एलजी द्वारा वेतन रोकने संबंधी बयान: कश्मीरी पंडित कर्मचारियों का भाजपा कार्यालय पर प्रदर्शन

कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों समेत अन्य अल्पसंख्यकों की आतंकियों द्वारा निशाना बनाकर की जा रही हत्या के विरोध में वहां कार्यरत कर्मचारी पिछले कई महीने से जम्मू में प्रदर्शन कर रहे हैं. बीते दिनों उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने काम पर न लौटने की सूरत में उन्हें वेतन भुगतान नहीं करने की घोषणा की थी.

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डोगरा और कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने घाटी से तबादले की मांग को लेकर महीनों से जारी अपना विरोध प्रदर्शन बृहस्पतिवार को तेज कर दिया. (फोटो: पीटीआई)

कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों समेत अन्य अल्पसंख्यकों की आतंकियों द्वारा निशाना बनाकर की जा रही हत्या के विरोध में वहां कार्यरत कर्मचारी पिछले कई महीने से जम्मू में प्रदर्शन कर रहे हैं. बीते दिनों उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने काम पर न लौटने की सूरत में उन्हें वेतन भुगतान नहीं करने की घोषणा की थी.

डोगरा और कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने घाटी से तबादले की मांग को लेकर महीनों से जारी अपना विरोध प्रदर्शन बृहस्पतिवार को तेज कर दिया. (फोटो: पीटीआई)

जम्मू: वेतन रोकने संबंधी जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल (एलजी) मनोज सिन्हा की टिप्पणी से नाराज डोगरा और कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने घाटी से तबादले की मांग को लेकर महीनों से जारी अपना विरोध प्रदर्शन और तेज कर दिया है.

उपराज्यपाल की टिप्पणी के जवाब में कर्मचारियों ने सरकार को यह स्पष्ट किया कि वे तब तक कश्मीर नहीं लौटेंगे, जब तक स्थानांतरण नीति को लेकर उनकी मांग स्वीकार नहीं की जाएगी.

डोगरा कर्मचारी जम्मू स्थित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुख्यालय में ‘ऑल जम्मू-बेस्ड रिजर्व्ड कैटेगरी एम्प्लॉइज एसोसिएशन’ के बैनर तले बीते बृहस्पतिवार (22 दिसंबर) एकत्र हुए और उन्होंने एक ऐसी नीति बनाने की अपनी मांग को लेकर धरना दिया, जिसके तहत उन्हें घाटी से उनके जम्मू क्षेत्र स्थित गृह जिलों में स्थानांतरित किया जाए.

इस दौरान एक प्रदर्शनकारी ने संवाददाताओं से कहा, ‘उन्हें वेतन रोकने दीजिए. जब तक स्थानांतरण नीति बनाने की हमारी मांग को स्वीकार नहीं किया जाता, तब तक कोई नौकरी पर नहीं जाएगा. वेतन जीवन से महत्वपूर्ण नहीं हैं.’

उन्होंने उपराज्यपाल की टिप्पणी पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सिन्हा ने एक संवैधानिक प्रमुख के रूप में समयबद्ध तरीके से स्थानांतरण नीति पर सिफारिशें देने के लिए समिति गठित करने संबंधी कानून का उल्लंघन किया, लेकिन अब वह कह रहे हैं कि वे कश्मीर घाटी के कर्मचारी हैं.

डोगरा और कश्मीरी पंडित कर्मचारी अपनी सहयोगी रजनी बाला की हत्या के बाद जम्मू लौट आए थे. सांबा जिला निवासी रजनी बाला की 31 मई को दक्षिण कश्मीर में कुलगाम जिले के एक स्कूल में आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.

प्रदर्शनकारियों ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें अपने कमरों से बाहर आना चाहिए और हमारे संघर्ष में शामिल होना चाहिए, क्योंकि उन्होंने हमसे वादा किया था कि उनकी मांग को पूरा करने के लिए एक स्थानांतरण नीति बनाई जाएगी.

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने तबादले के लिए प्रदर्शन कर रहे सरकारी कर्मचारियों को बुधवार (21 दिसंबर) को यह स्पष्ट संदेश दिया था कि काम पर न आने वालों को वेतन नहीं दिया जाएगा.

उन्होंने कहा था कि घाटी में सेवारत कश्मीरी पंडितों सहित अल्पसंख्यक समुदाय के कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय किए गए हैं.

उपराज्यपाल ने कहा था, ‘हमने उनके (प्रदर्शनकारी कर्मचारियों के) 31 अगस्त तक के वेतन को मंजूरी दी है, लेकिन काम पर नहीं आने के कारण इसकी अदायगी नहीं की जा सकती. यह उन्हें एक स्पष्ट संदेश है तथा उन्हें इसे सुनना और समझना चाहिए.’

