असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा है कि एनआरसी असफल रहा और असम समझौता उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा. विधानसभा क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए परिसीमन एक ऐसा अभ्यास हो सकता है, जिसके माध्यम से हम असम के भविष्य को दो दशकों तक सुरक्षित रख सकते हैं.
गुवाहाटी: असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने बीते रविवार को कहा कि परिसीमन की प्रक्रिया उन सुरक्षा उपायों को प्रदान कर सकती है, जो राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने की कवायद नहीं कर सकी.
हालांकि वह जनसंख्या के आधार पर विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन के मापदंड के आलोचक थे, जिसको लेकर उन्होंने कहा कि यह सरकार की ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ का पालन करने वालों को दंडित करने और 12 बच्चे पैदा करने के लिए इस नीति की अवहेलना करने वालों को पुरस्कृत करने के समान है.
द हिंदू के मुताबिक, संवाददाताओं से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘एनआरसी असफल रहा और असम समझौता उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा. विधानसभा क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए परिसीमन एक ऐसा अभ्यास हो सकता है, जिसके माध्यम से हम कम से कम यह सुनिश्चित करके असम के भविष्य को दो दशकों तक सुरक्षित रख सकते हैं कि राज्य विधानसभा जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से कम प्रभावित हो.’
उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2008 में अंतिम परिसीमन अभ्यास का विरोध किया था और जोर देते हुए कहा था कि ‘अवैध अप्रवासियों’ को खत्म करने के लिए एनआरसी अभ्यास पूरा होने के बाद ही इसे किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अक्टूबर 2013 में शुरू हुई 1602.66 करोड़ रुपये के बजट वाली एनआरसी की कवायद में अगस्त 2019 में नागरिकों का पूर्ण मसौदा प्रकाशित हुआ था. मसौदा सूची में 3.3 करोड़ आवेदनों में से 19.06 लाख लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने के दस्तावेज जमा करने में विफल रहने पर इससे बाहर कर दिया गया था.
स्वदेशी लोगों की वकालत करने वाले भाजपा और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) ने एनआरसी मसौदा सूची को दोषपूर्ण बताते हुए खारिज कर दिया था और संशोधन के लिए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी.
आम धारणा यह है कि 25 अगस्त 1971 से 40 लाख से अधिक बांग्लादेशी अवैध रूप से राज्य में रह रहे हैं, जो 1985 के असम समझौते के अनुसार ऐसे लोगों का पता लगाने, हिरासत में लेने और निर्वासित करने की अंतिम (कट-ऑफ) तिथि है.
असम समझौते में गैर-स्वदेशी समुदायों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को कम करने के लिए संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षा उपायों को निर्धारित किया गया है.
मुख्यमंत्री शर्मा ने इस कवायद के आलोचकों को भावुक होने और तार्किक नहीं होने के कारण फटकार लगाते हुए कहा, ‘असम और इसके (स्वदेशी) लोगों के हित में परिसीमन किया जा रहा है. यह कवायद गैर-राजनीतिक है, जो 2001 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित है.’
उन्होंने कहा, ‘असम आंदोलन और एनआरसी से जुड़ी भावनाओं के बाद यह तर्क लगाने और नस्ल एवं राष्ट्र की खातिर कड़े फैसले लेने का समय है.’
परिसीमन की कवायद से पहले राज्य सरकार ने 31 दिसंबर को चार नए जिलों का विलय उन जिलों में कर दिया, जिनसे अलग होकर वे बने थे.
इस दौरान हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा था, ‘इस फैसले के तहत बिश्वनाथ जिले को सोनितपुर में मिला दिया जाएगा, होजई को नगांव में मिला दिया जाएगा, बजाली को बारपेटा में और तमुलपुर को बक्सा में मिला दिया जाएगा.’
विलय से पहले के इन जिलों में से तीन – बजाली, बिश्वनाथ और होजई – में बंगाली भाषी या बंगाल मूल के मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी है, जबकि चौथे जिले तमुलपुर में आदिवासी और गैर-आदिवासी स्वदेशी समुदायों के बीच विवाद है.
यह फैसले शनिवार (31 दिसंबर) को मंत्रिमंडल की बैठक में लिए गए, क्योंकि निर्वाचन आयोग ने एक जनवरी 2023 से असम में नई प्रशासनिक इकाइयां बनाने पर रोक लगा दी है. निर्वाचन आयोग की ओर से जल्द ही राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.
चुनाव आयोग ने 27 दिसंबर को कहा था कि उसने असम में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की शुरुआत की है और वह सीटों के समायोजन के लिए 2001 की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करेगा.
परिसीमन एक विधायी निकाय वाले देश या राज्य में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा या सीमाओं को तय करने की प्रक्रिया है.