कृष्ण जन्मभूमि मामला: मथुरा की अदालत ने शादी ईदगाह मस्जिद परिसर के निरीक्षण का निर्देश दिया

मथुरा की एक दीवानी अदालत में हिंदू सेना ने भगवान बाल कृष्ण के नाम से याचिका लगाई थी, जो ईदगाह का प्रबंधन करने वाली इंतेजामिया समिति के ख़िलाफ़ दायर की गई थी. याचिका में उस 13.77 एकड़ भूमि के स्वामित्व को चुनौती दी गई थी, जिस पर ईदगाह बनी हुई है. 

/
कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद. (फाइल फोटो: पीटीआई)

मथुरा की एक दीवानी अदालत में हिंदू सेना ने भगवान बाल कृष्ण के नाम से याचिका लगाई थी, जो ईदगाह का प्रबंधन करने वाली इंतेजामिया समिति के ख़िलाफ़ दायर की गई थी. याचिका में उस 13.77 एकड़ भूमि के स्वामित्व को चुनौती दी गई थी, जिस पर ईदगाह बनी हुई है.

मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही मस्जिद ईदगाह विवाद फिर सुर्खियों में लौट आया है. मथुरा की एक जिला अदालत ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए राजस्व विभाग द्वारा शाही ईदगाह मस्जिद परिसर के आधिकारिक निरीक्षण की अनुमति दी है.

याचिका में उस 13.77 एकड़ भूमि के स्वामित्व को चुनौती दी गई थी, जिस पर ईदगाह बनी हुई है. वरिष्ठ सिविल जज सोनिका वर्मा ने अमीन (राजस्व विभाग के अधिकारी) क परिसर का निरीक्षण करने और सुनवाई की अगली तारीख 20 जनवरी तक नक्शे के साथ रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, यह निर्देश भगवान बाल कृष्ण के नाम पर हिंदू सेना द्वारा दायर की गई उस याचिका पर आया है, जो ईदगाह का प्रबंधन करने वाली इंतेजामिया समिति के खिलाफ दायर की गई थी.

हिंदू सेना के संस्थापक विष्णु गुप्ता को अदालत में दाखिल याचिका में भगवान कृष्ण के रिश्तेदार (नेक्स्ट किन) के रूप में नामित किया गया है.

ईदगाह, श्रीकृष्ण जन्मभूमि स्थल, जहां माना जाता है कि भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, के बगल में स्थित है.

वादी के अधिवक्ता शैलेश दुबे ने बताया कि आठ दिसंबर को दिल्ली निवासी हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता एवं उपाध्यक्ष सुरजीत सिंह यादव ने सिविल जज सीनियर डिवीजन (तृतीय) की न्यायाधीश सोनिका वर्मा की अदालत में यह दावा पेश किया था.

इसमें कहा गया है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ जमीन पर औरंगजेब द्वारा मंदिर तोड़कर ईदगाह तैयार कराई गई थी. उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर मंदिर बनने तक का पूरा इतिहास अदालत के समक्ष पेश किया.

उन्होंने वर्ष 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ बनाम शाही ईदगाह के बीच हुए समझौते को भी अवैध बताते हुए निरस्त किए जाने की मांग की है.

दुबे ने बताया कि अदालत ने वादी की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकृत करते हुए अमीन द्वारा सर्वेक्षण कर रिपोर्ट देने के आदेश दिए हैं. इस संबंध में पहले 22 दिसंबर को अदालत में सुनवाई होनी थी, लेकिन अपरिहार्य कारणों से ऐसा नहीं हो सका. हालांकि, अब अमीन को 20 जनवरी तक ईदगाह की रिपोर्ट अदालत में पेश करनी होगी.

शैलेश दुबे ने कहा, ‘अदालत ने आठ दिसंबर को अमीन को दोनों पक्षों को सूचित करने और अगली सुनवाई पर एक सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया था. इसमें 22 दिसंबर को मामले की सुनवाई होनी थी, लेकिन यह सुनवाई इसलिए नहीं हो सकी, क्योंकि उस दिन न्यायाधीश अवकाश पर थे.’

उन्होंने कहा कि अब अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 20 जनवरी, 2023 तय की है और इसी दिन अमीन से सर्वे रिपोर्ट तलब की है.

गौरतलब है कि इससे पूर्व भी आधा दर्जन से अधिक वादी सिविल जज सीनियर डिवीजन (प्रथम) ज्योति सिंह की अदालत में भी यही मांग रख चुके हैं, लेकिन अब तक उन याचिकाओं पर कोई फैसला नहीं हो सका है.

मथुरा का यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है, जब वाराणसी में काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मामले में अदालती लड़ाई चल रही है.

