उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2022 में जबरन धर्म परिवर्तन के दोषियों के लिए तीन साल से लेकर 10 साल तक की सज़ा का प्रावधान किया गया है. अपराध करने वाले को अब कम से कम पांच लाख रुपये की मुआवज़ा राशि का भुगतान भी करना पड़ सकता है, जो पीड़ित को दी जाएगी.
देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा ने बुधवार को कड़े प्रावधानों वाला धर्मांतरण रोधी संशोधन विधेयक पारित कर दिया, जिसमें जबरन धर्म परिवर्तन के दोषियों के लिए तीन साल से लेकर 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है.
विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2022 को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया.
उत्तराखंड सरकार ने मंगलवार (29 नवंबर) को यह विधेयक विधानसभा में पेश किया था. प्रदेश के धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने इसे पेश करते हुए कहा था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 27 और 28 के अनुसार, प्रत्येक धर्म को समान रूप से प्रबल करने के उद्देश्य में आ रहीं कठिनाइयों के निराकरण के लिए यह संशोधन विधेयक लाया गया है.
विधेयक में विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाते हुए दोषियों के लिए न्यूनतम तीन साल से लेकर अधिकतम 10 साल तक के कारावास का प्रावधान है.
इसमें कम से कम 50 हजार रुपये के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है. इस संशोधन के बाद अपराध करने वाले को कम से कम पांच लाख रुपये की मुआवजा राशि का भुगतान भी करना भी पड़ सकता है, जो पीड़ित को दी जाएगी.
विधेयक के अनुसार, कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बल, प्रलोभन या कपटपूर्ण साधन द्वारा एक धर्म से दूसरे में परिवर्तित या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा. कोई व्यक्ति ऐसे धर्म परिवर्तन के लिए उत्प्रेरित या षड्यंत्र नहीं करेगा.
आज विधानसभा में सदन द्वारा उत्तराखण्ड धर्म स्वतंत्रता संशोधन विधेयक 2022 पारित कर दिया गया है, जिसके अंतर्गत धर्मांतरण पर 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है। pic.twitter.com/zJKK8N9F4O
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) November 30, 2022
उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2022 पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ट्वीट किया, ‘इसके तहत धर्म परिवर्तन पर 10 साल तक की सजा का प्रावधान है. भय, प्रलोभन और अन्य धोखाधड़ी के साये में धर्म परिवर्तन की साजिश के खिलाफ कानून एक ऐतिहासिक फैसला साबित होगा.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि कानून में कुछ कठिनाइयों को दूर करने और संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 27 , 28 के तहत हर धर्म के महत्व को समान रूप से मजबूत करने के लिए 2018 अधिनियम में संशोधन आवश्यक था.
उत्तराखंड मंत्रिमंडल ने इस महीने की शुरुआत में मौजूदा कानून में संशोधन करने का फैसला किया था.
गौरतलब है कि उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार अपने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के नक्शेकदम पर चल रही है.
नवंबर 2020 में उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने ‘जबरन’ या ‘धोखाधड़ी’ से धर्म परिवर्तन के खिलाफ अध्यादेश जारी किया था. मार्च 2021 में अध्यादेश एक कानून बन गया था.
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2020 के तहत विवाह के लिए छल-कपट, प्रलोभन देकर या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर विभिन्न श्रेणियों के तहत अधिकतम 10 वर्ष कारावास और 50 हजार तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है. अध्यादेश के तहत सभी अपराध संज्ञेय, गैर-जमानती और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय होंगे.
इतना ही नहीं सितंबर माह में उत्तराखंड सरकार ने राज्य में मदरसों का सर्वे कराने की बात कही थी, इससे कुछ ही दिनों पहले उत्तर प्रदेश ने इसी तरह के सर्वे की घोषणा की थी.
महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण वाला विधेयक पारित
उत्तराखंड विधानसभा ने बुधवार को महिलाओं को सरकारी सेवाओं में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने वाला विधेयक पारित कर दिया.
विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन सदन ने उत्तराखंड लोक सेवा (महिलाओं के लिए क्षैतिज आरक्षण) 2022 विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया.
महिलाओं के लिए सामाजिक न्याय, अवसर की समानता, जीवन स्तर में सुधार तथा लोक नियोजन में लैंगिक समानता के उददेश्य से लाए गए इस विधेयक को उत्तराखंड सरकार ने मंगलवार को सदन में पेश किया था.
विधेयक पर सदन में चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष के सदस्यों ने इस विधेयक के लिए सरकार की जमकर पीठ थपथपाई.
विकासनगर के विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने कहा कि महिला आरक्षण को हाईकोर्ट से नकार दिए जाने के बाद राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय में इसके पक्ष में मजबूत पैरवी कर उसे बरकरार रखवाया, जिसके लिए उसकी प्रशंसा करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि इस आरक्षण से प्रदेश की मातृ शक्ति को मजबूती मिलेगी.
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने इस विधेयक को एक अच्छा कदम बताया, लेकिन कहा कि विधेयक के अध्ययन के लिए और समय दिया जाना चाहिए, जिससे इसे और मजबूत बनाया जा सके.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, विधेयक पर धामी ने कहा कि पहाड़ी राज्य के गठन में महिला शक्ति की बड़ी भूमिका थी और सरकार ने फैसला किया था कि कठिन भौगोलिक क्षेत्र वाले राज्य में महिलाओं को क्षैतिज आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए.
उन्होंने कहा कि इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सेवाओं में यहां की महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाले सरकारी आदेश पर उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई रोक को हटा दिया था. जुलाई 2006 में राज्य सरकार ने प्रदेश में यहां की महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए एक सरकारी आदेश जारी किया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)