प्रधानमंत्री पैकेज कर्मचारी अपने सहकर्मी राहुल भट की 12 मई को हत्या के बाद पिछले करीब सात महीने से घाटी में हड़ताल कर रहे हैं. बृहस्पतिवार को प्रदर्शन तेज करते हुए प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी की और तख्तियां लेकर अपना विरोध जताया.

उन्होंने कहा कि सरकार को प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री पैकेज कर्मचारियों की मांगों को मान लेना चाहिए और घाटी में सुरक्षा स्थिति में सुधार होने तक उन्हें अस्थायी रूप से जम्मू स्थानांतरित कर देना चाहिए.

एक प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘हमारे जीवन को खतरे के मद्देनजर हम स्थानांतरण की मांग कर रहे हैं. हर सप्ताह ‘हिट लिस्ट’ (हत्या के लिए चुने गए लोगों की सूची) जारी की जा रही है. दूसरी ओर, सरकार सुरक्षा के अभाव में उन पर ड्यूटी में शामिल होने और मारे जाने का दबाव बनाने के लिए वेतन रोक रही है. हम शामिल नहीं होंगे.’

द हिंदू के मुताबिक, एक प्रमुख पंडित नेता अग्निशेखर ने जम्मू कश्मीर प्रशासन पर ‘पंडितों को बलि के बकरे के रूप में इस्तेमाल करने’ का आरोप लगाया.

उन्होंने कहा, ‘आतंकियों द्वारा निशाना बनाकर किए जा रहे हमलों से बचे लोग आज विरोध कर रहे हैं. क्या उपराज्यपाल अपने किसी संबंधी को कश्मीर में तैनात देखना चाहेंगे? क्या कोई जिला आयुक्त या जिला मजिस्ट्रेट बिना सुरक्षा के कश्मीर में घूमता है?’

अग्निशेखर ने कहा, ‘पंडितों का कश्मीर छोड़ना सुरक्षा की विफलता को दर्शाता है. इन कर्मचारियों को जम्मू में तब तक सेवा करने की अनुमति दी जानी चाहिए, जब तक वहां (कश्मीर में) स्थिति में सुधार नहीं हो जाता. वे यहां घर बैठे वेतन पाने के लिए धरना नहीं दे रहे हैं. वे जम्मू में सेवा देना चाहते हैं.’

लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकी समूह द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) की धमकियों को लेकर पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने कहा, ‘यह शर्म की बात है कि ये (टीआरएफ) लोग इस स्तर तक गिर गए हैं. वे जम्मू कश्मीर के विकास को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं और इसे चुनौती देना चाहते हैं, लेकिन लोग उन्हें करारा जवाब देंगे.’

हालांकि, जम्मू में प्रदर्शनकारी पंडितों से मिलने वाले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रविंदर रैना ने उपराज्यपाल सिन्हा से प्रदर्शनकारियों को राजभवन में आमंत्रित करने की अपील की.

रैना ने कहा, ‘कश्मीर के बाबू (नौकरशाह) शायद उनका दर्द ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं. उपराज्यपाल साहब को इन लोगों और जमीनी हकीकत को सुनना चाहिए. मैं आपको (कश्मीरी पंडित) विश्वास दिलाता हूं कि आपको बलि का बकरा नहीं बनने दूंगा.’

उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो वह दिल्ली में पंडितों के एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे और उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे.

मालूम हो कि बीते 5 दिसंबर को प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत कश्मीर घाटी में काम कर रहे 56 कश्मीरी पंडितों के नाम लेते हुए लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े आतंकी समूह द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) द्वारा जारी की गई एक ‘हिटलिस्ट’ से भयभीत समुदाय ने विरोध प्रदर्शन कर कर्मचारियों के लीक हुए विवरणों की उच्च-स्तरीय जांच की मांग की थी.

आतंकी संगठन ने कश्मीरी पंडितों को धमकी दी है कि उनकी कॉलोनियों को कब्रिस्तान में बदल दिया जाएगा.

गौरतलब है कि आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाकर की जा रहीं हत्याओं (Targeted Killings) के बाद से घाटी में प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत काम कर रहे अनेक कश्मीरी पंडित जम्मू जा चुके हैं और 200 से अधिक दिन से स्थान परिवर्तन की मांग के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं. वे जम्मू स्थित पुनर्वास आयुक्त कार्यालय के बाहर डेरा डाले हैं.

मई 2022 में कश्मीर में राहुल भट की हत्या के बाद से पिछले छह महीनों में प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत कार्यरत कश्मीरी पंडित जम्मू में राहत आयुक्त कार्यालय में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

सरकार ने हाल ही में संसद को सूचित किया था कि जम्मू-कश्मीर में अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद से और इस साल जुलाई के मध्य तक पांच कश्मीरी पंडित और 16 अन्य हिंदुओं तथा सिखों सहित 118 नागरिक मारे गए थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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