समलैंगिक विवाह को क़ानूनी मान्यता देने की एक और याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा

इससे पहले नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने दो समलैंगिक जोड़ों के विवाह करने और विशेष विवाह अधिनियम के तहत इसे मान्यता देने की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था. उस याचिका में कहा गया है कि एलजीबीटीक्यू+ नागरिकों को भी उनकी पसंद के व्यक्ति से विवाह का अधिकार मिलना चाहिए.

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(फोटो: रॉयटर्स)

इससे पहले नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने दो समलैंगिक जोड़ों के विवाह करने और विशेष विवाह अधिनियम के तहत इसे मान्यता देने की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था. उस याचिका में कहा गया है कि एलजीबीटीक्यू+ नागरिकों को भी उनकी पसंद के व्यक्ति से विवाह का अधिकार मिलना चाहिए.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक समलैंगिक जोड़े की भारत में उनकी शादी को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिका पर बुधवार को नोटिस जारी किया है.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक 46 वर्षीय भारतीय नागरिक की याचिका पर नोटिस जारी किया, जिनका कहना है कि उन्होंने सितंबर 2010 में अमेरिका में एक अमेरिकी नागरिक से शादी की थी और जून 2014 में पेंसिलविनिया में शादी का रजिस्ट्रेशन कराया था.

दोनों पुणे के निवासी हैं और उनका कहना है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत शादी को पंजीकृत कराने के उनके प्रयास विफल हो गए क्योंकि विवाह रजिस्ट्रार ने उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया.

उन्होंने आगे बताया है कि बाद में उन्होंने वाशिंगटन डीसी में भारतीय दूतावास को विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 के तहत उनके विवाह को पंजीकृत करने की मांग की, लेकिन उस अनुरोध को भी ठुकरा दिया गया.

अधिवक्ता नूपुर कुमार के माध्यम से दायर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका में तर्क दिया गया कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21, जिसकी गारंटी सुप्रीम कोर्ट ने नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ मामले में समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर रखने वाले फैसले में दी थी और कहा था कि वे ‘एलजीबीटी और गैर-एलजीबीटी समुदाय पर समान रूप से लागू होते हैं, के तहत याचिकाकर्ताओं के अधिकारों का उल्लंघन करने जैसा है.

ज्ञात हो कि जस्टिस चंद्रचूड़ शीर्ष अदालत की उस संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने 2018 में सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया था.

याचिका में अदालत से इस आशय की घोषणा जारी करने का आग्रह किया गया है कि एलजीबीटीक्यू+ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर और क्वीर+)  समुदाय से संबंधित व्यक्तियों को विषमलैंगिक (हेट्रोसेक्सुअल) लोगों के समान विवाह का अधिकार है और इसलिए इससे इनकार करना संविधान के भाग III, अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों में उन्हें बरकरार रखें जाने का उल्लंघन है.

उल्लेखनीय है कि इससे पहले नवंबर महीने में शीर्ष अदालत ने दो समलैंगिक जोड़ों की अलग-अलग याचिकाओं पर केंद्र और अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को नोटिस जारी किया था.

दोनों जोड़ों ने विवाह के उनके अधिकार को लागू करने और इसे विशेष विवाह कानून, 1954 के तहत मान्यता देने का अनुरोध किया है. उनकी याचिका में कहा गया था कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार एलजीबीटीक्यू+ नागरिकों को भी मिलना चाहिए.

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से उन दो याचिकाओं पर भी जवाब मांगा जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित याचिकाओं को शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया है. लंबित याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

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