बीते सप्ताह असम विधानसभा में पेश कैग रिपोर्ट में कहा गया कि एनआरसी अपडेट प्रक्रिया के लिए बेहद सुरक्षित और भरोसेमंद सॉफ्टवेयर विकसित करने की ज़रूरत थी, लेकिन ऑडिट में इस संबंध में उपयुक्त योजना नहीं होने की बात सामने आई. इसके अलावा धनराशि के उपयोग में भी विभिन्न अनियमितताएं पाई गईं.
गुवाहाटी: भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने असम के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने में बड़े पैमाने पर विसंगतियों का पता लगाया है, जिसकी रिपोर्ट शुक्रवार को राज्य विधानसभा में पेश की गई.
25 मार्च, 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले अवैध नागरिकों का पता लगाने के लिए असम के लिए 1951 एनआरसी को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत अपडेट किया गया था. अपडेटेड एनआरसी की अंतिम सूची अगस्त, 2019 को जारी हुई थी, जिसमें 3,30,27,661 आवेदकों में से कुल 3,11,21,004 नाम शामिल थे. हालांकि, इसे अधिसूचित किया जाना बाकी है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, कैग ने शनिवार को असम विधानसभा के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन 2020 में समाप्त वर्ष के लिए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें बताया गया कि एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया के लिए एक बेहद सुरक्षित और भरोसेमंद सॉफ्टवेयर विकसित करने की आवश्यकता थी, लेकिन ऑडिट के दौरान ‘इस संबंध में उपयुक्त योजना नहीं होने’ की बात सामने आई.
कैग के मुताबिक, 215 ‘सॉफ्टवेयर यूटिलिटी’ को ‘बेतरतीब तरीके’ से मूल सॉफ्टवेयर में जोड़ा गया था. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह साफ्टवेयर विकसित करने की वाजिब प्रक्रिया का पालन किए बगैर या एक राष्ट्रीय निविदा प्रक्रिया के बाद पात्रता आकलन के जरिये विक्रेता का चयन किए बिना किया गया.’
रिपोर्ट में कहा गया कि एनआरसी डेटा इकट्ठा करने और सुधार के इसमें सुधार करने से संबंधित सॉफ्टवेयर उपयुक्त रूप से डेवलप न कर पाने के कारण इसने बिना किसी ऑडिट निशान को छोड़े डेटा से छेड़छाड़ का जोखिम पैदा किया. ऑडिट ट्रेल से एनआरसी डेटा की सत्यता के लिए जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकती थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि इस प्रकार, 1,579.78 करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष व्यय के साथ-साथ 40,000 से 71,000 तक की बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों के लगने बावजूद एक वैध, त्रुटिमुक्त एनआरसी तैयार करने का उद्देश्य को पूरा नहीं किया गया है.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जब एनआरसी अपडेशन की प्रक्रिया दिसंबर 2014 में शुरू हुई थी, तब परियोजना लागत का अनुमान 288.18 करोड़ रुपये था और पूरा होने की समयसीमा फरवरी 2015 निर्धारित की गई थी. हालांकि, दस्तावेज़ का अंतिम मसौदा अगस्त 2019 में प्रकाशित किया गया और अधिक समय लगने के साथ-साथ शुरुआत में बताए गए एनआरसी अपडेशन सॉफ्टवेयर में महत्वपूर्ण बदलाव के कारण परियोजना की लागत बढ़कर 1,602.66 करोड़ रुपये हो गई.
कैग की रिपोर्ट में वित्तीय अनियमितताओं के लिए दोषी अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय करने और न्यूनतम मजदूरी अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए सिस्टम इंटीग्रेटर मैसर्स विप्रो लिमिटेड के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की सिफारिश की गई है.
कैग ने एनआरसी के राज्य समन्वयक की जिम्मेदारी तय करने और वेंडर को किए गए अधिक, अनियमित और अस्वीकार्य भुगतान के लिए समयबद्ध तरीके से कार्रवाई करने की सिफारिश की है.
कैग ने न्यूनतम मजदूरी (एमवी) अधिनियम के उल्लंघन के लिए सिस्टम इंटीग्रेटर (विप्रो) के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का भी सुझाव दिया क्योंकि (डेटा एंट्री) ऑपरेटरों को भुगतान न्यूनतम मजदूरी से कम दर पर किया गया. रिपोर्ट में राज्य समन्वयक एनआरसी से एमवी अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित न करने पर जवाबदेही की मांग की गई है.
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा है कि अब तक वे कैग रिपोर्ट का इंतजार कर रहे थे और अब आगे की कार्रवाई पर विचार किया जाएगा.
असम एकमात्र राज्य है जहां एनआरसी है, जिसे पहली बार 1951 में तैयार किया गया था. असम के नागरिकों की तैयार अंतिम सूची यानी कि अपडेटेड एनआरसी 31 अगस्त, 2019 को जारी की गई थी, जिसमें 31,121,004 लोगों को शामिल किया गया था, जबकि 1,906,657 लोगों को इसके योग्य नहीं माना गया था.
नवंबर, 2019 में असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू) ने पूर्व संयोजक प्रतीक हजेला पर एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया में बड़े स्तर पर सरकारी धनराशि के गबन करने का आरोप लगाया था और उसके खिलाफ सीबीआई की भ्रष्टाचार रोधी शाखा में एफआईआर दर्ज कराई थी.
