अगले साल जनवरी में राम मंदिर के खोले जाने की घोषणा के बीच बेघर और बेसहारा अयोध्यावासियों पर यह जनवरी ही भारी पड़ रही है. प्रदेश में सर्दी के क़हर के दौरान नगर निगम के बड़े-बड़े दावों के बीच रैनबसेरे नदारद हैं. जो थोड़ा-बहुत काम कर रहे हैं, वे भी ज़रूरतमंदों की पहुंच से दूर ही हैं.
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार इन दिनों उन श्रद्धालुओं, तीर्थयात्रियों व पर्यटकों की आंखों के सुख के लिए अयोध्या को उसके ‘पुराने वैभव व गरिमा के अनुरूप’ पुनर्सृजित करने के लिए कुछ भी उठा नहीं रख रही, अगले वर्ष जनवरी में भव्य राम मंदिर के दर्शनार्थियों के लिए खोले जाने के बाद इस धर्मनगरी में जिनकी बाढ़ आने की उसे उम्मीद है.
ज्ञातव्य है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गत दिनों त्रिपुरा में एक रैली में यह ‘राहुल बाबा’ को कान खोलकर सुन लेने को कहते हुए कहा था कि अयोध्या का राम मंदिर अगले बरस पहली जनवरी को तैयार मिलेगा और अब योगी सरकार चाहती है कि तब जो भी श्रद्धालु, तीर्थयात्री व पर्यटक रामंदिर में दर्शनपूजन करने आएं, वे महज उसी की छटा में खोने को ‘विवश’ न हों-अयोध्या में इस तरह ‘स्वर्ग’ उतार दिया जाए कि उसे भी बिस्मित होकर निहारें.
लेकिन दूसरी ओर बेघर व बेसहारा अयोध्यावासियों पर यह जनवरी ही भारी पड़ रही है क्योंकि भीषण सर्दी के बीच उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है. इनमें वे सैकड़ों अयोध्यावासी तो शामिल हैं ही, जिनके घर-बार और दुकानें सड़कों को चौड़ी करने के अभियान की शिकार हो गई हैं, वे भी हैं जो छोटे-मोटे काम-धंधों या अपने परिजनों के इलाज वगैरह के लिए अयोध्या आते और रातें बिताने के लिए रैनबसेरों वगैरह पर निर्भर करते हैं, क्योंकि लॉज, धर्मशाला अथवा होटल के कमरे का खर्च नहीं उठा सकते.
फिलहाल, उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि एक साल बाद अयोध्या आने वालों के लिए अभी से पलक-पांवड़े बिछाने की तैयारी कर रही प्रदेश सरकार उनकी ओर ध्यान क्यों नहीं दे रही? इसके पीछे उनकी गरीबी है या उनका श्रद्धालुओं, तीर्थयात्रियों व पर्यटकों की परिभाषा में न आना?
जो भी हो, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में कड़ाके की ठंड शुरू होते ही खबर आई थी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि इतने रैनबसेरों का इंतजाम करें कि गलन भरी रातों में सबको सिर छिपाने की जगह मिल जाए और कोई भी बेसहारा सड़कों के किनारे सोने को मजबूर न हो. इस निर्देश में यह भी कहा गया था कि ऐसा सुनिश्चित करने के लिए जिलाधिकारी अपने-अपने जिलों में रात में रैनबसेरों का नियमित निरीक्षण करें.
हालांकि, अयोध्या से प्रकाशित दैनिक ‘जनमोर्चा’ के संवाददाताओं ने एक रात मौके पर जाकर वस्तुस्थिति का जायजा लिया तो पाया कि शहर के राजकीय कन्या इंटर कालेज की चहारदीवारी के सामने मुख्य सड़क की दोनों पटरियों तक पर एक-दो नहीं 50-50 बेसहारा गरीब एक-दो कंबलों या महज ‘कत्थर-गुद्दर’ के भरोसे ठिठुरनभरी रात काटने को अभिशप्त हैं और मुख्यमंत्री के निर्देश का कोई असर नहीं है.
इन अभिशप्तों में कई बच्चे, तो कई साधुवेशधारी भी थे और ज्यादातर को शिकायत थी कि बीते सालों में पुण्य का काम बताकर जरूरतमंदों को कंबल वितरण करते आ रहे समाजसेवियों ने भी इस साल उनकी ओर से हाथ खींच रखे हैं. दूसरी ओर अयोध्या नगर निगम गायों को खास तरह के कोट वितरित करने का दावा कर रहा है और अखबारों में महापौर ऋषिकेश उपाध्याय की गायों को गुड़ खिलाने वाली तस्वीरें छप रही हैं.
