आईआईटी-केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने सालभर में एससी/एसटी/ओबीसी फैकल्टी के 30% पद भरे: केंद्र

देश भर के 23 आईआईटी और 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों को 5 सितंबर 2021 से 5 सितंबर 2022 के बीच अनुसूचित जाति/जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित रिक्त फैकल्टी पदों को मिशन मोड पर भरने के निर्देश दिए गए थे. इस अवधि में 1,439 रिक्त पदों की पहचान की गई, लेकिन भर्तियां सिर्फ 449 हुईं.

आईआईटी मद्रास. (फोटो: ट्विटर)

देश भर के 23 आईआईटी और 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों को 5 सितंबर 2021 से 5 सितंबर 2022 के बीच अनुसूचित जाति/जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित रिक्त फैकल्टी पदों को मिशन मोड पर भरने के निर्देश दिए गए थे. इस अवधि में 1,439 रिक्त पदों की पहचान की गई, लेकिन भर्तियां सिर्फ 449 हुईं.

आईआईटी मद्रास. (फोटो: ट्विटर)

नई दिल्ली: केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने इस हफ्ते संसद को बताया है कि शीर्ष भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षित श्रेणी के पदों पर फैकल्टी नियुक्त करने के लिए चले एक साल लंबे मिशन मोड भर्ती अभियान के बावजूद केवल 30 फीसदी से अधिक रिक्तियां भरी जा सकी हैं.

द हिंदू के मुताबिक, 5 सितंबर 2021 से 5 सितंबर 2022 के बीच एक वर्ष में देश भर के 23 आईआईटी और 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग (एससी/एसटी/ओबीसी) के लिए आरक्षित शिक्षण संबंधी पदों पर रिक्तियों को भरने के लिए एक मिशन मोड भर्ती करने के निर्देश दिया गया था. इस अवधि के दौरान, 1439 रिक्तियों की पहचान की गई, जिनमें से सिर्फ 449 भर्तियां की गईं.

45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से 33 ने इन श्रेणियों में कुल 1,097 रिक्तियों की पहचान की थी, जिनमें से सिर्फ 212 भरी गई थीं.

आंकड़ों से यह भी पता चला है कि इन 33 विश्वविद्यालयों में से 18 ने रिक्तियां चिह्नित करने के बावजूद अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के फैकल्टी सदस्यों की भर्ती नहीं की थी.

इन 18 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने 75 रिक्तियों की पहचान की थी, जिनमें से कोई भी भरी नहीं गई. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने 114 रिक्तियों की पहचान की, जिनमें से कोई भी भरी नहीं गई. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय ने 7 रिक्तियों की पहचान की, जिनमें से कोई भी भरी नहीं गई.

बारह केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने इस अभियान के दौरान लगभग कोई भर्ती नहीं की. उनका कहना था कि उनके पास कोई बैकलॉग नहीं था और वे इन श्रेणियों में किसी भी रिक्त पद की पहचान नहीं कर सके.

इस साल सितंबर तक संसद में पेश किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाली फैकल्टी के लिए एससी/एसटी/ओबीसी श्रेणियों में 920 से अधिक पदों का संयुक्त बैकलॉग था.

वहीं, 23 आईआईटी में से केवल 10 आईआईटी ही प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों के लिए इन श्रेणियों में 342 रिक्तियों की पहचान कर पाए. इन श्रेणियों में 19 आईआईटी में कुल 237 पद भरे गए थे.

आईआईटी बॉम्बे के आंबेडकर पेरियार फुले स्टडी सर्कल (एपीपीएससी) द्वारा किया आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि 13 आईआईटी इस भर्ती अभियान में भरी जाने वाली रिक्तियों की पहचान करने में असमर्थ रहे क्योंकि क्योंकि वे ‘फैकल्टी पदों के लिए लचीली कैडर संरचना’ का पालन करते हैं.

हालांकि, इसके बावजूद तीन आईआईटी (आईआईटी हैदराबाद, आईआईटी भिलाई, आईआईटी भुवनेश्वर) को छोड़कर अन्य ने इस दौरान बहुत ही कम संख्या में एससी/एसटी/ओबीसी फैकल्टी की भर्ती की. विश्लेषण आगे बताता है कि इस मिशन मोड भर्ती अभ्यास के अंत में 14 आईआईटी में 358 रिक्तियां बनी रहीं.

इस समयावधि में की गई भर्तियों में एपीपीएससी ने पाया कि आईआईटी खड़गपुर, आईआईटी रुड़की, आईआईटी आईएसएम धनबाद, आईआईटी तिरुपति, आईआईटी गोवा और आईआईटी धारवाड़ में किसी भी अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार की भर्ती नहीं की गई.

इसके अलावा, आईआईटी रुड़की में अनुसूचित जाति के किसी भी उम्मीदवार को भर्ती नहीं किया गया था. वहीं, यह भी पाया गया कि अधिकांश आईआईटी ने प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर स्तर पर एससी/एसटी/ओबीसी उम्मीदवारों की भर्ती नहीं की.

लोकसभा में डेटा पेश करते हुए, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के एस. वेंकटेशन के एक प्रश्न के जवाब में शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने कहा, ‘बैकलॉग पदों समेत रिक्तियों को भरना एक सतत प्रक्रिया है.’