूत मौजूद नहीं हैं.

फैसले में कहा गया कि सर्वाइवर ने ‘ऐसा कोई भी मानक व्यवहार’ प्रदर्शित नहीं किया, जैसा ‘यौन उत्पीड़न की कोई पीड़ित करती’ हैं.

यह कहते हुए कि इस बात का कोई मेडिकल प्रमाण नहीं है और शिकायतकर्ता की ‘सच्चाई पर संदेह पैदा करने’ वाले ‘तथ्य’ मौजूद हैं, अदालत के आदेश में कहा गया कि महिला द्वारा आरोपी को भेजे गए मैसेज ‘यह स्पष्ट रूप से स्थापित’ करते हैं कि न ही उन्हें कोई आघात पहुंचा था न ही वह डरी हुई थीं, और यह अभियोजन पक्ष के मामले को ‘पूरी तरह से झुठलाता है.’

निचली अदालत के इस फैसले को राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय की गोवा पीठ के समक्ष चुनौती दी थी. गोवा सरकार ने इस फैसले के खिलाफ दायर अपील में कहा था कि निचली अदालत का फैसला अव्यवहार्य और पूर्वाग्रह एवं पितृसत्ता के रंग में रंगा था. मामले में दोबारा सुनवाई इसलिए हो क्योंकि जज ने पूछताछ के दौरान शिकायतकर्ता से निंदनीय, असंगत और अपमानजनक सवाल पूछने की मंज़ूरी दी.

इसके बाद हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय को भेजे गए नोटिस में कहा था कि उसका फैसला ‘बलात्कार पीड़िताओं के लिए एक नियम पुस्तिका’ जैसा है क्योंकि इसमें यह बताया गया है कि एक पीड़िता को ऐसे मामलों में कैसी प्रतिक्रिया देनी चाहिए.

निचली अदालत के इस फैसले की काफी आलोचना हुई थी. महिला पत्रकारों के संगठनों और कार्यकर्ताओं ने मामले की सर्वाइवर के साथ एकजुटता जताई थी. एक संगठन ने कहा था कि यह मामला शक्ति के असंतुलन का प्रतीक है जहां महिलाओं की शिकायतों पर निष्पक्षता से सुनवाई नहीं होती.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)