वकीलों की अनुपलब्धता के कारण 63 लाख मामलों में देरी हुई: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़

एक कार्यक्रम के दौरान प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जेल नहीं बल्कि ज़मानत आपराधिक न्याय प्रणाली के सबसे मौलिक नियमों में से एक है. फिर भी व्यवहार में भारत में जेलों में बंद विचाराधीन क़ैदियों की संख्या एक विरोधाभासी तथा स्वतंत्रता से वंचित करने की स्थिति को दर्शाती है.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो: पीटीआई)

एक कार्यक्रम के दौरान प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जेल नहीं बल्कि ज़मानत आपराधिक न्याय प्रणाली के सबसे मौलिक नियमों में से एक है. फिर भी व्यवहार में भारत में जेलों में बंद विचाराधीन क़ैदियों की संख्या एक विरोधाभासी तथा स्वतंत्रता से वंचित करने की स्थिति को दर्शाती है.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो: पीटीआई)

अमरावती: प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को कहा कि देश भर में 63 लाख से अधिक मामले वकीलों की अनुपलब्धता के कारण और 14 लाख से अधिक मामले दस्तावेजों या रिकॉर्ड के इंतजार में लंबित हैं.

अमरावती में आंध्र प्रदेश न्यायिक अकादमी के उद्घाटन के अवसर पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि लोगों को जिला अदालतों को अधीनस्थ न्यायपालिका के रूप में मानने की औपनिवेशिक मानसिकता से छुटकारा पाना चाहिए, क्योंकि जिला अदालतें न केवल न्यायपालिका की रीढ़ हैं, बल्कि अनेक लोगों के लिए न्यायिक संस्था के रूप में पहला पड़ाव भी हैं.

उन्होंने कहा कि जेल नहीं, बल्कि जमानत आपराधिक न्याय प्रणाली के सबसे मौलिक नियमों में से एक है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि फिर भी व्यवहार में भारत में जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की संख्या एक विरोधाभासी तथा स्वतंत्रता से वंचित करने की स्थिति को दर्शाती है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) के अनुसार 14 लाख से अधिक मामले किसी तरह के रिकॉर्ड या दस्तावेज के इंतजार में लंबित हैं, जो अदालत के नियंत्रण से परे है.

उन्होंने कहा, ‘इसी तरह एनजेडीजी के आंकड़ों के अनुसार 63 लाख से अधिक मामले वकीलों की अनुपलब्धता के कारण लंबित माने जाते हैं. हमें यह सुनिश्चित करने के लिए वास्तव में बार के समर्थन की आवश्यकता है कि हमारी अदालतें अधिकतम क्षमता से काम करें.’

प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि यह बहुत अधिक या कम हो सकता है, क्योंकि अभी सभी अदालतों से अधिक डेटा प्राप्त होना बाकी है.

सीजेआई चंद्रचूड़ ने जिला अदालतों के बारे में कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 (जमानत) और धारा 439 (जमानत रद्द करना) अर्थहीन नहीं होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि जिला न्यायपालिका को स्वयं ही उपाय प्रदान करने चाहिए, क्योंकि उनसे देश के सबसे गरीब लोग प्रभावित होते हैं.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि प्रथमदृष्टया निचली अदालतों में इस बात को लेकर डर भी है कि उच्च स्तर पर अग्रिम जमानत या सामान्य जमानत कैसे दी जाएगी तथा यह डर पूरी तरह से तर्कहीन नहीं है.

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘ऐसे कई मामले हैं, जहां कुछ उच्च न्यायालयों में जमानत देने के फैसलों को लेकर निचली अदालत के न्यायाधीशों की खिंचाई की गई है. न्यायाधीशों के प्रदर्शन का विश्लेषण उनकी सजा दर के आधार पर किया जाता रहा है. मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में, मैंने विशेष रूप से मुख्य न्यायाधीशों को यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया कि इस तरह की प्रथाओं को दूर किया जाए.’

उन्होंने कहा कि ‘डिजिटल इंडिया’ मिशन के हिस्से के रूप में, पूरे देश में हर ग्राम पंचायत के स्तर पर ‘कॉमन सर्विस सेंटर’ स्थापित किए जा रहे हैं और उच्चतम न्यायालय यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि ई-कोर्ट सेवाओं का विलय कर दिया जाए, ताकि देश में ग्राम स्तर पर न्यायिक सुविधाएं उपलब्ध हों.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि महिला कानूनी पेशेवरों ने न्यायिक बिरादरी में आने वाले पुरुषों को पछाड़ दिया है.

उन्होंने कहा कि मामलों की प्रगति की निगरानी सुनिश्चित करने के लिए जल्द ही हर अदालत प्रतिष्ठान में ‘जस्टिस क्लॉक’ स्थापित की जाएगी.

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