निचले असम में बंगाली भाषी मुस्लिम आबादी अधिक है. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने विधानसभा में कहा कि वहां एक परिवार में आठ से 12 बच्चे होते हैं. उन्होंने कहा कि चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान राज्य में वैष्णव मठ की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने वाले सभी लोगों को उसे ख़ाली करना होगा.
गुवाहाटी: असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने बुधवार को विधानसभा में उस समय विवाद खड़ा कर दिया, जब उन्होंने कहा कि अगर कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या की जांच नहीं की गई तो राज्य को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. उन्होंने राज्य में चल रहे बेदखली/अतिक्रमण अभियान के खिलाफ विपक्षी दलों की दलीलों को खारिज करते हुए यह बयान दिया है.
शर्मा ने विपक्षी दलों की अपीलों को दरकिनार करते हुए कहा कि भाजपा शासित राज्य ‘असम में सरकारी और वन भूमि’ को अतिक्रमणमुक्त करने के लिए अभियान जारी रहेगा. उन्होंने कहा कि असम में सरकारी और वन भूमि को खाली कराने का काम भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में रहने तक जारी रहेगा.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्री ने शून्यकाल चर्चा में भाग लेते हुए कहा, ‘अगर निचले असम के लोग परिवार नियोजन नहीं करते हैं, तो 50 साल बाद हमारे लिए जीवित रहना मुश्किल हो जाएगा. वहां एक परिवार में आठ से 12 बच्चे होते हैं.’
निचले असम में बंगाली भाषी मुस्लिम आबादी अधिक है.
मुख्यमंत्री शर्मा ने यह टिप्पणी कांग्रेस विधायक कमलाख्या डे पुरकायस्थ द्वारा इस सप्ताह के शुरू में राज्य के नगांव जिले के बटद्रवा में बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान का मुद्दा उठाए जाने के बाद की.
बीते 20 दिसंबर को कांग्रेस नेताओं की एक टीम ने घटनास्थल का दौरा किया था.
हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा, ‘जमीन खाली कराने का काम जारी रहेगा. हम बटद्रवा सहित राज्यभर में सरकारी और वन भूमि को खाली कराएंगे.’
मुख्यमंत्री ने सदन को यह भी बताया कि कई बेदखल लोग, जो वास्तव में भूमिहीन थे, को उनके सत्यापन के बाद सरकार द्वारा विभिन्न स्थानों पर जमीन के पट्टे (स्वामित्व के दस्तावेज) दिए गए हैं.
उन्होंने कहा, ‘सभी लोग, चाहे हिंदू हों या मुसलमान, उन्हें सात्र (वैष्णव मठ) की जमीन खाली करनी होगी. हम सभी से अतिक्रमण वाली जमीन खाली करने का आग्रह करते हैं. नहीं तो हमें उसे खाली करवाना पड़ेगा.’
कांग्रेस के विधायक रकीबुल हुसैन ने सरकार से बटद्रवा में विस्थापित किए गए लोगों की पेयजल, भोजन जैसी मौलिक आवश्यकताओं पर गौर का आग्रह किया.
इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने कहा, ‘विस्थापित लोगों को पेयजल मुहैया कराने के लिए कोई नीति नहीं है. उन्होंने जमीन पर कब्जा करके कानून तोड़ा है, इसलिए हम उनके लिए शिविर नहीं बना सकते. गैर सरकारी संगठन उनके लिए काम कर सकते हैं.’
जब हुसैन ने दावा किया कि हटाए गए लोग खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं और तालाबों का पानी पी रहे हैं, तो शर्मा ने जवाब दिया कि असमिया लोग युगों से ऐसे पानी का उपयोग करते आ रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में कहा था कि अतिक्रमण करने वाले हमारी जिम्मेदारी नहीं हैं. मैं हमेशा कहता हूं कि हमें (भाजपा) उनके वोटों की जरूरत नहीं है.’
जिन लोगों को जमीनों से हटाया गया है उनमें से अधिकांश बांग्ला भाषी मुसलमान हैं, हालांकि असमिया सहित कई अन्य जातीय समूह भी प्रभावित हुए हैं.
मुख्यमंत्री ने वन भूमि को अतिक्रमण से मुक्त करने के लिए गौहाटी हाईकोर्ट के आदेश का हवाला दिया और कहा कि अगला बड़ा अभियान निचले असम के गोलपाड़ा जिले में चलाया जाएगा.
शर्मा ने कहा, ‘बटद्रवा ने लगातार कांग्रेस को वोट दिया है. पार्टी ने पिछले 75 वर्षों में (आजादी के बाद से) लोगों को जमीन के पट्टे क्यों नहीं दिए? वे सरकारी और वन भूमि पर अतिक्रमण करने वालों को जमीन का अधिकार दे सकते थे. तब हमने उन्हें नहीं हटाया होता.’
मुख्यमंत्री ने बटद्रवा के कांग्रेस विधायक एस. बोरा से जमीनों से हटाए गए लोगों में से वास्तविक भूमिहीनों की पहचान करने और उन्हें ‘पट्टा’ प्राप्त करने के लिए मिशन वसुंधरा के तहत आवेदन करने में मदद करने के लिए कहा.
उन्होंने कांग्रेस विधायकों से सवाल किया कि क्या उन्होंने पीड़ितों की असुरक्षा के साथ ‘राजनीति’ करने के बजाय सरकार में अपने कार्यकाल के दौरान उनके लिए कुछ नहीं करने के लिए बटद्रवा, गोरुखुटी और अन्य स्थानों से निकाले गए लोगों से माफी मांगी है.
मालूम हो कि असम में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में लौटने के बाद से राज्य में कई बेदखली अभियान चलाए गए हैं. सबसे बड़े अभियानों में से एक सितंबर 2021 में दरांग जिले के गोरुखुटी में चला था, जिसमें पुलिस फायरिंग में दो लोगों की जान चली गई थी और 20 से अधिक अन्य घायल हो गए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)