जम्मू: कश्मीर में काम करने से भयभीत आरक्षित श्रेणी के कर्मचारियों का प्रदर्शन छह महीने से जारी

जम्मू कश्मीर की 2006 की अंतर जिला भर्ती नीति के तहत जम्मू संभाग में अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को कश्मीर में इसी श्रेणी के लिए आरक्षित पदों के लिए आवेदन की अनुमति दी थी. बीते कुछ समय में आरक्षित श्रेणी के कर्मचारियों पर हुए टारगेटेड हमलों के बाद जून में जम्मू लौटे ये कर्मचारी तबसे घाटी से अपने तबादले की मांग कर रहे हैं.

जम्मू स्थित सरकारी कर्मचारी, जो कश्मीर में तैनात हैं, सोमवार को जम्मू में अपने गृह जिलों में अपने स्थानांतरण की मांग को लेकर एक विरोध प्रदर्शन किया. (फोटो: पीटीआई)

जम्मू कश्मीर की 2006 की अंतर जिला भर्ती नीति के तहत जम्मू संभाग में अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को कश्मीर में इसी श्रेणी के लिए आरक्षित पदों के लिए आवेदन की अनुमति दी थी. बीते कुछ समय में आरक्षित श्रेणी के कर्मचारियों पर हुए टारगेटेड हमलों के बाद जून में जम्मू लौटे ये कर्मचारी तबसे घाटी से अपने तबादले की मांग कर रहे हैं.

कश्मीर में तैनात जम्मू के रहने वाले सरकारी कर्मचारियों के एक विरोध प्रदर्शन की तस्वीर. (फाइल फोटो: पीटीआई)

जम्मू: कश्मीर में सरकारी कर्मचारियों पर हमलों के दौर के बाद वहां काम करने से डरे हुए आरक्षित श्रेणी के कर्मी करीब छह माह से जम्मू में प्रदर्शन कर रहे हैं और अपने तबादले की मांग कर रहे हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू कश्मीर के ग्रामीण विकास विभाग के 32 वर्षीय कर्मचारी मनमोहन लाल पिछले छह महीनों से पनामा चौक पर धरने पर बैठे हुए हैं. जम्मू कश्मीर सरकार की अंतर जिला भर्ती नीति के तहत कश्मीर में तैनात कई आरक्षित श्रेणी के कर्मचारियों में शामिल मनमोहन जम्मू में स्थानांतरण की मांग कर रहे हैं, जहां से उन्हें नौकरी के लिए भर्ती किया गया था.

कुलगाम जिले के गोपालपोरा गांव में सरकारी हाईस्कूल के बाहर 31 मई को आतंकवादियों द्वारा एक स्कूल शिक्षक रजनी बाला की हत्या के बाद मनमोहन सहित अधिकांश कर्मचारी जून में जम्मू लौट आए थे.

पिछले साल आरक्षित श्रेणियों के कर्मचारियों पर निशाना बनाकर हुए हमलों के बाद प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उन्हें मुस्लिम बहुल कश्मीर में काम पर लौटने में डर लगता है.

जम्मू के कठुआ जिले के रहने वाले मनमोहन अब गंभीर संकट में घिरे हुए हैं, अगर वह जम्मू में रहना ही चुनते हैं तो उन्हें अत्यधिक वित्तीय संकट का सामना करना पड़ेगा क्योंकि काम पर न पहुंचने के कारण जून से उनका वेतन रोक दिया गया है. वहीं, अगर वे घाटी में लौटते हैं तो उन्हें आतंकवादियों से अपनी जान का खतरा है.

मनमोहन को 2015 में आरक्षित श्रेणियों से संबंधित उम्मीदवारों के लिए सरकार की अंतर जिला भर्ती नीति के तहत बडगाम में ग्रामीण विकास विभाग में नियुक्त किया गया था.

