यह मूर्खतापूर्ण समय है, कौन क्या पहन रहा है हम उस पर विवाद कर रहे हैं: रत्ना पाठक शाह

शाहरुख़ ख़ान और दीपिका पादुकोण स्टारर ‘पठान’ फिल्म के गीत ‘बेशर्म रंग’ को लेकर जारी विवाद के बीच दिग्गज अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह ने कहा कि किसी भी समाज के लिए इस तरह कार्य करना अच्छी बात नहीं है. कला और शिल्प को अपनी पूरी क्षमता पाने के लिए स्वतंत्रता की भावना की आवश्यकता होती है, जो मुश्किल होता जा रहा है.

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रत्ना पाठक शाह. (फोटो साभार: इंस्टाग्राम)

शाहरुख़ ख़ान और दीपिका पादुकोण स्टारर ‘पठान’ फिल्म के गीत ‘बेशर्म रंग’ को लेकर जारी विवाद के बीच दिग्गज अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह ने कहा कि किसी भी समाज के लिए इस तरह कार्य करना अच्छी बात नहीं है. कला और शिल्प को अपनी पूरी क्षमता पाने के लिए स्वतंत्रता की भावना की आवश्यकता होती है, जो मुश्किल होता जा रहा है.

रत्ना पाठक शाह. (फोटो साभार: इंस्टाग्राम)

नई दिल्ली: वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक माहौल और ऐसे समय में जब हिंदी फिल्म उद्योग नियमित रूप से नफरत का सामना कर रहा है, दिग्गज अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह इस बात को लेकर आशावादी नजर आ रही हैं कि समय बदलेगा.

उनकी पहली गुजराती फिल्म ‘कच्छ एक्सप्रेस’ 6 जनवरी को रिलीज होने वाली है. विरल शाह द्वारा निर्देशित इस फिल्म में रत्ना पाठक शाह के अलावा मानसी पारेख, धर्मेंद्र गोहिल, दर्शील सफारी और विराफ पटेल भी नजर आएंगे.

इस दौरान इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उन्होंने उस विडंबना के बारे में बताया जिससे देश गुजर रहा है. उन्होंने कहा, ‘लोगों की थाली में खाना नहीं है, लेकिन वे किसी और के पहने हुए कपड़ों पर गुस्सा कर सकते हैं.’

फिलहाल शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण स्टारर ‘पठान’ फिल्म का एक गीत ‘बेशर्म रंग’ विवादों में घिरा हुआ है. भाजपा के मंत्रियों और दक्षिणपंथी संगठनों ने दावा किया है कि गीत ने भगवा रंग का अपमान किया है, जो हिंदू समुदाय के लिए पवित्र है.

यह पूछे जाने पर कि ऐसे समय में कलाकार होने पर कैसा महसूस होता है, जब उनके द्वारा पहने जाने वाले परिधान का रंग एक राष्ट्रीय विषय बन जाता है, रत्ना ने कहा, ‘मैं कहूंगी कि अगर ऐसी चीजें आपके दिमाग में सबसे ऊपर हैं तो हम बहुत मूर्खतापूर्ण समय में जी रहे हैं. इसमें ऐसा कुछ नहीं है, जिसके बारे में मैं बहुत ज्यादा बात करना चाहूंगी या इसे ज्यादा महत्व दूंगी.’

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन मैं उम्मीद कर रही हूं कि भारत में इस समय जितने समझदार लोग दिखाई दे रहे हैं, उससे कहीं अधिक समझदार लोग हैं. वे इन स्थितियों से पार पा लेंगे, क्योंकि जो हो रहा है, भय और बहिष्कार की यह भावना टिकाऊ नहीं है. मुझे लगता है कि इंसान एक हद से ज्यादा नफरत को बर्दाश्त नहीं कर सकता. एक विद्रोह होता है, लेकिन तब जब आप घृणा से थक जाते हैं. मैं उस दिन के आने का इंतजार कर रही हूं.’

पिछले कुछ वर्षों में हिंदी फिल्म उद्योग सोशल मीडिया पर लगातार नफरत का शिकार होता रहा है, जिसने कई बार जमीन पर भी यह विरोध देखा है.

‘पठान’ फिल्म के गीत ‘बेशर्म रंग’ के रिलीज होने के बाद बीते 16 दिसंबर को हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों ने जब यह जाना कि शाहरुख खान की एक अन्य फिल्म ‘डंकी’ की शूटिंग चल रही है, तो उन्होंने मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थिर संगमरमर की चट्टानों के प्रसिद्ध भेड़ाघाट और सुरम्य धुआधार जलप्रपात पर विरोध करने की कोशिश की. इन जगहों पर फिल्म की शूटिंग हो रही है.

इन विवादों के दौरान पूरे फिल्म उद्योग को काम करने के लिए एक अयोग्य जगह के रूप में चित्रित कर दिया जाता है. यह पूछे जाने पर कि क्या यह धारणा रत्ना पाठक शाह को पीड़ा देती है, उन्होंने कहा कि इसमें से अधिकांश परिस्थितियां विशुद्ध रूप से निर्मित की जाती हैं.

फिल्मों में लगभग चार दशकों से काम कर रहीं रत्ना ने कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि आम आदमी या यूं कहें कि कुछ लोगों के मन में कलाकारों के प्रति अवमूल्यन की भावना होती है और यह भी कि कुछ मुद्दों को उबलने देने के लिए लगातार हवा दी जाती है.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे यह बहुत दृढ़ता से लगता है कि किसी भी समाज के लिए इस तरह कार्य करना अच्छी बात नहीं है. कला और शिल्प को अपनी पूरी क्षमता पाने के लिए स्वतंत्रता की भावना की आवश्यकता होती है, जो मुश्किल होता जा रहा है.’

हालांकि, रत्ना पाठक शाह ने यह भी कहा कि हिंदी फिल्म उद्योग ने हाल के दिनों में अपने कुछ बेहतरीन काम किए हैं. उन्हें लगता है कि फिल्म उद्योग को उसके कमतर काम को ठीक करने के लिए कहा जा सकता है, लेकिन किसी एक लेबल में सभी फिल्म कलाकारों को चित्रित कर देना दुखद है.

अभिनेत्री ने कहा, ‘हमने ऐसा कोई सामान नहीं बनाया है, जो किसी भी प्रकार की प्रशंसा के योग्य हो. हमारे द्वारा बनाई गईं बहुत सी चीजें (फिल्म) बहुत भयानक या औसत दर्जे की होती हैं. हालांकि एक फिल्म बनाने में जो प्रयास किया जाता है और वह बहुत बड़ा होता है. फिल्मों और इससे जुड़े कलाकारों को किसी भी तरह चित्रित कर देना, बहुत ही दयनीय है. यह समय की बर्बादी है. क्या हमारे पास सोचने के लिए अन्य चीजें नहीं हैं?’

उन्होंने कहा, ‘हमारे देश को देखें, महामारी ने हमारे देश में छोटे निर्माण उद्योगों को मिटा दिया है. लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त नहीं है और हम इस बात पर उपद्रव कर रहे हैं कि कौन क्या कपड़े पहन रहा है.’