एल्गार परिषद मामले में आरोपी 70 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को बीते 18 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य की स्थिति को ध्यान में रखते हुए नज़रबंद करने का आदेश दिया था.
नई दिल्ली: माओवादियों और पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई से संबंध रखने के आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की नजरबंदी की अवधि उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को 17 फरवरी तक बढ़ा दी.
जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू के उपलब्ध नहीं होने के कारण मामले की सुनवाई स्थगित कर दी.
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान अदालत को अवगत कराया गया कि नजरबंदी की पूरी प्रक्रिया ठीक चल रही है. नवलखा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने तर्क दिया कि सामाजिक कार्यकर्ता की बेटी विदेश में रहती है और नवलखा ने बेटी का फोन आने पर उससे बात करने की अनुमति मांगी है.
नित्या ने कहा, ‘वह अंतरराष्ट्रीय नंबर पर फोन नहीं कर सकते. मैंने सोचा कि हम एक आवेदन देंगे, लेकिन चूंकि हम यहीं हैं… मैं एनआईए को जानकारी दे दूंगी.’
उच्चतम न्यायालय ने 18 नवंबर को आदेश दिया था कि नवलखा को ‘बिना किसी विफलता के’ 24 घंटे के भीतर नजरबंद कर दिया जाए. साथ ही न्यायालय ने उस इमारत में कुछ अतिरिक्त सुरक्षा उपाय करने का आदेश दिया जहां कार्यकर्ता को नजरबंद रखा जाना था.
एनआईए ने नवलखा के माओवादियों तथा पाकिस्तान की एजेंसी आईएसआई के साथ संबंधों का हवाला देते हुए उन्हें जेल के बजाय घर में नजरबंद करने के सुप्रीम कोर्ट के 10 नवंबर के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया था.
हालांकि, जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने आदेश दिया कि गौतम नवलखा को घर पर नजरबंदी के तहत जहां रखा जाएगा, वहां अतिरिक्त सुरक्षा उपाय किए जाएंगे.
70 वर्षीय नवलखा एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में अप्रैल 2020 से जेल में बंद हैं और अनेक रोगों से जूझ रहे हैं.
नवलखा की जसलोक अस्पताल द्वारा जारी की गई मेडिकल रिपोर्ट में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने कहा था कि जरूरत पड़ने पर उनका उचित उपचार किया गया था और तलोजा केंद्रीय कारागार परिसर में उनकी स्थिति ठीक थी.
उच्चतम न्यायालय ने 15 नवंबर को तलोजा जेल से नवलखा की रिहाई की बाधा को दूर करते हुए, उन्हें नजरबंद करने के लिए ‘सॉल्वेंसी सर्टिफिकेट’ की आवश्यकता को समाप्त कर दिया था. सॉलवेंसी सर्टिफिकेट में राशन कार्ड जैसे दस्तावेज और एक हलफनामा होता है.
बहरहाल, उच्चतम न्यायालय ने नजरबंदी के लिए जरूरी इस प्रमाणपत्र की आवश्यकता से छूट प्रदान करते हुए नवलखा की नवी मुंबई स्थित तलोजा जेल से रिहाई की अड़चन 15 नवंबर को दूर कर दी थी.
गौरतलब है कि नवलखा के खिलाफ मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है. पुलिस का दावा है कि इसकी वजह से अगले दिन पुणे के बाहरी इलाके में स्थित भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के निकट हिंसा हुई थी.
पुणे पुलिस के अनुसार, प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) समूह से जुड़े लोगों ने कार्यक्रम का आयोजन किया था.
नवंबर 2022 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी दलित अधिकार कार्यकर्ता और विद्वान आनंद तेलतुंबड़े की जमानत याचिका मंजूर की थी. इससे पहले मामले के 16 आरोपियों में से केवल दो – वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और तेलुगू कवि वरवरा राव– फिलहाल जमानत पर बाहर हैं.
आरोपियों में शामिल फादर स्टेन स्वामी की पांच जुलाई 2021 को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)