2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा के पीछे उद्देश्य डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना, जाली नोटों पर लगाम लगाना और काले धन को रोकना था. हालांकि, आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि नोटबंदी से पहले चलन में मुद्रा या नोट 17.74 लाख करोड़ रुपये थे, जो 23 दिसंबर 2022 को बढ़कर 32.42 लाख करोड़ रुपये हो गए.
नई दिल्ली: नोटबंदी का देश में चलन में मौजूद मुद्रा (सीआईसी) पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है. नोटबंदी की घोषणा 8 नवंबर, 2016 को की गई थी. इसके तहत 500 और 1,000 रुपये के उच्च मूल्यवर्ग के नोट बंद कर दिए गए थे. नोटबंदी की घोषणा के बाद आज चलन में मुद्रा करीब 83 प्रतिशत बढ़ गई है.
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सरकार के नोटबंदी के फैसले को उचित ठहराया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर, 2016 को 1,000 रुपये और 500 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने की घोषणा की थी. इसके पीछे उनका उद्देश्य देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना, जाली नोटों पर लगाम लगाना और काले धन के प्रवाह को रोकना था.
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के अनुसार, मूल्य के संदर्भ में चलन में मुद्रा या नोट 4 नवंबर 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपये थे, जो 23 दिसंबर 2022 को बढ़कर 32.42 लाख करोड़ रुपये हो गए.
हालांकि, नोटबंदी के तुरंत बाद चलन में मौजूद मुद्रा छह जनवरी, 2017 को करीब 50 प्रतिशत घटकर लगभग नौ लाख करोड़ रुपये के निचले स्तर तक आ गई थी. चलन में मुद्रा चार नवंबर, 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपये थी.
पुराने 500 और 1,000 बैंक नोटों को चलन से बाहर करने के बाद यह पिछले छह वर्षों का सबसे निचला स्तर था. उस समय चलन में कुल नोटों में बंद नोटों का हिस्सा 86 प्रतिशत था.
चलन में मौजूद मुद्रा में छह जनवरी 2017 की तुलना में तीन गुना या 260 प्रतिशत से ज्यादा का उछाल देखा गया है, जबकि चार नवंबर 2016 से अब तक इसमें करीब 83 प्रतिशत का उछाल आया है.
जैसे-जैसे प्रणाली में नए नोट डाले गए, चलन में मौजूद मुद्रा सप्ताह-दर-सप्ताह बढ़ती हुई वित्त वर्ष के अंत तक अपने चरम यानी 74.3 प्रतिशत तक पहुंच गई. इसके बाद जून 2017 के अंत में यह नोटबंदी-पूर्व के अपने शीर्ष स्तर के 85 प्रतिशत पर थी.
नोटबंदी के कारण चलन में मौजूद मुद्रा में छह जनवरी, 2017 तक लगभग 8,99,700 करोड़ रुपये की गिरावट आई, जिससे बैंकिंग प्रणाली में अतिरिक्त तरलता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई. यह नकद आरक्षित अनुपात (आरबीआई के पास जमा का प्रतिशत) में लगभग 9 प्रतिशत की कटौती के बराबर था.
इससे रिजर्व बैंक के तरलता प्रबंधन परिचालन के समक्ष चुनौती पैदा हुई. इससे निपटने के लिए केंद्रीय बैंक ने तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत विशेष रूप से रिवर्स रेपो नीलामी का इस्तेमाल किया.
चलन में मौजूद मुद्रा 31 मार्च 2022 के अंत में 31.33 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 23 दिसंबर 2022 के अंत में 32.42 लाख करोड़ रुपये हो गया.
नोटबंदी के बाद से नोटबंदी के साल को छोड़ दिया जाए तो चलन में मुद्रा बढ़ी ही है. यह मार्च 2016 के अंत में 20.18 प्रतिशत घटकर 13.10 लाख करोड़ रुपये पर आ गई थी, जबकि 31 मार्च 2015 के अंत में चलन में मौजूद मुद्रा 16.42 लाख करोड़ रुपये थी.
नोटबंदी के अगले वर्ष में यह 37.67 प्रतिशत बढ़कर 18.03 लाख करोड़ रुपये हो गई. वहीं, मार्च 2019 के अंत में 17.03 प्रतिशत बढ़कर 21.10 लाख करोड़ रुपये और 2020 के अंत में 14.69 प्रतिशत बढ़कर 24.20 लाख करोड़ रुपये रही.
पिछले दो वर्षों में मूल्य के संदर्भ में चलन में मौजूद मुद्रा की वृद्धि दर 31 मार्च 2021 के अंत में 16.77 प्रतिशत के साथ 28.26 लाख करोड़ रुपये और 31 मार्च 2022 के अंत में 9.86 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 31.05 लाख करोड़ रुपये थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई/भाषा के मुताबिक, लोकसभा में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक लिखित जवाब में बताया कि 2 दिसंबर 2022 तक 31.92 लाख करोड़ मूल्य के नोट प्रचलन में थे, जो ठीक एक साल पहले के 29.56 लाख करोड़ रुपये से लगभग 8 प्रतिशत अधिक था.
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने 4:1 के बहुमत के फैसले में सरकार के 2016 के 1,000 रुपये और 500 रुपये मूल्यवर्ग के नोटों को चलन से बाहर करने के फैसले को उचित ठहराते हुए कहा है कि इस मामले में निर्णय लेने की प्रक्रिया दोषरहित थी.
बीते दो जनवरी को मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एसए नजीर की अगुवाई वाली उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि आर्थिक नीति के संबंध में फैसले लेते समय काफी संयम बरतना होगा और न्यायालय न्यायिक समीक्षा करके कार्यपालिका के फैसले की जगह नहीं ले सकता है.
हालांकि, जस्टिस बीवी नागरत्ना ने आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत केंद्र को दिए गए अधिकार के बारे में बहुमत के फैसले से असहमति जताई और तर्क दिया कि 500 रुपये और 1,000 रुपये की शृंखला के नोटों को कानून के जरिये समाप्त किया जाना था, न कि अधिसूचना के जरिये.
जस्टिस नागरत्ना ने कहा था, ‘संसद को नोटबंदी पर कानून पर चर्चा करनी चाहिए थी, इस प्रक्रिया को गजट अधिसूचना के माध्यम से नहीं किया जाना चाहिए था. देश के लिए इस तरह के महत्वपूर्ण महत्व के मुद्दे से संसद को अलग नहीं रखा जा सकता है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)