साल 2012 में दिल्ली में पैरामेडिकल की छात्रा से सामूहिक बलात्कार के बाद बनाए गए ‘निर्भया फंड’ के लिए 2021-22 तक कुल आवंटन 6,000 करोड़ रुपये से अधिक रहा, जिसमें से 30 प्रतिशत धनराशि का इस्तेमाल नहीं हुआ है.
नई दिल्ली: साल 2012 में पैरामेडिकल की छात्रा से सामूहिक बलात्कार के बाद बनाए गए ‘निर्भया फंड’ की 6,000 करोड़ रुपये की धनराशि के लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल नहीं हो पाया है.
16-17 दिसंबर, 2012 की रात इस छात्रा के साथ उसके एक मित्र की मौजूदगी में चलती बस में छह लोगों ने बलात्कार किया गया और बुरी तरह से घायल छात्रा को उनके मित्र के साथ बस से बाहर फेंक दिया गया. बाद में इलाज के लिए सिंगापुर ले जाई गई पीड़िता ने वहीं दम तोड़ दिया था.
इस 23 वर्षीय पीड़िता को ‘निर्भया’ नाम दिया गया और देश में उसके लिए न्याय की मांग ने आंदोलन का रूप ले लिया था. देशभर में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए थे और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने और बलात्कार के लिए कड़ी सजा का प्रावधान करने की मांग उठी थी. लोगों के रोष के देखते हुए सरकार ने बलात्कार के खिलाफ नया कानून लागू किया था.
इस मामले में मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह सहित छह व्यक्ति आरोपी बनाए गए. इनमें से एक नाबालिग था.
मामले के एक आरोपी राम सिंह ने सुनवाई शुरू होने के बाद तिहाड़ जेल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली. नाबालिग को सुनवाई के बाद दोषी ठहराया गया और उसे सुधार गृह भेज दिया गया. तीन साल तक सुधार गृह में रहने के बाद उसे 2015 में रिहा कर दिया गया.
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 20 मार्च 2020 को इस मामले के चार दोषियों को फांसी दी गई थी.
बलात्कार की घटना के बाद हुए व्यापक आंदोलन के बीच देश में महिलाओं की सुरक्षा को मजबूत बनाने के उद्देश्य से ‘निर्भया फंड’ नामक कोष की स्थापना की गई थी.
अब, एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि फंड की स्थापना से लेकर 2021-22 तक कोष के तहत कुल आवंटन 6,000 करोड़ रुपये से अधिक रहा है, जिसमें से 4,200 करोड़ रुपये का उपयोग किया जा चुका है.
उन्होंने बताया कि लगभग 30 प्रतिशत धनराशि का उपयोग किया जाना है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, निर्भया फ्रेमवर्क के तहत गठित अधिकारियों की एक अधिकार प्राप्त समिति (ईसी) संबंधित मंत्रालयों/विभागों/कार्यान्वयन एजेंसियों के साथ निर्भया कोष के तहत फंडिंग के प्रस्तावों का मूल्यांकन और सिफारिश करती है.
अब तक उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और दिल्ली में उन्हें जारी किए गए कुल फंड में से क्रमशः लगभग 305 करोड़, 304 करोड़ और 413 करोड़ रुपये इस्तेमाल किए जा चुके हैं. वहीं, 2021-22 तक तेलंगाना में फंड से मिली धनराशि में से 200 करोड़, मध्य प्रदेश 94 करोड़ और महाराष्ट्र में 254 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया है.
बताया गया है कि फंड के तहत मिले धन का उपयोग वन स्टॉप सेंटर, फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करने, सुरक्षा उपकरण बनाने जैसे कई अन्य कामों के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों के लिए फॉरेंसिक किट खरीदने के लिए किया गया.
यह पूछे जाने पर कि 30 प्रतिशत फंड इस्तेमाल क्यों नहीं हुआ, अधिकारी ने कहा कि इसके लिए विभिन्न कारक जैसे कि सक्षम अधिकारियों से आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करने में लगने वाला समय, अनुबंध देने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया, कोविड महामारी जैसे अप्रत्याशित कारणों से पड़ा व्यवधान देरी का प्रमुख कारण हैं.
महिला अधिकार कार्यकर्ता रंजना कुमारी ने कहा, ‘फंड के कम उपयोग से पता चलता है कि सरकार में महिला सुरक्षा के लिए कोई प्रतिबद्धता नहीं है. फंड का कुप्रबंधन है और इसीलिए अब तक इसका उपयोग नहीं किया गया है.’
महिला अधिकार एक्टिविस्ट योगिता भयाना ने भी कहा, ’10 साल हो गए हैं और चीजें बद से बदतर होती जा रही हैं. महिला सुरक्षा अब भी एक दूर का सपना है और हमें इसके लिए काम करने की जरूरत है.’
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों महाराष्ट्र में निर्भया कोष के तहत मुंबई पुलिस द्वारा ख़रीदे गए वाहनों का इस्तेमाल मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के विधायकों और सांसदों को ‘वाई-प्लस एस्कॉर्ट सुरक्षा’ प्रदान करने के लिए किए जाने का मामला सामने आया था.
इसके बाद विपक्ष ने सरकार पर हमला करते हुए पूछा कि क्या सत्तारूढ़ विधायकों की सुरक्षा महिलाओं की सुरक्षा से अधिक महत्वपूर्ण है.
ख़बरों के अनुसार, विवाद के बाद वाहनों को वापस कर दिया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)