जनमोर्चा के मुताबिक, उसके संवाददाताओं को ज्यादातर रैनबसेरों में रात में भी ताले बंद मिले. कहीं वे खुले भी मिले और उनके सामने अलाव व पेयजल की व्यवस्था भी मिली, तो कोई बेसहारा उनमें आश्रय लिए नहीं मिला. वजह पता करने पर मालूम हुआ कि रैनबसेरों में बिना पहचान पत्र के प्रवेश नहीं दिया जाता और जरूरतमंदों को अचानक उनकी शरण में जाने की जरूरत पड़ती है तो उनके पास पहचान पत्र नहीं होता.
रैनबसेरों में नियुक्त कर्मियों ने बताया कि उन्हें निर्देश हैं कि बिना पहचानपत्र के किसी को भी उनमें रात न गुजारने दी जाए.
लेकिन यह पूछने पर कि क्या ठंड किसी पर पहचान पत्र देखकर हमला करती है, संबंधित अधिकारी यह कहकर हाथ खडे़ कर देते हैं कि पहचान पत्र की अनिवार्यता खत्म कर दी गई तो रैनबसेरे अपराधियों के अड्डे बन जाएंगे, जिससे नई समस्या खड़ी हो जाएगी.
दूसरी ओर अयोध्या नगर निगम का दावा है कि वह अयोध्या व फैजाबाद में कुल मिलाकर दस से ज्यादा अस्थायी रैनबसेरे संचालित कर रहा है, जो सार्वजनिक स्थलों के अलावा रेलवे स्टेशन व बस स्टेशन, नया घाट बंधा तिराहे व क्षीरेश्वरनाथ मंदिर में हैं. इनमें चारपाई, बिस्तर व रजाई के अलावा पेयजल व अलाव की भी व्यवस्था है, जबकि महिलाओं के लिए तीन स्थानों पर अलग से रैनबसेरे संचालित हों रहे हैं.
लेकिन दो पक्के रैन बसेरों में से एक में डूडा का कार्यालय चल रहा है और दूसरे में हाल तक दबंगों का कब्जा था, जिसे अब जाकर हटाया गया है. लेकिन उसके दावों के बारे में लोग बस एक ही बात कहते हैं- दावे हैं, दावों का क्या!
उसके रैनबसेरों से भी ज्यादा विचित्र स्थिति जिला अस्पताल में संचालित रैन बसेरे की है, जो यूं तो ‘मरीजों के तीमारदारों के सिर छुपाने के लिए’ बताया जाता है, लेकिन किसी तीमारदार को उसमें रात गुजारनी हो तो उसका पहचान पत्र से भी काम नहीं चलता, उन्हें मुख्य चिकित्सा अधीक्षक का आदेश लाना पड़ता है. इस आदेश के बावजूद उसे तभी रात काटने की इजाजत मिलती है, जब सुरक्षा के लिए गेट पर तैनाती के लिए गार्ड की उपलब्धता हो.
जिला महिला अस्पताल के दो मंजिले रैनबसेरे में ऊपर की मंजिल पर बंदरों का आतंक रहता है, इसलिए कोई वहां ठहरना ही नहीं चाहता, जबकि नीचे के तल में सिर छुपाने वालों से अवैध उगाही की शिकायतें आती रही हैं.
लेकिन समस्या सिर छुपाने की ही नहीं है. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ स्थानीय नेता सूर्यकांत पांडेय की मानें, तो योगी सरकार अभी अयोध्या को अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की संभावनाएं उजली करने के लिहाज से तैयार करने में व्यस्त हो गई है.
उसे आम अयोध्यावासियों के जीवन-मरण से कोई खास मतलब नहीं रह गया है- यहां तक कि उन अयोध्यावासियों से भी नहीं जो भाजपा और उसके राम मंदिर आंदोलन के परंपरागत समर्थक रहे हैं. श्रद्धालुओं, तीर्थयात्रियों व पर्यटकों में भी उसे ज्यादा फिक्र उन्हीं की है, जो ‘गांठ के पूरे’ हैं और जिनके आने से उसे बड़ी राजस्व वृद्धि की उम्मीद है.
पांडेय बताते हैं कि अयोध्या में ठंड से बचने और सर्द रातों में सिर छिपाने के इंतजाम ही अपर्याप्त नहीं हैं, शवदाह की सुविधाओं का हाल भी बहुत बुरा हैं. प्रायः हर साल जाड़ों में मौतें बढ़ जाती हैं, तो यह समस्या बड़ी हो जाती है, लेकिन अयोध्या को ‘दिव्य और भव्य’ बनाने के दावे करती रहने वाली सरकार इस ओर ध्यान नहीं देती.
उन्होंने यह भी जोड़ा कि सरयू के तट पर रेल व सड़क पुलों के बीच स्थित जिस रामघाट पर अयोध्या के ही नहीं, दूसरे कई जिलों के शव भी दाह के लिए लाए जाते हैं और जिसके कारण सरयू में प्रदूषण की समस्या लाइलाज होती जा रही है, उसके विकास के लिए भी अभी कागजी घोड़े ही दौड़ रहे हैं. विद्युत शवदाह गृह भी अभी तक सपना ही बना हुआ है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है.)