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए मनमोहन ने बताया है कि उनके पास अपने दो बच्चों की स्कूल की फीस भरने और मोतियाबिंद से पीड़ित अपनी पत्नी का कठुआ के सरकारी मेडिकल कॉलेज में ऑपरेशन करवाने के लिए भी पैसे नहीं हैं.

वहीं, जम्मू के आरएस पुरा नगर की स्कूल शिक्षिका बिमला देवी और उनके पति बुआ दित्ता को अक्टूबर तक का मासिक वेतन मिला है.

मुस्लिम बहुल जिले गांदरबल में शिक्षा विभाग में 2009 से तैनात दंपति जून से ही जम्मू में रह रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘अधिकारियों ने हमारे अक्टूबर के वेतन को रोक दिया था, लेकिन उन्होंने इसे बाद में यह कहते हुए जारी कर दिया कि हमें नवंबर के लिए अपने वेतन की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, जब तक कि हम बायोमीट्रिक प्रणाली के माध्यस से अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराते हैं.’

दंपति का कहना है कि सुरक्षा बलों द्वारा हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद 2016 में हुई अशांति के दौरान भी वे कश्मीर में ही रहे थे लेकिन तब सिर्फ कर्फ्यू लगा था, अल्पसंख्यक समुदाय के कर्मचारियों के लिए हालात आज जितने खराब नहीं थे.

बता दें कि पांचवी और सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले उनके दोनों बच्चे पिछले छह महीनों से ही स्कूल नहीं जा रहे हैं क्योंकि उन्हें उनके स्कूल से ट्रांसफर सर्टिफिकेट नहीं मिला है.

बिमला देवी का कहना है कि घाटी स्थित उनका स्कूल शैक्षणिक सत्र के अंत में ही सर्टिफिकेट देगा, इसलिए उन्हें जम्मू के स्कूलों में दाखिला नहीं मिल सका.

अंतर जिला भर्ती नीति 2006 में बनाई गई थी जब सरकार ने जम्मू संभाग में अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को कश्मीर घाटी में ऐसी श्रेणी के लिए आरक्षित जिला संवर्ग (कैडर) पदों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का फैसला किया था. ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि मुस्लिम-बहुल कश्मीर में अनुसूचित जाति के लोग नहीं थे, बस कुछ सैकड़ा कश्मीरी पंडित थे.

इन वर्षों के दौरान, सरकार ने जम्मू में अनुसूचित जाति के 3,000-3,500 लोगों को नियुक्त किया और उन्हें घाटी में तैनात किया.

स्वयं को आंदोलनकारी कर्मचारियों का नेता बताने वाले एक प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘शेर-ए-कश्मीर इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसकेआईएमएस) में काम करने वाले 20-25 कर्मचारियों को छोड़कर घाटी में तैनात सभी आरक्षित श्रेणी के कर्मचारी जम्मू में अपने घर लौट आए हैं.’

विरोध प्रदर्शनों के बावजूद भी घाटी में आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों की भर्ती और नियुक्ति नहीं रुकी है. अक्टूबर में सरकार ने जम्मू संभाग से 20-25 लोगों को घाटी में चतुर्थ श्रेणी के पदों पर नियुक्त किया था.

एक अन्य प्रदर्शनकारी ने बताया, ‘वे सभी अपनी जॉइनिंग रिपोर्ट जमा करने के लिए वहां गए और फिर जम्मू लौट आए.’

गांदरबल में ग्रामीण विकास विभाग में पदस्थ अखनूर निवासी राजेश कुमार ने कहा, ‘जम्मू में कई पोस्टग्रेजुएट्स को सालों तक बेरोजगार रहना पड़ा क्योंकि कोई नौकरी नहीं थी. इसलिए वे कश्मीर में भी काम करने के लिए तैयार हो गए. इससे पहले घाटी में हालात इतने खराब कभी नहीं हुए, वरना हममें से कोई भी वहां नौकरी के लिए आवेदन नहीं करता.’

