यूपी: गोहत्या के मामले में अदालत ने पत्रकार को 3 महीने के लिए ज़िलाबदर किया

मेरठ ज़िले के पत्रकार ज़ाकिर अली त्यागी के ख़िलाफ़ 2020 में दर्ज एक कथित गोकशी के मामले में स्थानीय अदालत ने एक आदेश जारी करते हुए कहा कि क्षेत्र में पत्रकार की उपस्थिति क़ानून-व्यवस्था बिगाड़ सकती है.

मेरठ ज़िले के पत्रकार ज़ाकिर अली त्यागी के ख़िलाफ़ 2020 में दर्ज एक कथित गोकशी के मामले में स्थानीय अदालत ने एक आदेश जारी करते हुए कहा कि क्षेत्र में पत्रकार की उपस्थिति क़ानून-व्यवस्था बिगाड़ सकती है.

ज़ाकिर अली त्यागी. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

नई दिल्ली: मेरठ की एक अदालत ने गोहत्या के एक मामले में सुनवाई करते हुए 12 दिसंबर को स्थानीय पत्रकार जाकिर अली त्यागी के नाम निष्कासन आदेश जारी किया है.

रिपोर्ट के अनुसार, इसमें कहा गया कि उनके गृह जिले मेरठ में उनकी उपस्थिति ‘क्षेत्र में कानून-व्यवस्था के हालात बिगाड़ सकती है.’

मालूम हो कि निष्कासन आदेश पाने वाले लोगों को अधिकारियों द्वारा निर्दिष्ट स्थान में प्रवेश करने से रोक दिया जाता है.

अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट अमित कुमार द्वारा जारी आदेश को द वायर  ने देखा है. इसमें कहा गया है कि अदालत ने 2020 में पत्रकार के खिलाफ दर्ज एक कथित गोहत्या के मामले में उन्हें तीन महीने के अवधि के लिए जिले में प्रवेश करने से रोक दिया है.

त्यागी के खिलाफ 23 अगस्त, 2020 को गोहत्या निवारण अधिनियम (1955) की धारा 5 और 8 के तहत मामला दर्ज किया गया था. इस आरोप में त्यागी ने 2020 में 16 दिन जेल में भी बिताए थे.

किसान होने का दावा करने वाले एक व्यक्ति, जिसने अपने खेत में गोहत्या की घटना का आरोप लगाया था, द्वारा अमीनाबाद में शिकायत करने के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी.

द वायर  से बात करते हुए त्यागी ने कहा कि उन्हें अपना काम करने के लिए बार-बार निशाना बनाया जा रहा है. गोकशी से उनका कोई संबंध नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘सत्ता के सामने सच बोलने और एक पत्रकार होने के चलते मुझे राज्य सरकार द्वारा बार-बार निशाना बनाया जा रहा है, उन्हें मेरे खिलाफ आज तक ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जो किसी भी दावे का समर्थन करता हो. मुझे मेरे ही जिले में जाने से रोकना मेरी पत्रकारिता पर हमला है.’

साथ ही उन्होंने कहा कि यह सत्ता के सुर में सुर न मिलाने वाले पत्रकारों के खिलाफ सरकार द्वारा लंबे समय से अपनाए जा रहे कड़े रुख का नतीजा है.

बता दें कि 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ फेसबुक पर उनके दो पोस्ट के चलते आईटी अधिनियम के तहत उनके खिलाफ दर्ज एक मामले में उन्हें गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने तब 42 दिन जेल में बिताए थे.

पत्रकार ने तब उत्तर प्रदेश पुलिस के खिलाफ शारीरिक प्रताड़ना और हिंसा के कई आरोप लगाए थे. उनका कहना था कि पुलिस ने उनके साथ मारपीट की थी.

जैसा कि तब द वायर  ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा गंगा और यमुना नदियों को ‘जीवित संस्थाएं’ करार देने और उन्हें कानूनी अधिकार देने के बाद त्यागी ने फेसबुक पर लिखा था, ‘गंगा को एक जीवित इकाई घोषित किया गया है, अगर कोई इसमें डूबता है तो क्या आपराधिक आरोप लगाए जाएंगे?’

त्यागी का कहना है कि दूसरा पोस्ट ‘योगी’ शब्द को लेकर किया गया एक वर्ड-प्ले (किसी शब्द को मज़ाकिया तरह से पेश करना) था. यूपी के मुख्यमंत्री अपने नाम के पहले योगी शब्द इस्तेमाल करते हैं.

गौरतलब है कि इस साल रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी एक इंडेक्स में भारत में पत्रकारों की स्थिति पर चिंता जताई गई थी. रिपोर्ट के 20वें संस्करण में भारत को 2022 में 180 में से 150वें स्थान पर रखा गया है, साथ ही भारत को ‘मीडिया के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक’ बताया गया है.

इससे पहले, कमेटी अगेंस्ट असॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट्स की एक अन्य रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर हमलों के विशिष्ट आंकड़ों का खुलासा किया गया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि 2017 के बाद से यूपी के 75 जिलों में से प्रत्येक में पुलिस द्वारा पत्रकारों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं.

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