कोलकाता के रिक्शा चालकों के जीवन के बारे में सिटी ऑफ जॉय लिखने वाले फ्रांसीसी लेखक डॉमिनिक लेपियर 91 वर्ष के थे. सिटी ऑफ जॉय के अलावा उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी पर शोध-आधारित ‘फाइव पास्ट मिडनाइट इन भोपाल’ का सह-लेखन भी किया था.
नई दिल्ली: कोलकाता पर प्रतिष्ठित पुस्तक सिटी ऑफ जॉय लिखने वाले फ्रांसीसी लेखक डॉमिनिक लेपियर का निधन हो गया है. वह 91 वर्ष के थे.
रिपोर्ट के अनुसार, लेपियर की पत्नी डॉमिनिक कोशों-लेपियर ने फ्रांसीसी अखबार वह मतां (Var-matin) से इस बात की पुष्टि की है. उन्होंने बताया कि उनके निधन की वजह उम्र से संबंधित बीमारियां रहीं.
30 जुलाई, 1931 को फ्रांस के शतलयुं (Chatelaillon) में जन्मे लेपियर ने अपने करिअर की शुरुआत परी-मैच (Paris-Match) के रिपोर्टर के रूप में की थी.
उन्होंने अमेरिकी पत्रकार लैरी कॉलिन्स के साथ मिलकर में छह किताबें लिखी हैं. उन छह में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पेरिस की आजादी पर आधारित विख्यात ‘इज़ पेरिस बर्निंग’ भी शामिल है.
लेपियर ने कॉलिन्स के साथ 1972 में ‘ओ जेरूसलम!’, 1975 में ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’, 1980 में ‘द फिफ्थ हॉर्समैन’ और 2005 में ‘इज़ न्यूयॉर्क बर्निंग’ लिखी थीं. उनकी अन्य किताबें जैसे बियॉन्ड लव (1990) और ए थाउजेंड सन्स (1999) अंतरराष्ट्रीय बेस्टसेलर रही हैं.
जिस किताब ने उन्हें भारत में एक जाना-पहचाना नाम बनाया, वो कोलकाता के रिक्शा चालकों पर आधारित ‘द सिटी ऑफ जॉय’ थी, जो 1985 में प्रकाशित हुई थी.
इज़ पेरिस बर्निंग की ही तरह सिटी ऑफ जॉय पर भी एक फिल्म बनी थी. 1992 में रोलैंड जोफ द्वारा निर्देशित इस फिल्म में पैट्रिक स्वेज़, ओम पुरी, शबाना आज़मी और पॉलीन कॉलिन्स ने अभिनय किया था.
1981 में लेपियर ने कोलकाता में एक एनजीओ सिटी ऑफ जॉय एड की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य क्लीनिकों, स्कूलों, पुनर्वास केंद्रों और हॉस्पिटल बोट का नेटवर्क चलाना है. उनके उपन्यास और अन्य पुस्तकों से मिलने रॉयल्टी, लेक्चरों की फीस और पाठकों से मिलने वाले दान से यह संस्था काम करती है.
लैरी कॉलिन्स के साथ लिखी गई किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ भी भारत के बारे में थी, जिसमें देश के स्वाधीनता संग्राम, विभाजन और ब्रिटिश शासन के आखिरी दौर को दर्ज किया गया था.
इसके अलावा उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी पर आधारित ‘फाइव पास्ट मिडनाइट इन भोपाल’ का सह-लेखन भी किया था, जिसमें त्रासदी के गवाहों के माध्यम से इस हादसे के बारे में बताया गया था. उन्होंने इसके लिए 1990 के दशक में तीन साल शहर में रहकर शोध किया था. इस किताब से मिली रॉयल्टी का हिस्सा भोपाल के उस क्लिनिक को गया था, जिसने गैस पीड़ितों का मुफ्त इलाज किया था. साथ ही लेपियर ने किताब में बताई गई बस्तियों में से एक के प्राथमिक विद्यालयों को भी फंड दिया था.
2008 में लेपियर को भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.