यौन उत्पीड़न की शिकायत को देरी का हवाला देकर ख़ारिज नहीं किया जा सकता: हाईकोर्ट

पश्चिम बंगाल की कल्याणी यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर और रिसर्च स्कॉलर के ख़िलाफ़ यौन शोषण के आरोप को लेकर यूनिवर्सिटी की आंतरिक शिकायत समिति ने पीड़िता के जल्द शिकायत न करने की बात कही थी. उसकी रिपोर्ट को नियम विपरीत बताते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसी शिकायतें आम तौर पर बहुत सोच-विचार के बाद दायर की जाती हैं.

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कलकत्ता हाईकोर्ट. (फोटो साभार: विकीपीडिया)

पश्चिम बंगाल की कल्याणी यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर और रिसर्च स्कॉलर के ख़िलाफ़ यौन शोषण के आरोप को लेकर यूनिवर्सिटी की आंतरिक शिकायत समिति ने पीड़िता के जल्द शिकायत न करने की बात कही थी. उसकी रिपोर्ट को नियम विपरीत बताते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसी शिकायतें आम तौर पर बहुत सोच-विचार के बाद दायर की जाती हैं.

कलकत्ता हाईकोर्ट. (फोटो साभार: विकीपीडिया)

नई दिल्ली: कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि यौन उत्पीड़न की शिकायत को खारिज करने के लिए देरी को आधार नहीं बनाया जा सकता है क्योंकि इस तरह की शिकायतें आम तौर पर बहुत सोच-विचार के बाद दायर की जाती हैं. कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि इससे पहले (पीड़िता को) खुद अपने भविष्य, समाज और इससे जुड़े लांछन के डर से उबरना पड़ता है.

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, अदालत कल्याणी विश्वविद्यालय (केयू) के एक प्रोफेसर और एक रिसर्च स्कॉलर की अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्होंने एक छात्रा द्वारा की गई यौन शोषण की शिकायत संबंधी पुलिस चार्जशीट रद्द करने की मांग की थी, जिसमें उन्हें नामजद किया गया है. हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी.

जस्टिस शम्पा दत्त (पॉल) ने विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) के इस निष्कर्ष पर सवाल उठाया कि एमफिल की छात्रा ने प्रोफेसर और रिसर्च स्कॉलर के खिलाफ तुरंत विभाग प्रमुख को शिकायत नहीं की और इसके बजाय अपने दोस्तों से यह बात साझा की. इसे लेकर जज ने कहा, ‘ऐसे मामलों में दोस्तों को ही पहले भरोसे में लिया जाता है.’

अख़बार के अनुसार, छात्रा ने सबसे पहले नौ नवंबर 2017 को केयू कुलपति से इस बारे में शिकायत की थी. बाद में उन्होंने दूसरी शिकायत रजिस्ट्रार को भेजी. फिर, मार्च 2018 में तीसरी शिकायत आईसीसी के पीठासीन अधिकारी को भेजी गई थी.

21 मार्च, 2018 को महिला ने बंगाल के राज्यपाल और राज्य के शिक्षा मंत्री को पत्र लिखा. इसके बाद, आईसीसी ने उनकी शिकायत का संज्ञान लिया और 2 जुलाई, 2018 को प्रोफेसर और रिसर्च स्कॉलर को सभी आरोपों से बरी कर दिया. आईसीसी ने न केवल महिला के आरोपों को खारिज किया, बल्कि उन्हें सजा भी दी.

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि आईसीसी के निष्कर्ष ‘अवैध और नियमों के खिलाफ’ थे और महिला की शिकायत को उचित तरह से नहीं देखा गया.