न्याय के अधिकार को साकार करने के लिए पर्याप्त न्यायिक इंफ्रास्ट्रक्चर ज़रूरी: सीजेआई चंद्रचूड़

दिल्ली उच्च न्यायालय के ‘एस’ ब्लॉक भवन के उद्घाटन के दौरान प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी से परे भी भारत बसता है और ज़िला स्तरीय न्यायपालिका पर ध्यान देने की ज़रूरत है.

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सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो: पीटीआई)

दिल्ली उच्च न्यायालय के ‘एस’ ब्लॉक भवन के उद्घाटन के दौरान प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी से परे भी भारत बसता है और ज़िला स्तरीय न्यायपालिका पर ध्यान देने की ज़रूरत है.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्रीय राजधानी से परे भी भारत बसता है और जिला स्तरीय न्यायपालिका पर ध्यान देने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि न्याय के अधिकार को साकार करने का एक महत्वपूर्ण घटक यह सुनिश्चित करना है कि पर्याप्त न्यायिक अवसंरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) हो जो जिला स्तरीय न्यायपालिका से शुरू होगी.

दिल्ली उच्च न्यायालय के ‘एस’ ब्लॉक भवन के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘मेरा मानना है कि भारत राजधानी से परे भी बसता है.’

उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक काल में ‘हमारी इमारतों का वास्तुशिल्प न्याय पाने वालों के मन में डर पैदा करने की भावना से बनाया गया था और न्याय देने वाले और न्याय जिनके लिए किया जाता है, उनके बीच विभाजन के लिए ऐसा किया गया.’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्याय को लेकर समझ अब काफी बदल गई है और अब इस बात के प्रयास किए जा रहे हैं कि लोग हम तक पहुंचें, उसके बजाय लोगों तक पहुंचा जाए.

भवन का उद्घाटन करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘यह इमारत आधुनिक को लोकतांत्रिक से जोड़ती है और दिल्ली उच्च न्यायालय अपने आप में न्यायिक व्यवस्था के गलियारों में हवा का झोंका है.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, उन्होंने जोड़ा, ‘न्यायाधीशों और वकीलों के रूप में हम जो भी काम करते हैं, उसमें न्यायिक स्थानों को सार्वजनिक या नागरिक स्थान माना जाता है और इस प्रकार वे स्थान सार्वभौमिक रूप से सुलभ होने चाहिए.’

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न्यायिक प्रणाली और अदालतें लोकतांत्रिक, समावेशी और समान रूप से सुलभ होनी चाहिए और उनके डिजाइन को विविध पृष्ठभूमि के लोगों को समायोजित करना चाहिए, जिससे सार्थक भागीदारी सुनिश्चित हो सके.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ’25 और 26 नवंबर को हमने विभिन्न तंत्रों पर विचार-विमर्श और न्याय वितरण प्रणाली को कैसे बढ़ाया जाए, इस पर चर्चा करके संविधान दिवस मनाया. हालांकि, प्रत्येक उच्च न्यायालय के सामने आने वाले मुद्दे अलग-अलग होते हैं, पर एक आम सहमति थी कि हमें न्याय वितरण प्रणाली में विभिन्न समूहों- महिलाओं, दलितों, हाशिए पर रहने वाले समूहों, एलजीबीटीक्यू + समुदाय, विशेष तौर पर सक्षम व्यक्तियों, बुजुर्गों और गरीबों को एक सार्थक तरीके से शामिल करने के लिए कई न्यायसंगत और समान तरीके लाने चाहिए.’

उन्होंने आगे कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि न्याय तक समान पहुंच प्रदान की जा रही है, न्यायिक ढांचे के डिजाइन और प्रशासन पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘न्याय तक पहुंच के अधिकार को साकार करने का एक महत्वपूर्ण घटक यह सुनिश्चित करना है कि हमारे पास भौतिक और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और मानव संसाधन सहित पर्याप्त न्यायिक बुनियादी ढांचा हो.’

उन्होंने आगे कहा, ‘और कहां से शुरुआत करना सबसे अच्छा है? मुझे लगता है कि हमें जमीनी स्तर पर शुरू करना होगा जहां हमारी जिला न्यायपालिका स्थित है. क्योंकि यह वास्तव में हमारी जिला न्यायपालिका है जिसका आम नागरिकों के जीवन पर तत्काल प्रभाव पड़ता है, जहां मुश्किल में पड़े लोग अपने दैनिक जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए पहले पहुंचते हैं… मुझे लगता है कि वहीं सुधार की सबसे ज्यादा जरूरत है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)