केंद्र सरकार ने लगातार जारी विरोध के बाद झारखंड में जैन समुदाय के धार्मिक स्थल सम्मेद शिखरजी से संबंधित पारसनाथ पहाड़ी पर सभी प्रकार की पर्यटन गतिविधियों पर रोक लगा दी है. हालांकि अब आदिवासी संगठनों ने पारसनाथ पहाड़ी को पहाड़ी देवता या शक्ति का सर्वोच्च स्रोत क़रार देते हुए जैन समुदाय से इसे मुक्त करने की मांग की है. मांगों पर ध्यान न देने पर विद्रोह की चेतावनी दी गई है.
रांची/नई दिल्ली: लगातार जारी विरोध के बाद केंद्र सरकार ने बृहस्पतिवार को झारखंड में जैन समुदाय के धार्मिक स्थल ‘सम्मेद शिखरजी’ से संबंधित पारसनाथ पहाड़ी पर सभी प्रकार की पर्यटन गतिविधियों पर रोक लगा दी, वहीं झारखंड सरकार को इसकी शुचिता अक्षुण्ण रखने के लिए तत्काल सभी जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए, लेकिन अब आदिवासी भी मैदान में कूद पड़े हैं और उन्होंने इस इलाके पर अपना दावा जताया है तथा इसे मुक्त करने की मांग की है.
संथाल जनजाति के नेतृत्व वाले राज्य के आदिवासी समुदाय ने पारसनाथ पहाड़ी को ‘मरांग बुरु’ (पहाड़ी देवता या शक्ति का सर्वोच्च स्रोत) करार दिया है और उनकी मांगों पर ध्यान न देने पर विद्रोह की चेतावनी दी है.
देश भर के जैन धर्मावलंबी पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल के रूप में नामित करने वाली झारखंड सरकार की 2019 की अधिसूचना को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, उन्हें डर है कि उनके पवित्र स्थल पर मांसाहारी भोजन और शराब का सेवन करने वाले पर्यटकों का तांता लग जाएगा.
अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने दावा किया, ‘अगर सरकार मरांग बुरु को जैनियों के चंगुल से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में विद्रोह होगा.’
उन्होंने कहा, ‘हम चाहते हैं कि सरकार दस्तावेजीकरण के आधार पर कदम उठाए. 1956 के राजपत्र में इसे ‘मरांग बुरु’ के रूप में उल्लेख किया गया है. जैन समुदाय अतीत में पारसनाथ के लिए कानूनी लड़ाई हार गया था.’
आदिवासी नेता ने कहा, ‘हम हर साल बैशाख में पूर्णिमा पर तीन दिनों के लिए यहां धार्मिक शिकार के लिए इकट्ठा होते हैं.’
संथाल जनजाति देश के सबसे बड़े अनुसूचित जनजाति समुदाय में से एक है, जिसकी झारखंड, बिहार, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल में अच्छी खासी आबादी है और ये प्रकृति पूजक हैं.
मुर्मू ने दावा किया कि परिषद की संरक्षक स्वयं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और इसके अध्यक्ष असम के पूर्व सांसद पी. मांझी हैं.
एक अन्य आदिवासी संगठन ‘आदिवासी सेंगल अभियान’ (एएसए) ने भी यह आरोप लगाया कि जैनियों ने संथालों के सर्वोच्च पूजा स्थल पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है.
इसके अध्यक्ष पूर्व सांसद सलखन मुर्मू ने चेतावनी दी कि अगर केंद्र और राज्य सरकार इस मुद्दे को हल करने तथा आदिवासियों के पक्ष में निर्णय देने में विफल रहे तो उनका समुदाय पूरे भारत में सड़कों पर उतरेगा.
इससे पहले दिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस संबंध में राज्य सरकार को एक कार्यालय ज्ञापन भेजा है.
यह घटनाक्रम इस मुद्दे पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की जैन समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ मुलाकात के बाद सामने आया है. यादव ने आश्वासन दिया था कि सरकार ‘सम्मेद शिखरजी पर्वत क्षेत्र’ की पवित्रता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है, जो न केवल जैन समुदाय, बल्कि पूरे देश के लोगों के लिए एक पवित्र स्थल है.
झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित ‘सम्मेद शिखरजी’ जैन समुदाय का सबसे बड़ा तीर्थस्थल है.
समुदाय के सदस्य पारसनाथ पहाड़ी पर धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के राज्य सरकार के कदम का विरोध कर रहे हैं.
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने अगस्त 2019 में पारसनाथ अभयारण्य के आसपास एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र अधिसूचित किया था और राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव के अनुसरण में पर्यावरण-पर्यटन गतिविधियों को मंजूरी दी थी.
मंत्रालय ने झारखंड सरकार के वन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को एक कार्यालय ज्ञापन जारी किया, जिसमें कहा गया है कि ‘पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र इस क्षेत्र में अधिसूचना के खंड तीन के प्रावधानों का कार्यान्वयन तत्काल रोका जाता है, जिसमें अन्य सभी पर्यटन और पर्यावरण-पर्यटन गतिविधियां शामिल हैं.’
बयान के अनुसार, राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए तुरंत सभी आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया जाता है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘शिकायतों में झारखंड द्वारा पारसनाथ वन्यजीव अभयारण्य के इको सेंसिटिव जोन की अधिसूचना के प्रावधानों के दोषपूर्ण कार्यान्वयन का उल्लेख है. यह उल्लेख किया गया है कि राज्य के अधिकारियों द्वारा इस तरह की लापरवाही से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंची है.’