उससे पहले अक्टूबर 2019 में एनआरसी की अंतिम सूची में कथित विसंगतियों के कारण प्रतीक हजेला के खिलाफ दो मामले दर्ज किए गए थे.
असम-मेघालय कैडर के 1995 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी प्रतीक हजेला को सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एनआरसी का राज्य समन्वयक नियुक्त किया था. उन्हें 12 नवंबर 2019 को इस प्रभार से मुक्त कर दिया गया था. अदालत ने हजेला का असम से उनके गृह राज्य मध्य प्रदेश में तबादला करने का आदेश दिया था. उन्होंने राज्य के विशेष अधिकारी एवं आयुक्त (स्वास्थ्य सेवाएं) का कार्यभार संभाला था.
अप्रैल 2020 में देश में कोरोना महामारी की शुरुआत के समय मध्य प्रदेश में सत्ता में वापसी के कुछ दिनों के भीतर ही मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने प्रतीक हजेला को प्रदेश के स्वास्थ्य प्रमुख के पद से हटा दिया था.
मई 2021 में असम एनआरसी के समन्वयक हितेश शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर कर दावा किया था कि एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया में कई गंभीर, मौलिक और महत्वपूर्ण त्रुटियां सामने आई हैं, इसलिए इसके पुन: सत्यापन की आवश्यकता है. सत्यापन का कार्य संबंधित जिलों में निगरानी समिति की देखरेख में किया जाना चाहिए.
शर्मा ने दावा किया था कि कई अयोग्य व्यक्तियों को सूची में शामिल कर लिया गया है, जिसे बाहर किया जाना चाहिए.
मई 2014 से फरवरी 2017 तक असम एनआरसी के कार्यकारी निदेशक रहे शर्मा को अक्टूबर 2019 में हुए प्रतीक हजेला के तबादले के बाद 24 दिसंबर 2019 को एनआरसी का राज्य समन्वयक नियुक्त किया गया था.
इससे पहले 2020 में भी शर्मा ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि 31 अगस्त 2019 को जारी की गई एनआरसी लिस्ट फाइनल नहीं है और अभी इसका पुन: सत्यापन किया जाना है.
उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी कई मौकों पर शर्मा और असम की भाजपा सरकार इस सूची को अंतिम मानने से इनकार कर चुके हैं.
अगस्त 2019 में फाइनल सूची आने के बाद से ही इस पर सवाल उठते रहे हैं. सवाल उठाने वालों लोगों में सबसे पहले राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा रही थी. 31 अगस्त को अंतिम सूची के प्रकाशन के बाद भाजपा ने कहा था कि वह एनआरसी की अपडेट हुई सूची पर भरोसा नहीं करती हैं.
तब असम भाजपा के अध्यक्ष रंजीत कुमार दास द्वारा एक संवाददाता सम्मेलन में कहा गया था कि एनआरसी की अंतिम सूची में आधिकारिक तौर पर पहले बताए गए आंकड़ों की तुलना में बाहर किए गए लोगों की बहुत छोटी संख्या बताई गई है.
इसके बाद तत्कालीन वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने भी कहा था कि एनआरसी की अंतिम सूची में कई ऐसे लोगों के नाम शामिल नहीं हैं जो 1971 से पहले बांग्लादेश से भारत आए थे.
इसके बाद एक अन्य अवसर पर उन्होंने कहा था, ‘भारतीय जनता पार्टी को इस पर भरोसा नहीं है क्योंकि जो हम चाहते थे उसके विपरीत हुआ. हम सुप्रीम कोर्ट को बताएंगे कि भाजपा इस एनआरसी को खारिज करती है. यह असम के लोगों की पहचान का दस्तावेज नहीं है.’
इस एनआरसी की अंतिम सूची से नाखुश लोगों में असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू) नाम का गैर-सरकारी संगठन भी है, जो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी के तहत असम में एनआरसी को अपडेट करने के लिए शीर्ष न्यायालय में मूल याचिकाकर्ता था. एपीडब्ल्यू का कहना था कि अंतिम एनआरसी सूची की प्रक्रिया को दोषपूर्ण तरीके से पूरा किया गया था.
इस साल मार्च महीने में भी मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा था कि वे राज्य में दोबारा एनआरसी चाहते हैं.
हिमंता सरकार का आरोप लगाया है कि इस सूची में कई अवैध प्रवासियों के नामों को शामिल किया गया है. इसके बाद भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख कर बांग्लादेश की सीमा से सटे जिलों में 20 फीसदी नामों और शेष जिलों में 10 फीसदी नामों के दोबारा सत्यापन के लिए याचिका दायर की है.
जुलाई 2018 में भाजपा ने उस समय जारी हुए एनआरसी के आंशिक मसौदे का स्वागत किया था, जिसमें 40 लाख से अधिक लोगों को बाहर रखा गया था. हालांकि पार्टी ने इसके एक साल बाद प्रकाशित पूर्ण मसौदे का विरोध किया था क्योंकि इस सूची में कथित तौर पर मुस्लिमों की तुलना में अधिक हिंदू सूची से बाहर थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)