भाजपा सांसद रमा देवी की अध्यक्षता वाली सामाजिक न्याय और अधिकारिता संबंधी संसद की स्थायी समिति ने लोकसभा में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए मुआवज़े के भुगतान में देरी पर नाराज़गी व्यक्त की और कहा कि नीतिगत फैसलों को लागू करने का दायित्व केंद्र सरकार का है.
नई दिल्ली: एक संसदीय स्थायी समिति ने सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मारे गए 104 लोगों के परिवारों को मुआवजा जारी करने में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा देरी बरते जाने की बात कही है.
इस संबंध में सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसद की स्थायी समिति ने 16 दिसंबर को लोकसभा में रिपोर्ट पेश की थी. इस समिति की अध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद रमा देवी हैं.
स्क्रॉल वेबसाइट के मुताबिक, पैनल ने केंद्र सरकार से मृत व्यक्तियों के परिवारों को मुआवजा देने के लिए उपयुक्त उपाय अपनाने को कहा है.
इसने कहा है, ‘समिति को खुशी होगी अगर लंबित 104 मामलों में मुआवजा देने में और देरी नहीं की जाती है.’
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 1993 के बाद से सीवर की सफाई के दौरान मरने वाले सभी परिवारों को मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपये दिए जाएं.
हालांकि, 2019 में द वायर द्वारा दायर सूचना के अधिकार (आरटीआई) से पता चला कि 1993 और 2019 के बीच, सीवर की सफाई करते हुए मारे गए श्रमिकों में से केवल 50 फीसदी के परिवारों को ही मुआवजा मिला था.
दस्तावेजों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि कई मामलों में पीड़ितों के परिवारों को 10 लाख रुपये के बजाय 5 लाख रुपये, 4 लाख रुपये या दो लाख रुपये भी दिए गए.
अपनी रिपोर्ट में, संसदीय स्थायी समिति ने पिछले सप्ताह कहा कि नीतिगत फैसलों को लागू करने का दायित्व केंद्र सरकार का है. इसने ‘मामलों को प्रोसेस किए जाने की गति’ पर नाराजगी जताई.
समिति ने जोर देकर कहा कि मृत व्यक्तियों के परिवारों को समयबद्ध तरीके से मुआवजा दिया जाना चाहिए.
इसने आगे कहा कि अवरोध दूर करने के लिए मानदंड तय किए जाने चाहिए ताकि किसी में भी निर्धारित मानदंडों का उल्लंघन करने का साहस न हो और यदि कोई ऐसा करता पाया जाता है तो दोषी की जवाबदेही बिना देरी तय की जाए.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने बीते 13 दिसंबर को लोकसभा को बताया था कि पिछले तीन वर्षों (2019 से 2022) में देश में मैला ढोने से किसी की मौत नहीं हुई है. हालांकि, इसने जोड़ा था कि इस अवधि में कुल 233 लोगों की मौत ‘सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करते समय दुर्घटनाओं के कारण’ हुई थी.
2013 के मैनुअल स्कैवेंजर्स अधिनियम मैला ढोने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. हालांकि, यह प्रथा अभी भी देश के कई हिस्सों में जारी है. मैला ढोने की प्रथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करती है जो सम्मान के साथ जीवन जीने के अधिकार की गारंटी देता है.