केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के शोधार्थियों को मिलने वाली छात्रवृत्ति बंद की

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने लोकसभा में बताया कि अल्पसंख्यक समुदायों के रिसर्च स्कॉलर्स को मिलने वाली मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप को इस शैक्षणिक वर्ष से बंद किया जा रहा है. यह फेलोशिप सच्चर समिति की सिफ़ारिशों को लागू करने के लिए यूपीए शासनकाल में शुरू की गई थी.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने लोकसभा में बताया कि अल्पसंख्यक समुदायों के रिसर्च स्कॉलर्स को मिलने वाली मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप को इस शैक्षणिक वर्ष से बंद किया जा रहा है. यह फेलोशिप सच्चर समिति की सिफ़ारिशों को लागू करने के लिए यूपीए शासनकाल में शुरू की गई थी.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को मिलने वाली मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप (एमएएनएफ) को इस शैक्षणिक वर्ष से बंद करने का फैसला किया है. इस फेलोशिप को सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू करने के तौर पर यूपीए सरकार के दौरान शुरू किया गया था.

द हिंदू के अनुसार, अल्पसंख्यक मंत्रालय संभाल रहीं केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने गुरुवार को लोकसभा में कहा कि यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि एमएएनएफ कई अन्य योजनाओं के साथ ओवरलैप कर रही थी.

ईरानी ने कहा, चूंकि एमएएनएफ योजना सरकार द्वारा लागू उच्च शिक्षा के लिए कई अन्य फेलोशिप योजनाओं के साथ ओवरलैप करती है और अल्पसंख्यक छात्रों को पहले से ही ऐसी योजनाओं के तहत कवर किया गया है, इसलिए सरकार ने 2022-23 से एमएएनएफ योजना को बंद करने का फैसला किया है.’

उन्होंने कहा कि योजना को लागू करने वाले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, इसके तहत 2014-15 और 2021-22 के बीच लगभग 6,722 उम्मीदवारों का चयन किया गया था और इस दौरान 738.85 करोड़ रुपये की फेलोशिप वितरित की गई.

इससे पहले जुलाई महीने में द हिंदू ने एक रिपोर्ट में बताया था कि शोधार्थियों को फेलोशिप मिलने में कई महीनों की देर हुई थी. साथ ही छात्रों ने इस योजना के जारी रहने को लेकर भी संदेह जताया था.

उसी महीने ईरानी ने संसद में कहा कि 2019-20 के बाद से केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों द्वारा शुरू की गई अधिकांश योजनाओं के तहत लाभार्थियों की संख्या में कमी आई है

गुरुवार को ईरानी ने कांग्रेस सांसद टीएन प्रतापन के एक सवाल के जवाब में कहा कि एमएएनएफ को छोड़कर ऐसी सभी योजनाएं अल्पसंख्यकों सहित सभी समुदायों के उम्मीदवारों के लिए खुली हैं, लेकिन अल्पसंख्यक छात्रों को मिली फेलोशिप का विवरण केवल एमएएनएफ के तहत ही लिया जाता है.

प्रतापन ने कहा कि वह एमएएनएफ को रोकने का मुद्दा संसद में उठाएंगे. उन्होंने कहा, ‘यह नाइंसाफी है. कई शोधार्थी इस कदम से आगे पढ़ने का अवसर खो देंगे.’

इस बीच, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन के जामिया मिलिया इस्लामिया के अध्यक्ष एनएस अब्दुल हमीद ने कहा कि यह मुद्दा कई अल्पसंख्यक छात्रों को प्रभावित करेगा जिन्हें ओबीसी नहीं माना जाता है.

हमीद ने कहा, ‘अल्पसंख्यकों, ओबीसी, दलितों और आदिवासियों के लिए छात्रवृत्ति ओवरलैप हो जाती थी क्योंकि आवेदक समान सामाजिक या धार्मिक पृष्ठभूमि से हो सकते हैं. हम केंद्र से विसंगतियों को दूर करने की मांग करते रहे हैं. विसंगतियों को दूर करने के बजाय छात्रवृत्ति को पूरी तरह बंद कर दिया. यह कई मुस्लिम, सिख और ईसाई छात्रों को प्रभावित करेगा, जिन्हें विभिन्न राज्यों में ओबीसी के रूप में नहीं माना जाता है.’

गौरतलब है कि इससे पहले पिछले महीने सरकार ने एक आदेश में कहा था कि अब से पहली से आठवीं कक्षा तक के अल्पसंख्यक छात्रों को प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप नहीं दी जाएगी.

केंद्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार क़ानून का हवाला देते हुए एक नोटिस जारी करते हुए कहा था कि वह इस क़ानून के तहत पहली से आठवीं कक्षा तक के छात्रों को अनिवार्य शिक्षा प्रदान कर रही है, इसलिए स्कॉलरशिप दिए जाने की ज़रूरत नहीं है.

हालांकि, विभिन्न विपक्षी दलों समेत अल्पसंख्यक संगठनों ने इसका विरोध किया था.

कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला का कहना था, ‘पिछले आठ साल से भाजपा सरकार ने लगातार वंचितों के अधिकारों पर हमला बोला है, वो चाहे एससी/एसटी/ओबीसी-अल्पसंख्यकों का बजट घटाना हो या जघन्य अत्याचार हो. हम इसके खिलाफ आंदोलन करेंगे. यह फैसला तुरंत वापस लें.’

बसपा नेता कुंवर दानिश अली ने कहा था कि सरकार ने अल्पसंख्यक छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति पर रोक लगाकर गरीब बच्चों को शिक्षा से दूर रखने का नया तरीका निकाला है.

इनके अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी छात्रवृत्ति सीमित करने के फैसले पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी.