बीते सप्ताह ग्रामीण विकास मंत्रालय ने सभी मनरेगा कार्यस्थलों पर मोबाइल ऐप से उपस्थिति दर्ज करने के आदेश दिए हैं. पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री और कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इस प्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि कथित तौर पर पारदर्शिता बढ़ाने के लिए शुरू किए गए इस क़दम का ठीक उल्टा असर होगा.
नई दिल्ली: कांग्रेस ने बुधवार को कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत कामगारों की उपस्थिति ऐप के माध्यम से दर्ज किए जाने की व्यवस्था गरीबों एवं वंचित तबकों के हितों के खिलाफ है, इसलिए इसे खत्म किया जाना चाहिए.
पार्टी महासचिव और पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने यह भी कहा कि सरकार को मनरेगा में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सोशल ऑडिट जैसे कदम उठाने चाहिए.
द हिंदू के अनुसार, रमेश ने कहा कि यह गरीबों के खिलाफ मोदी सरकार का डिजिटल हमला है और इसके पीछे मनरेगा खर्च कम करने का छिपा मकसद भी है.
ज्ञात हो कि मीडिया में बीते हफ्ते आई रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने सभी कार्य स्थलों के लिए एक मोबाइल ऐप के माध्यम से हाजिरी दर्ज करने के आदेश जारी किया था. यह भी बताया गया था कि मंत्रालय ने उन कार्यस्थलों, जहां 20 या उससे अधिक श्रमिक काम कर रहे थे, पर सालभर के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट भी चलाया था.
रमेश ने कहा कि कथित तौर पर पारदर्शिता बढ़ाने के लिए शुरू किए गए इस कदम का ठीक उल्टा असर होगा.
उन्होंने एक बयान में कहा, ‘ग्रामीण विकास मंत्रालय ने यह अनिवार्य कर दिया है कि हर मनरेगा कामगार को अपनी उपस्थिति ऐप के जरिये दर्ज करानी होगी. इस कदम से यह नजर आता है कि पारदर्शिता बढ़ेगी, लेकिन इसका विपरीत प्रभाव भी होगा.’
उन्होंने कहा कि सरकार के इस कदम से भ्रष्टाचार के नए रास्ते खुलेंगे तथा कामगारों को अपनी मजदूरी पाने में मुश्किल होगी.
रमेश ने कहा, ‘जिनके पास महंगे स्मार्टफोन नहीं हैं, खासकर महिलाओं और वंचित समुदायों के लोगों को नुकसान होगा. एक तरह से वह मनरेगा कमजोर हो जाएगा जो ग्रामीण इलाकों के गरीबों के लिए संजीवनी है.’
बता दें कि इस नई व्यवस्था में दिन की शुरुआत में और दोपहर में काम ख़त्म होने पर श्रमिकों के उनकी जगह (लोकेशन) और समय (time-stamp) वाले फोटोग्राफ लेने की जरूरत होगी.
रमेश ने कहा कि रिकॉर्ड केवल एक मेट (सुपरवाइजर) के फोन पर होगा और समूह फोटो को सत्यापित करने कोई तरीका नहीं है.
उन्होंने कहा, और भी ख़राब बात यह है कि मनरेगा भुगतान किए गए काम के हिसाब से जुड़ा हुआ है, जिसके बारे में ऐप में कुछ नहीं है. इससे पहले मस्टर रोल, जिस पर प्रत्येक श्रमिक को हस्ताक्षर करने होते थे, वह सभी के लिए उपलब्ध था.’
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, ऐप प्रणाली के पायलट रन के दौरान भी तकनीकी त्रुटियों की व्यापक शिकायतें थीं, जिसके कारण काम नहीं मिला या उपस्थिति दर्ज नहीं की गई थी, जिसका अर्थ था वेतन से इनकार. रमेश ने कहा, ‘इसके अलावा, अब ऐप का उपयोग करने के लिए सभी मेट के पास स्मार्टफोन होना चाहिए. महंगे स्मार्टफोन के बिना लोग, खासकर महिलाएं, दलित और आदिवासी मेट नहीं हो सकते.’
उन्होंने आगे जोड़ा कि यह कदम मजदूरों को मनरेगा पर भरोसा करने से रोकेगा.
रमेश ने कहा, ‘यह मनरेगा पर खर्च को कम करने के लिए मोदी सरकार द्वारा पिछले दरवाजे से चली गई चाल है. वैसे भी, पूरे पश्चिम बंगाल राज्य सहित इस वित्तीय वर्ष में 8,450 करोड़ रुपये के भुगतान में देरी हुई है. यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लाभार्थियों को खाद्यान्न आधा करने के कदम से भी जुड़ा है. मनरेगा और एनएफएसए मोदी सरकार के कोविड और अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के बीच गरीबों की जीवन रेखा रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘देश को याद है कि प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में मनरेगा का मजाक बनाया था और फिर कोविड के समय उन्हें एक और यू-टर्न लेना पड़ा और इसकी कीमत उन्हें महसूस हुई.’
रमेश ने आरोप लगाया, ‘मोदी सरकार ने इन प्रमुख योजनाओं पर हमला किया है. यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि मोदी सरकार गरीबों और वंचितों के प्रति असंवेदनशील है.’
उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस मोदी सरकार का आह्वान करती है कि वह इस ऐप की व्यवस्था खत्म करे, उन सभी लोगों की मजदूरी की भरपाई करे जिन्हें तकनीकी खराबी के चलते अपनी मजदूरी गंवानी पड़ी. साथ ही सरकार सोशल ऑडिट के माध्यम से पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करे.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)