एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम द्वारा की गईं 21 लंबित सिफ़ारिशों में से 19 को वापस भेज दिया है. वहीं, केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने एक ट्वीट के माध्यम से उन दो नामों का खुलासा किया है जिनकी जजों के तौर पर नियुक्ति को सरकार ने मंज़ूरी दी है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और केंद्र सरकार के बीच पनपे गतिरोध के बीच इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है कि सरकार ने हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा की गई 21 लंबित सिफारिशों में से 19 को वापस भेज दिया है.
एक दिन पहले ही पीटीआई ने अज्ञात सूत्रों के हवाले से खबर दी थी कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित 20 फाइलों पर पुनर्विचार करने को कहा है, जिनमें अधिवक्ता सौरभ किरपाल की नियुक्ति भी शामिल है जो अपने समलैंगिक होने की पहचान खुलकर जाहिर कर चुके हैं.
इंडियन एक्सप्रेस को कथित तौर पर पता चला है कि 28 नवंबर को न्यायिक नियुक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से कुछ घंटे पहले केंद्र सरकार ने सिफारिशें वापस भेज दी थीं.
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा कॉलेजियम प्रणाली की लगातार आलोचना के बीच उस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि सरकार शायद इसलिए कुछ नियुक्तियों को रोक रही है क्योंकि वह इस बात से ‘नाखुश’ है कि शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को रद्द कर दिया.
शीर्ष अदालत ने अपने 2015 के फैसले में एनजेएसी अधिनियम और संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम-2014 को रद्द कर दिया था, जिससे संवैधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली मौजूदा न्यायाधीशों की कॉलेजियम प्रणाली बहाल हो गई थी.
सरकार ने जिन नामों को वापस भेजा है, उनमें 10 ऐसे नाम शामिल हैं जिन्हें सरकार द्वारा पहले भी रोका गया था और कॉलेजियम द्वारा उन्हें दोहराया गया है, और 9 नाम तब से लंबित हैं जब से कॉलेजियम ने पहली बार उनकी सिफारिश की थी.
कानून मंत्री रिजिजू ने एक ट्वीट में उल्लेख किया कि दो अधिवक्ताओं, संतोष गोविंद चपलगांवकर और मिलिंद मनोहर साठे, की बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीशों के रूप में पदोन्नति को स्वीकार कर लिया गया है.
As per the provisions under the Constitution of India, the following Advocates are appointed as Additional Judges of Bombay High Court.
My best wishes to them. pic.twitter.com/swkr05Duod— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) November 29, 2022
वापस भेजे गए नामों की सूची में वे नाम शामिल हैं जिनकी सिफारिश अगस्त 2021 में की गई थी और जिन्हें जुलाई 2022 में दोहराया गया था. उनमें से पांच इलाहाबाद उच्च न्यायालय में, दो-दो कलकत्ता व केरल और एक कर्नाटक उच्च न्यायालय में नियुक्त होने थे.
वापस भेजे गए नामों में अधिवक्ता सौरभ किरपाल भी हैं, जिन्होंने समलैंगिक व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान के बारे में खुलकर बात की है. उन्होंने हाल ही में एनडीटीवी को बताया था कि उन्हें लगता है कि उनकी उपेक्षा का कारण उनका यौन रुझान (Sexual Orientation) है.
पिछले हफ्ते टाइम्स नाउ समिट में बोलते हुए, रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के तंत्र पर एक नया हमला करते हुए कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली संविधान के लिए ‘एलियन’ है.
इस बात का उल्लेख करते हुए कि 1991 से पहले सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी, उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने अपने विवेक से एक अदालत के फैसले के माध्यम से कॉलेजियम बनाया.’
मंत्री ने कहा था कि भारत का संविधान सभी के लिए एक ‘धार्मिक दस्तावेज’ है, विशेष रूप से सरकार के लिए, और ‘जो कुछ भी संविधान के लिए एलियन है वो सिर्फ अदालतों और कुछ जजों द्वारा लिए गए फैसलों के कारण है, आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि फैसले को देश का समर्थन मिलेगा.’
उन्होंने पूछा था, ‘आप मुझे बताएं कि कॉलेजियम प्रणाली किस प्रावधान के तहत निर्धारित की गई है?’
एक दिन पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम. वीरप्पा मोइली ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के मुद्दे पर रिजिजू की टिप्पणी की आलोचना करते हुए कहा था कि टिप्पणियां देश के कानून की ‘पूरी तरह से अवहेलना’ थीं और मंत्री का सुप्रीम कोर्ट को चुनौती देने का ‘अशोभनीय व्यवहार’ थीं.
पूर्व कानून मंत्री मोइली ने कहा कि कॉलेजियम प्रणाली ‘समय की कसौटी’ पर खरी उतरी है और कानून मंत्री की ‘अड़चनवादी और उद्दंड’ नीति को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास उन्हें बर्खास्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.