उल्लेखनीय है कि वाराणसी के श्रृंगार गौरी-ज्ञानवापी मामले में 17 अगस्त 2021 को पांच महिलाओं ने शृंगार गौरी में पूजन और विग्रहों की सुरक्षा को लेकर याचिका डाली थी.

इस पर उस समय तैनात सिविल जज सीनियर डिविजन रवि कुमार दिवाकर ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर ज्ञानवापी का सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था. बाद में यह मामला शीर्ष अदालत तक पहुंचा.

वहीं, बीते मई माह में मथुरा में जिला न्यायाधीश राजीव भारती ने श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और अन्य निजी पक्षों द्वारा शाही ईदगाह मस्जिद के निर्माण वाली भूमि के स्वामित्व की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई की अनुमति दी थी. उस याचिका को स्वीकार करते हुए जज भारती ने दीवानी मुकदमे को सुनवाई के लिए निचली अदालत में भेज दिया था.

इससे पहले, 2021 में एडवोकेट रंजना अग्निहोत्री ने छह अन्य लोगों के साथ पहली बार एक सिविल जज के समक्ष भगवान की ओर से दावा पेश किया था.

सिविल जज ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि कोई भी याचिकाकर्ता मथुरा से नहीं है, जो इस मसले में वैध हित रखता हो. जब फैसले के खिलाफ अपील की गई तो जज भारती ने याचिका मंजूर कर ली.

विभिन्न याचिकाकर्ताओं द्वारा मथुरा की अदालतों में कम से कम एक दर्जन मामले दायर किए गए हैं. सभी याचिकाओं में एक आम मांग 13.77 एकड़ के परिसर से मस्जिद को हटाने की है. इस परिसर की भूमि केशवदेव मंदिर से भी साझा होता है.

 ‘मथुरा के कृष्ण मंदिर की प्रतिमा आगरा क़िले की मस्जिद में दफ़न है, उसे निकलवाया जाए’

वहीं, श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष वकील महेंद्र प्रताप सिंह ने एक बार फिर दावा किया है कि मुगल शासक औरंगजेब ने भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर को तुड़वाकर उसमें स्थापित ठाकुर केशवदेव के श्रीविग्रह (मूर्ति) को आगरा भिजवाकर लाल किले की मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबवा दिया था.

उन्होंने शुक्रवार (23 दिसंबर) को फास्ट ट्रैक कोर्ट सीनियर डिवीजन नीरज गौड़ की अदालत में उपरोक्त याचिका दाखिल कर एक बार फिर अनुरोध किया है कि बेगम साहिबा की मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबी मूर्ति को निकाल कर ठाकुर केशवदेव मंदिर में स्थापित किया जाए और ऐसा होने तक उन सीढ़ियों पर सभी का आवागमन बंद किया जाए.

अदालत ने इसकी सुनवाई के लिए 23 जनवरी, 2023 की तारीख मुकर्रर की है.

अदालत में दर्ज किए गए दावे में वादी महेंद्र प्रताप सिंह और वृंदावन निवासी श्यामा नंद पंडित उर्फ शिवचरन अवस्थी ने दिल्ली के केंद्रीय सचिवालय के माध्यम से भारत संघ, भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण के महानिदेशक, भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण के अधीक्षक और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मथुरा के निदेशक को प्रतिवादी बनाया है.

वादी ने कहा कि मुगल शासक औरंगजेब ने वर्ष 1670 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बने ठाकुर केशवदेव के मंदिर का विध्वंस करा दिया था. मंदिर में स्थापित कीमती रत्नजड़ित छोटे एवं बड़े देव विग्रहों को आगरा ले जाया गया, जिन्हें लाल किले की बेगम साहिबा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दबा दिया. यह देव विग्रह आज भी मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दफन हैं, जो प्रतिवादीगण के अधीन है.

वादी ने इस संबंध में कई ऐतिहासिक साक्ष्यों का हवाला देते हुए बताया कि उक्त तथ्यों का उल्लेख औरंगजेब के मुख्य दरबारी मुस्ताक खान द्वारा लिखित पुस्तक ‘मासर ई आलमगीरी’ में किया गया है, जिसका यदुनाथ सरकार ने अरबी भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद किया है. उनके अलावा प्रख्यात इतिहासकार बीएस भटनागर द्वारा लिखित पुस्तक में भी यह वर्णन मिलता है.

उन्होंने बताया कि इससे पूर्व पहले भी सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट में यह दावा किया गया था, लेकिन तब अदालत ने पहले सभी प्रतिवादियों को दो माह का नोटिस देकर पुन: दावा दाखिल करने का निर्देश दिया था. जिसके बाद अब यह दावा सिविल जज सीनियर डिवीजन कोर्ट में पेश किया गया, लेकिन यह मामला त्वरित अदालत में सुना गया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)