उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में बीते मई महीने में समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के उद्देश्य से समिति का गठन किया था. इसे सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक़, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले क़ानूनों के एक समान समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो.
देहरादून: उत्तराखंड के लिए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मसौदा तैयार करने वाली विशेषज्ञों की समिति का कार्यकाल छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया है.
अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राधा रतूड़ी द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया है कि समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के उद्देश्य से गठित समिति का कार्यकाल अगले साल 27 मई तक बढ़ा दिया गया है.
उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में समिति का गठन इस साल मई में किया गया था. समिति के सदस्य पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह ने कहा कि वर्तमान में समान नागरिक संहिता के मसौदे पर सुझाव लेने के लिए समिति राज्य के विभिन्न हिस्सों में लोगों के साथ परामर्श कर रही है.
उन्होंने कहा कि समिति समान नागरिक संहिता के मसौदे पर 20 और 16 दिसंबर को देहरादून और श्रीनगर गढ़वाल में लोगों के साथ संवाद कर उनके सुझाव आमंत्रित करेगी.
सिंह ने कहा कि इस संबंध में राज्य में 30 विभिन्न स्थानों पर लोगों के साथ परामर्श किया जा चुका है और अब तक लगभग 2.25 लाख सुझाव प्राप्त हुए हैं.
उन्होंने कहा कि हालांकि, सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में है, समिति यूसीसी का मसौदा तैयार करने से पहले सुझावों का विस्तार से अध्ययन करेगी.
समान नागरिक संहिता को लागू करना पुष्कर सिंह धामी नीत सरकार द्वारा इस साल की शुरुआत में हुए राज्य विधानसभा चुनावों के लिए किए गए प्रमुख चुनाव-पूर्व वादों में से एक था.
सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई और पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह के अलावा इस समिति के अन्य सदस्यों में दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश प्रमोद कोहली, सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौर और दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल शामिल हैं.
मार्च 2022 में नवगठित सरकार की पहली कैबिनेट बैठक के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनाने की घोषणा की थी.
प्रदेश में दो तिहाई से अधिक बहुमत के साथ भाजपा के सत्ता में वापसी करने के बाद दोबारा मुख्यमंत्री बने धामी ने मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ही समान नागरिक संहिता के लिए ड्राफ्ट तैयार करने हेतु एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्णय लिया था.
समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि सभी लोग, चाहे वे किसी भी क्षेत्र या धर्म के हों, नागरिक कानूनों के एक समूह के तहत बंधे होंगे.
समान नागरिक संहिता को सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक समान समूह के रूप में संदर्भित किया जाता है, चाहे वह किसी भी धर्म का हो.
वर्तमान में विभिन्न धर्मों के अलग-अलग व्यक्तिगत कानून (Personal Law) हैं.
इसका उल्लेख भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है. जिस भाग चार में इसका उल्लेख किया गया है, उसमें राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (डीपीएसपी) शामिल हैं. ये प्रावधान लागू करने योग्य नहीं हैं, लेकिन कानून बनाने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में काम करने के लिए हैं.
अनुच्छेद 44 कहता है, ‘राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा.’
मालूम हो कि परंपरागत रूप से राम मंदिर के निर्माण और भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ-साथ समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख उद्देश्यों में से एक रहा है. उत्तराखंड के अलावा असम, कर्नाटक और चुनावी राज्य गुजरात की भाजपा सरकारों ने इसे लागू करने की बात कही है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)