आरक्षित श्रेणियों के कर्मचारियों का कहना है कि घाटी में दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों के मुकाबले उन्हें ज्यादा खतरा है. कश्मीरी पंडितों के लिए सरकार सुरक्षित आवास का निर्माण कर रही है, लेकिन आरक्षित श्रेणी के कर्मचारी घाटी में किराए के निजी आवासों में रहते हैं.

कर्मचारियों के डर के बीच सरकार ने कार्यालयों में अनिवार्य उपस्थिति के लिए बायोमीट्रिक प्रणाली लागू कर दी थी और नवंबर में एक सर्कुलर जारी करके प्रशासनिक सचिवों को उन अधिकारियों की सूची प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था जो कर्मचारियों की उपस्थिति की पुष्टि किए बिना उन्हें वेतन दे रहे थे.

हालांकि, सरकार ने आरक्षित श्रेणी के उन कर्मचारियों के स्थानांतरण संबंधी मुद्दों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है, जो जम्मू से आते हैं लेकिन घाटी में तैनात हैं.

गौरतलब है कि घाटी में हमलों का एक नया दौर जारी है जिसमें उग्रवादी मुख्य रूप से प्रवासी श्रमिकों और कश्मीरी पंडितों को निशाना बना रहे हैं.

मई 2022 में कश्मीर में राहुल भट की हत्या के बाद से पिछले छह महीनों में प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत कार्यरत कश्मीरी पंडित जम्मू में राहत आयुक्त कार्यालय में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

16 अगस्त को शोपियां जिले में ही एक सेब के बगीचे में आतंकवादियों ने एक अन्य कश्मीरी पंडित की गोली मारकर हत्या कर दी थी. फायरिंग में उनका भाई भी घायल हो गया था. उक्त हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन अल बद्र की एक शाखा ‘कश्मीर फ्रीडम फाइटर्स’ ने ली थी.

इस घटना से 24 घंटे पहले एक और कश्मीरी पंडित पर हमला हुआ था. स्वतंत्रता दिवस वाले दिन बडगाम में एक घर पर ग्रेनेड फेंक दिया गया था, जिसमें करन कुमार सिंह नामक एक व्यक्ति घायल हो गया था.

उससे पहले 11 अगस्त को बांदीपुरा जिले में आतंकवादियों ने बिहार के एक प्रवासी मजदूर मोहम्मद अमरेज की गोली मारकर हत्या की थी.

जनवरी 2022 में एक पुलिसकर्मी की अनंतनाग में लक्षित हत्या (Targeted Killing) की गई थी. फरवरी 2022 में ऐसी कोई घटना नहीं हुई. वहीं, मार्च 2022 में सबसे अधिक सात ऐसी हत्याएं हुई, जिनमें पांच आम लोग और एक सीआरपीएफ का जवान शामिल है, जो छुट्टी पर शोपियां आया था, जबकि विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) की बडगाम में हत्या कर दी गई थी. इस हमले में एसपीओ के भाई की भी मौत हो गई थी.

अप्रैल 2022 में एक सरपंच सहित दो गैर-सैनिकों की हत्या की गई थी. वहीं, मई 2022 में आतंकवादियों ने पांच लोगों की लक्षित हत्या की, जिनमें दो पुलिसकर्मी और तीन आम नागरिक थे.

मई 2022 में आतंकवादियों द्वारा गए मारे गए आम नागरिकों में कश्मीरी पंडितों के लिए प्रधानमंत्री के विशेष पैकेज के तहत भर्ती सरकारी कर्मचारी राहुल भट, टीवी एंकर अमरीन भट और शिक्षिका रजनी बाला शामिल थीं.

जून 2022 में एक प्रवासी बैंक प्रबंधक और एक प्रवासी मजदूर की आतंकवादियों ने हत्या कर दी, जबकि एक पुलिस उपनिरीक्षक भी आतंकवादियों के हमले में मारे गए.