इस बीच, विभिन्न जैन समूहों के प्रतिनिधियों ने इस फैसले के लिए प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद ज्ञापित करने को लेकर एक संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया और कहा कि इससे यह सुनिश्चित होगा कि उनके सबसे पवित्र तीर्थ स्थल की पवित्रता बनी रहेगी.
उन्होंने एक बयान में कहा, ‘हमारी चिंताओं को दूर कर दिया गया है और इस मुद्दे को हमारी संतुष्टि के अनुरूप सुलझा लिया गया है.’
पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार ‘सम्मेद शिखरजी’ पर्वत क्षेत्र की पवित्रता और ‘जैन समुदाय के साथ-साथ राष्ट्र के लिए इसके महत्व को पहचानती है और इसे बनाए रखने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराती है’.
केंद्र सरकार ने कहा कि राज्य सरकार को भी पारसनाथ पहाड़ी पर शराब और मांसाहारी खाद्य पदार्थों की बिक्री और सेवन पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू करना चाहिए.
इससे पहले केंद्रीय पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी ने बृहस्पतिवार को कहा था कि झारखंड में अपने एक पवित्र स्थल की सुरक्षा की मांग कर रहे जैन समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाएगा.
रेड्डी ने कहा था कि केंद्र सरकार पहले ही इस मुद्दे को झारखंड सरकार के सामने उठा चुकी है और उन्होंने खुद इस मुद्दे को उठाते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखा है.
केंद्र के फैसले के तुरंत बाद झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार ने दावा किया कि यह निर्णय मुख्यमंत्री द्वारा केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखने के बाद आया है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जैन समुदाय के सबसे पवित्र स्थलों में से एक पारसनाथ पहाड़ी में पर्यटन को बढ़ावा देने के किसी भी कदम का समुदाय के सदस्यों द्वारा देशभर में विरोध किये जाने के मद्देनजर केंद्र से संबंधित अधिसूचना पर ‘उचित निर्णय’ लेने का आग्रह किया था.
रांची में जारी एक विज्ञप्ति में राज्य के सूचना और जनसंपर्क विभाग ने कहा कि सोरेन द्वारा यादव को तत्कालीन भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार की 2019 की पर्यावरण-पर्यटन गतिविधियों से संबंधित अधिसूचना पर कार्रवाई करने के लिए कहने का प्रयास सफल रहा.
केंद्रीय वन मंत्री आदरणीय श्री @byadavbjp जी को पत्र लिख जैन अनुयायियों द्वारा प्राप्त आवेदनों के अनुसार पारसनाथ स्थित सम्मेद शिखर की सुचिता बनाये रखने हेतु पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार की संबंधित अधिसूचना के संदर्भ में समुचित निर्णय लेने हेतु आग्रह किया। pic.twitter.com/xQenqjahjn
— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) January 5, 2023
बीते 2 जनवरी को हेमंत सोरेन सरकार ने जैन समुदाय को क्षेत्र की पवित्रता बनाए रखने का आश्वासन दिया था और कहा था कि वह इस जगह को पर्यटन स्थल में बदलने के 2019 के प्रस्ताव को रद्द करने पर विचार कर रही है.
सोरेन ने बृहस्पतिवार को यादव को एक पत्र ईमेल कर केंद्रीय मंत्रालय से 2019 की अधिसूचना को रद्द करने की जैन समुदाय की मांग पर ध्यान देने का आग्रह किया था. उस साल मुख्यमंत्री रघुबर दास की नेतृत्व वाली तत्कालीन भाजपा सरकार ने सम्मेद शिखरजी सहित 200 स्थानों को पर्यटन स्थल के रूप में चिह्नित किया था.
पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि पारसनाथ वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना तत्कालीन बिहार राज्य द्वारा 1984 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत की गई थी. पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत 2019 में झारखंड सरकार के परामर्श से केंद्र द्वारा अधिसूचित किया गया था.
आदिवासियो ने इलाके पर अपना दावा जताया, जैनियों से इलाका मुक्त करने की मांग की
केंद्र सरकार ने बृहस्पतिवार को झारखंड में जैनियों के धार्मिक स्थल ‘सम्मेद शिखरजी’ से संबंधित पारसनाथ पहाड़ी पर सभी प्रकार की पर्यटन गतिविधियों पर रोक लगा दी और झारखंड सरकार को इसकी शुचिता अक्षुण्ण रखने के लिए तत्काल सभी जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए, लेकिन अब आदिवासी भी मैदान में कूद पड़े हैं और उन्होंने इस इलाके पर अपना दावा जताया है तथा इसे मुक्त करने की मांग की है.
संथाल जनजाति के नेतृत्व वाले राज्य के आदिवासी समुदाय ने पारसनाथ पहाड़ी को ‘मरांग बुरु’ (पहाड़ी देवता या शक्ति का सर्वोच्च स्रोत) करार दिया है और उनकी मांगों पर ध्यान न देने पर विद्रोह की चेतावनी दी है.
अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने दावा किया, ‘अगर सरकार मरांग बुरु को जैनियों के चंगुल से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में विद्रोह होगा.’
उन्होंने कहा, ‘हम चाहते हैं कि सरकार दस्तावेज़ीकरण के आधार पर कदम उठाए. (वर्ष) 1956 के राजपत्र में इसे ‘मरांग बुरु’ के रूप में उल्लेख किया गया है… जैन समुदाय अतीत में पारसनाथ के लिए कानूनी लड़ाई हार गया था.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)