एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत निमोनिया और डायरिया को लेकर टीकाकरण कार्यक्रम बढ़ाकर तमाम मौतों को रोक सकता है.
नई दिल्ली: भारत यदि निमोनिया और डायरिया के खिलाफ अपना टीकाकरण कार्यक्रम बढ़ाए तो पांच वर्ष से कम आयु के 90 हजार बच्चों का जीवन प्रतिवर्ष बचाया जा सकता है.
यह बात जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल आॅफ पब्लिक हेल्थ की एक रिपोर्ट में शुक्रवार को कही गई है.
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि भारत ने यद्यपि पिछले वर्ष के मुकाबले उल्लेखनीय सुधार किया है, एक गहन टीकाकरण कार्यक्रम कई जीवन बचा सकता है और इससे प्रति वर्ष एक अरब डालर से अधिक बच सकते हैं.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि गत वर्ष से भारत ने अपना प्रदर्शन सात अंक बढ़ाया है. यह मुख्य रूप से इस अवधि के दौरान खसरा टीका, हेमोफिलस इन्फ्लूएंजा टाइप बी टीका, डिप्थीरिया टिटनस की तीन खुराक, काली खांसी और रोटा वायरस टीके के चलते हुआ है.
गौरतलब है कि आंकड़ों के मुताबिक, भारत में वर्ष 2008 से 2015 के बीच हर रोज औसतन 2,137 नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई है. हालांकि, देश में शिशु मृत्यु की पंजीकृत संख्या और अनुमानित संख्या में बड़ा अंतर है क्योंकि तमाम बच्चों की मौतें दर्ज ही नहीं होतीं.
शिशु मृत्यु दर के मामले में भारत के आंकड़े भयावह हैं. दुनिया में सबसे ज्यादा नवजात शिशु मृत्यु भारत में होती हैं. वर्ष 2008 से 2015 के भीच भारत में 62.40 लाख बच्चे जन्म लेने के 28 दिनों के भीतर ही मृत्यु को प्राप्त हो गए.
आंकड़े कहते हैं कि वर्ष 2008 से 2015 के बीच भारत और भारतीय राज्यों में नवजात शिशुओं की मृत्यु दर और वास्तविक मृत्युओं का तथ्यात्मक विश्लेषण करते हुए यह पाया गया कि इन आठ सालों में भारत में 1.13 करोड़ बच्चे अपना पांचवां जन्मदिन नहीं मना सके और इससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई.
चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इनमें से 62.40 लाख बच्चे जन्म के पहले महीने (नवजात शिशु मृत्यु यानी जन्म के 28 दिन के भीतर होने वाली मृत्यु) में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए.
पांच साल से कम उम्र के बच्चों की कुल मौतों में से 56 प्रतिशत बच्चों की नवजात अवस्था में ही मृत्यु हो गई. इसे हम 5 साल से कम उम्र में होने वाली बाल मौतों में नवजात शिशुओं की मृत्यु का हिस्सा कह सकते हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)